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मझौले उद्यम को 12वीं पंचवर्षीय योजना में महत्व

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नई दिल्ली। सूक्ष्म, लघु और मझौले उद्यमों पर कार्यकारी समूह ने बारहवीं पंचवर्षीय योजना (2012-17) के लिए अपनी रिपोर्ट में एमएसएमई क्षेत्र को देश की विकास गाथा का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाने के लिए कुछ महत्वपूर्ण संस्तुतियां की है। एमएसएमई पिरामिड में निचले स्तर पर अनियमित क्षेत्र के साथ ही यह क्षेत्र परंपरागत और आधुनिक उद्यम का मिश्रण है। उदारीकरण और वैश्विक बाजार के समेकन ने इस क्षेत्र के लिए बड़े अवसरों का मार्ग प्रशस्त करने के साथ ही इसके सम्मुख नवीन चुनौतियां भी प्रस्तुत की हैं।
नवीन महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय विनिर्माण नीति का उद्देश्य भारत को विनिर्माण केंद्र के रुप में विकसित करने और सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण के योगदान हिस्से को अगले दशक में मौजूदा 15-16 प्रतिशत के स्तर से बढ़ाकर 25 प्रतिशत तक लाना है। इसके लिए एमएसएमई क्षेत्र से ज़रुरी सहयोग और एमएसएमई क्षेत्र की वृद्धि दर में मौजूदा 12-13 प्रतिशत वार्षिक में अधिकता लानी होगी। इसके लिए प्रयासों और संसाधनों को एक साथ लाने की ज़रुरत होगी।
प्रमुख मुद्दा छोटे व्यापार सेवा प्रदाताओं का क्षमता निर्माण करना है ताकि वे बदलाव के प्रभावी और अग्रसक्रिय कारक बन सके। इसके लिए बडी आर्थिक नीतियां, समेकित सांस्थानिक संरचना, परिणाम आधारित प्रदर्शन संकेतकों, प्रदर्शन आधारित निधियन, सुशासन-पारदर्शी और जवाबदेह प्रणाली, स्वतंत्र निगरानी और मूल्यांकन तथा लक्षित लाभार्थियों द्वारा प्रभावी हिस्सेदारी की आवश्यकता है। कार्यकारी समूह ने एमएसएमई की तेजी में बाधा डलाने वाले क्षेत्रों की पहचान की है जो इस प्रकार है-विनियमन, प्रौद्योगिकी, ऋण और वित्त, रुढ़िवादी विपणन, कौशल, पुराने सांस्थानिक ढांचे, वकालत, सशक्तिकरण और पारदर्शिता।
समूह ने बारहवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान पायलट परियोजना के रुप में प्लग एंड प्ले सुविधा के साथ मॉड्यूलर औद्योगिक एस्टेट के रुप में संबंधित क्षेत्रों में योजना को शुरु करने की संस्तुति की है। कार्यकारी समूह ने 12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान खादी ग्रामोद्योग और कोयर क्षेत्र सहित सभी प्रमुख शीर्षों के लिए आवंटन किया है।

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