स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
नई दिल्ली। बुधवार को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के शिक्षा मंत्रियों का दिल्ली में सम्मेलन हुआ, जिसकी अध्यक्षता मानव संसाधन विकास, सूचना और प्रौद्योगिकी मंत्री कपिल सिब्बल ने की। सम्मेलन में मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री डॉ डी पुरनदेश्वरी, राज्य सरकारों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के 23 शिक्षा मंत्री, स्कूली शिक्षा एवं साक्षारता विभाग की सचिव अंशु वैश, उच्च शिक्षा की सचिव विभा पुरीदास, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव डॉ टी रामासामी, आईआईटी कानपुर के निदेशक प्रोफेसर संजय जी ढांडे सहित राज्य और केंद्र सरकारों के कई वरिष्ठ अधिकारियों ने भाग लिया।
सम्मेलन में डॉ रामासामी और प्रोफेसर ढांडे ने इंजीनियरिंग संस्थानों में नामांकन के लिए प्रवेश परीक्षा में प्रस्तावित सुधार पर प्रस्तुति पेश की। राज्यों का कहना है कि प्रवेश परीक्षाओं की प्रक्रिया को सहज करने की जरूरत है, जिससे छात्रों और उनके माता-पिता का तनाव कम हो सके। यह भी स्पष्ट किया गया कि सुधार ऐसा नहीं होना चाहिए जिससे राज्यों और केंद्र सरकार की आरक्षण नीति प्रभावित हो। पूर्वोत्तर राज्यों के लिए यह स्पष्ट किया गया कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय की उपलब्ध विशेष मदद जारी रहेगी, यह भी बताया गया कि राज्य अपने संस्थानों में नामांकन के लिए राष्ट्रीय परीक्षाओं सहित राज्य बोर्ड के अंकों को महत्व दे सकते हैं। इसके अनुसार राज्य तमिलनाडु की तरह अपने स्टेट बोर्ड के अंकों को सौ फीसदी तरजीह देने की नीति अपना सकते हैं।
प्रस्तुति में बताया गया कि मुख्य और उन्नत परीक्षाओं के अकादमिक हिस्से की देख-रेख आईआईटी करेगा, जबकि परीक्षाओं का प्रबंधन और संचालन सीबीएससी राज्य बोर्डों की मदद से किया जाएगा। आईआईटी और अन्य केंद्रीय शैक्षिक संस्थान राज्य बोर्डों के अंकों का चालीस फीसदी लेने की नीति का प्रस्ताव कर रहे हैं। कुछ राज्यों ने क्षेत्रीय भाषाओं में भी परीक्षा आयोजित कराने की बात उठाई है। यह स्पष्ट किया गया कि परीक्षाएं हिंदी और अंग्रेजी में होंगी और जरूरत के हिसाब से कुछ राज्यो में यह क्षेत्रीय भाषाओं में भी होगी। काफी विचार विमर्श के बाद राज्यों बोर्ड के नतीजों को शामिल करते हुए 2013 से लागू होने वाले साझा राष्ट्रीय परीक्षा के प्रस्ताव को परसेंटाइल फार्मूला के आधार पर लागू करने के विचार का सैधांतिक रूप से राज्यों ने समर्थन किया है। तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश, उड़ीसा, पुडुचेरी और पश्चिम बंगाल ने इस प्रस्ताव पर विस्तार से अध्ययन करने के लिए समय मांगा है।
मानव संसाधन मंत्रालय और एआईसीटीई की प्रस्तुति राष्ट्रीय व्यवसायिक शिक्षा क्वालीफिलकेशन फ्रेम वर्क-एनवीईक्यूएफ और सामुदायिक महाविद्यालयों की परिकल्पना के आधार पर रही। एनवीईक्यूएफ का स्वागत करते हुए राज्यों के शिक्षा मंत्रियों ने कहा कि एनवीईक्यूएफ कौशल विकास और रोजगारोन्मुखी शिक्षा के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होगा। एनवीईक्यूएफ पर बिहार के शिक्षा मंत्री की अध्यक्षता में तैयार शिक्षा मंत्रियों की रिपोर्ट को स्वीकार किया गया। विचार विमर्श के बाद राज्यों ने एनवीईक्यूएफ और सामुदायिक महाविद्यालयों की परिकल्पना का समर्थन किया। व्यवसायिक शिक्षा से जुड़े छात्रों की सहूलियत के लिए स्कूल बोर्डों, तकनीकी शिक्षा बोर्डों और विश्वविद्यालयों के बीच बातचीत पर जोर दिया गया। वर्ष 2012-13 के दौरान प्रायोगिक तौर पर सौ सामुदायिक महाविद्यालय शुरू करने का फैसला लिया गया जिसकी संख्या बाद में धीरे-धीरे बढ़ाई जाएगी। सामुदायिक कालेजों की योजना का अंतिम रूप देने के लिए मध्य प्रदेश की शिक्षा मंत्री अर्चना चिटनिस की अध्यक्षता में शिक्षा मंत्रियों की समिति एक गठित की जाएगी। शिक्षा का अधिकार कानून के तहत प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता पर भी प्रस्तुति पेश की गयी।