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नई दिल्ली। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष डॉ सी रंगराजन ने बुधवार को नई दिल्ली में एक संवाददाता सम्मेलन में वर्ष 2011-12 की अर्थव्यवस्था की समीक्षा जारी की। समीक्षा में वित्त वर्ष 2011-12 के दौरान वृद्धि दर 7.1 प्रतिशत रहने का अनुमान है जोकि अग्रिम अनुमान (एई) के अनुसार 6.9 प्रतिशत के अनुमान से थोड़ी ज्यादा है। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने कृषि एवं निर्माण क्षेत्र में अग्रिम अनुमान से अपेक्षाकृत ज्यादा वृद्धि का अनुमान किया है। इसी प्रकार सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के अनुपात में सकल निश्चित पूंजी निर्माण वैश्विक मंदी से पहले वर्ष 2007-08 में 32.9 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गया था जो 2008-09 में लुढ़ककर 32.3 प्रतिशत और 2009-10 में 31.6 के स्तर पर आ गया।
प्रारंभिक अनुमान के अनुसार यह अनुपात 2010-11 में और गिरकर 30.4 प्रतिशत हो गया। वर्ष 2011-12 के अग्रिम अनुमान यह इंगित करते हैं कि इसमें आगे और कमी हो सकती है, जो 29.3 प्रतिशत के स्तर पर जा सकते हैं। इन चार वर्षों के दौरान इसमें लगभग 4 प्रतिशत की गिरावट आई है। वर्ष 2011 में भी अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों में और गिरावट आई है। यूरोजोन में ऋणात्मक विकास के कारण अमरीकी अर्थव्यवस्था पर भी प्रभाव पड़ा, यह संभव है कि अमरीकी अर्थव्यवस्था में अतंर्राष्ट्रीय मौद्रिक कोष में (आईएमएफ) सितंबर 2011 और पुन: जनवरी 2012 में दोहराए गए 1.8 प्रतिशत अनुमान से अधिक वृद्धि होगी।
समीक्षा के अनुसार दिसंबर 2011 से यूरोपीयन केंद्रीय बैंक (ईसीबी) की वृहत स्तर पर जारी तरलता की वजह से प्रभावित देशों के सरकारी बांड से होने वाली आय में भी कमी आई है, हालांकि तत्काल इसका अभी कोई समाधान नहीं है और प्रभावित देशों पर कर्ज का भारी दबाव है जिसे चुकता करना है। जहां तक मंदी के प्रभाव का सवाल है, वहां इस स्थिति में थोड़ा सुधार आया है। यूरोपीयन केंद्रीय बैंक ने अपनी बैंकिंग प्रणाली की जरिए 489 बिलियन यूरो की बड़ी राशि का वित्तयन किया है, जो आगे एक ट्रिलियन यूरो के स्तर पर जा सकता है, जिसे देखते हुए जर्मनी ने भी आंशिक सहायता उपलब्ध कराने की इच्छा जताई है। यूरोजोन के सदस्यों ने वित्तीय एकीकरण के लिए एक समन्वित कदम उठाने पर सहमति जताई है जोकि असमान आर्थिक क्षमता वाले सदस्यों के अस्तित्व में बने रहने के लिए मौद्रिक एकीकरण की दिशा में एक आवश्यक कदम है।
क्षेत्रवार विकास
वर्ष 2011-12 में कृषि क्षेत्र के उत्पादन में काफी अच्छी वृद्धि हुई जो पिछले वर्ष की तुलना में ज्यादा है। वर्ष 2011-12 की प्रथम छमाही में कृषि क्षेत्र में औसत सकल घरेलू उत्पाद दर 3.7 प्रतिशत रहा। बागवानी और पशुपालन क्षेत्र में मजबूत वृद्धि दर को शामिल करते हुए 2011-12 के दौरान इस परिषद ने कुल कृषि क्षेत्र में जीडीपी दर तीन प्रतिशत रहने का अनुमान व्यक्त किया है। खनन एवं उत्खनन क्षेत्र में इस वर्ष गिरावट आई है। इसका कारण सम्मिलित रूप से कोयला उत्पादन में कमी आना है, जिसमें इस वर्ष के चार महीनों में गिरावट रही और केजी-डी6 क्षेत्र में प्राकृतिक गैस के उत्पादन में तेज गिरावट एवं इस वर्ष के तीसरी तिमाही में कच्चे तेल के उत्पादन में कमी आना भी शामिल है।
नवंबर 2011 से आगे कोयला उत्पादन में सुधार आया है, हालांकि इस वित्त वर्ष के बचे शेष महीनों में प्राकृतिक गैस के उत्पादन ऋणात्मक स्तर पर रहने की संभावना है। वर्ष 2011-12 के तीसरी तिमाही में कच्चे तेल उत्पादन में चार प्रतिशत की कमी आई है, जिसमें अंतिम तिमाही में सुधार आने की संभावना है। देश के कुछ भागों में न्यायालय के लौह अयस्कों के खनन पर रोक लगाए जाने के कारण भी उत्पादन में कमी आई है, जिसकी वजह से खनन एवं उत्खनन क्षेत्र में लगातार तीन दशकों में पहली बार इस पूरे वर्ष के दौरान ऋणात्मक वृद्धि की संभावना है। अग्रिम अनुमान के अनुसार यह वृद्धि ऋणात्मक 2.2 प्रतिशत के स्तर पर रहने की संभावना है।
विद्युत क्षेत्र में अच्छी वृद्धि का दावा किया गया है। विनिर्माण एवं निर्माण क्षेत्र में थोड़ी निराशा आई है। अक्तूबर में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) में 5.7 प्रतिशत की भारी गिरावट आई है, जिसमें नवंबर में 6.6 प्रतिशत का व्यापक सुधार आया है, जोकि दिसंबर के 1.8 प्रतिशत के वृद्धि से कम है। पूंजीगत वस्तुओं में भारी गिरावट आई है, यदि पूंजीगत वस्तुओं को हटा दिया जाए तो शेष औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में वर्ष दर वर्ष पांच प्रतिशत से ज्यादा की वृद्धि होगी। औसतन, तीसरी तिमाही में विनिर्माण क्षेत्र में सकल घरेलू उत्पाद लगभग एक प्रतिशत पर रहने की संभावना है।
जनवरी, 2012 के लिए खरीद प्रबंधन सूचकांक (पीएमआई) से अपेक्षाकृत अधिक वृद्धि का अनुमान है और अंतिम तिमाही में उत्पादन वृद्धि लगभग चार प्रतिशत के स्तर पर रह सकती है। इस पूरे वर्ष के दौरान विनिर्माण क्षेत्र का विकास दर 3.9 प्रतिशत होगी। निर्माण क्षेत्र में दूसरे छमाही के दौरान थोड़ा सुधार आने की संभावना है, जो नवंबर एवं दिसंबर 2011 में सीमेंट उत्पादन में हुई अच्छी वृद्धि की वजह से हो सकता है, इसलिए निर्माण क्षेत्र में इस पूरे वर्ष के दौरान वृद्धि दर 6.2 प्रतिशत रहेगी। वर्ष 2011-12 के पहले छमाही के दौरान सेवा क्षेत्र में जीडीपी वृद्धि दर 9.6 प्रतिशत थी। परिषद का अनुमान है कि सेवा क्षेत्र में दूसरी छमाही के दौरान भी विकास दर में मजबूती जारी रहेगी और इस पूरे वर्ष के दौरान विकास दर 9.4 प्रतिशत के स्तर पर रहेगी जो पहली छमाही की तुलना में थोड़ी कम रहेगी।
विदेशी भुगतान
अनुमानित चालू लेखा घाटा (सीएडी) के संबंध में अनुमान से अधिक और सकल पूंजी अंतर्वाह के संबंध में अनुमान से कम, दोनों के संबंध में ही विदेशी भुगतान संतुलन के दबाव के परिणाम स्वरूप भारतीय रुपये के विदेशी मूल्य में भारी मूल्यह्रास हुआ है। वित्तीय वर्ष में व्यापार की सामान्य सीमा-6 मुद्रा सूचकांक थी, जो 14 प्रतिशत गिर गयी। जबकि मुद्रास्फीति के रूप में समायोजित प्रभावी विनिमय (आरईईआर) दर 11 प्रतिशत गिर गयी। अप्रैल से दिसंबर 2011 की अवधि के दौरान अमरीकी डॉलर की तुलना में भारतीय रुपये में 19 प्रतिशत की गिरावट आई, तथापि जनवरी-फरवरी 2012 के दौरान इसकी स्थिति में कुछ सुधार हुआ क्योंकि रुपये की स्थिति लगभग 7.5 प्रतिशत सुधर गयी। पिछले कुछ माह भारतीय मुद्रा के विदेशी मूल्य के लिए बहुत नाजुक रहे।
सीएडी अनुमान से कहीं अधिक कम रहा है जो 2011-12 कि पहली छमाही में सकल घरेलू उत्पाद जीडीपी का औसतन 3.6 प्रतिशत रहा। तीसरी तिमाही में स्थिति पहली दो तिमाही की अपेक्षा अधिक गंभीर रही है। सीएडी में महत्वपूर्ण वृद्धि और पूंजीगत अंतर्वाह में और अधिक कमी होने के संयोग के कारण ऐसा हुआ है। यह स्थिति चालू अंतिम तिमाही में सुधरने की उम्मीद है, हालांकि पूरे वर्ष के दौरान बीओपी की स्थिति गंभीर रहेगी एवं सीएडी, जीडीपी के 3.6 प्रतिशत के स्तर पर रहेगा। मध्यावधि रूप से मुद्रा में गिरावट-सामान्य अर्थ में और इससे भी अधिक वास्तविक अर्थ में-न केवल मांग की वर्तमान स्थिति और विदेशी पूंजी की आपूर्ति की स्थिति को दर्शाती है, बल्कि विदेशी भुगतान की स्थिति में स्थिरता और सुधार लाने की योजना का खाका भी बनाती है। वस्तुओं और सेवाओं, दोनों की निर्यात संभावनाओं में सुधार लाकर और भारतीय परिसंपत्तियों के मूल्यों को विदेशी निवेशकों के लिए अधिक आकर्षक बनाकर कमजोर मुद्रा सीएडी को संकुचित करने में मदद की जा सकती है।
तीन ऐसी मुख्य समस्याएं हैं, जिनके प्रति हमें सचेत रहना चाहिए। पहली, यह कि तेजी से हुआ मूल्यह्रास कारपोरेट के देयता पक्ष को इस सीमा तक प्रभावित कर सकता है, कि उसकी निवेश क्षमता कमजोर हो जाए। यह आर्थिक विकास की गति के अनुरूप वसूली को कमजोर कर सकती है। दूसरी, पूंजी अंतर्वाह गतिविधि है और अगर यह प्रभाव सामने आता है कि मूल्यह्रास के आवर्ती होने की संभावना है तो निवेशक अपने मूल्यांकन में इस पहलू को शामिल कर लेते हैं और इस स्थिति में भारतीय परिसंपत्तियों के गोचर मूल्य में नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। तीसरी, यह कि भारत में सीएडी विशेष प्रवृति तत्व है। देश में सोने के आयात को अधिकांश भारतीय खरीददार एक निवेश उद्देश्य के रूप में लेते हैं, जिसकी देश के कुल आयात में भारी हिस्सेदारी है और इस तत्व में विविधता सीएडी में परिवर्तन के लिए एक बड़े घटक के रूप में कार्य करती है। सोने की आयात मांग को प्रभावित करने वाला गतिविज्ञान सौदे का आयात करने वालों की अपेक्षा परिसंपत्ति जमाखोरी को प्रभावित करने वालों से अधिक नजदीकी से संबंधित है।
मुद्रास्फीति एवं मौद्रिक नीति
पिछले दो वर्षों में मुद्रास्फीति की ऊंची दर देखी गयी है। शुरूआती महीनों में अनाज सहित प्राथमिक खाद्य पदार्थों के मूल्यों से अधिक मुद्रास्फीति दबाव आया है, जबकि खुले बाजार में हस्तक्षेप और सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के अंतर्गत अधिक खाद्यान्न जारी करने के कारण खाद्यान्नों के मूल्य स्थिर रखने में मदद मिली है, लेकिन अन्य प्राथमिक खाद्य वस्तुओं विशेष रूप से-दालों, दूध, अंडे, मांस और मछली के बढ़ते मूल्यों से दबाव बना रहा। वर्ष 2010 में खरीफ दालों के उत्पादन में सुधार होने के साथ-साथ आयातित दालों का नियंत्रित मूल्यों पर विपणन करने से जुलाई 2010 तक दालों के मूल्यों में बढ़ोत्तरी कम करने में मदद मिली। फल, दूध, अंडे , मांस और मछली के दामों में वृद्धि जारी रही। दिसंबर 2010 और जनवरी 2011 में सब्जियों के मूल्यों में अप्रत्याशित वृद्धि हुई, जिसके कारण सब्जियों के थोक मूल्य सूचकांक में इन दोनों महीनों में क्रमश: 34 और 67 प्रतिशत वृद्धि हुई। प्राथमिक खाद्य मूल्य वृद्धि दोहरे अंक में टिकी रही।
स्थिर उच्च खाद्य मूल्य वृद्धि के इतने लंबे समय तक रहने के कारण धन वेतन दरों एवं अन्य नगद व्यय पर प्रभाव पड़ा है, इससे उत्पादित सामानों का मूल्य व्यवहार प्रभावित हुआ है। वर्ष दर वर्ष निर्मित वस्तुओं की मूल्य वृद्धि दर सितंबर और अक्टूबर 2011 में 6 प्रतिशत से बढ़कर 8 प्रतिशत हो गयी। इसका विशुद्ध प्रभाव यह पडा कि मुद्रास्फीति की शीर्ष दर 22 महीनों की विस्तारित अवधि में 10 प्रतिशत के आसपास रही। जबकि इस अवधि के दौरान शीर्ष दर कम रही क्योंकि विशेष रूप से डीजल जैसे परिष्कृत अनेक पेट्रोलियम उत्पादों के मूल्यों में एक नीति से स्थिरता जारी रही, जिससे अनुदान बिल में प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। सरकार तथा सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों की वित्तीय स्थिति भी प्रभावित हुई। सार्वजनिक नीति, विशेष रूप से मौद्रिक नीति के प्रभाव से यह लगता है, कि इसके इच्छित प्रभाव पड़े। शीर्ष दर जो नवंबर में घटकर 9.1 प्रतिशत हो गयी थी, दिसंबर में घटकर 7.5 प्रतिशत और जनवरी 2012 में और घटकर 6.55 प्रतिशत हो गयी। मुद्रास्फीति दबाव को कम करने में हुई गतिविधियां भारतीय रिजर्व बैंक को अगले अनेक महीनों में वित्तीय स्थिति का समायोजन करने में मदद करेगी, लेकिन वित्तीय पक्ष की ओर से लगातार बने दबाव के कारण कुछ प्रतिबंध लागू रहेंगे।
2012-13 के लिए संभावनाएं
निवेश एवं वृद्धि-पुन: मूल्य स्थिरता आने, उचित समर्थित नीति एवं प्रशासनिक कदमों के कारण अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय बाजारों में कठिन परिस्थितियों के बावजूद निवेश दर में सुधार आना संभव हुआ है। वर्ष 2012-13 में सावधि निवेश दर सकल घरेलू उत्पाद में 1.5 से 2 प्रतिशत अंकों का सुधार देखा जा सकता है। मूल्य स्थिरता खपत मांग को भी सामान्य बना देगी। कमजोर मुद्रा से सकल निर्यात मांग में सुधार होने की संभावना है। निवेश पक्ष, वित्तीय पक्ष और व्यापार पक्ष में अच्छे परिणामों की संभावना है जिन्हें उचित रूप से देखा जा सकता है। इन परिस्थितियों में परिषद अनुभव करती है कि अर्थव्यवस्था में 7.5 से 8.0 प्रतिशत के दायरे में वृद्धि होने की संभावना है।
आधारभूत संरचना- जहां तक सरकार की भूमिका का संबंध है, इसे अधिकतर सक्षम रूप से बिजली, सड़कें, रेलवे, समुद्री पत्तनों, हवाई अड्डों के आधारभूत संरचना क्षेत्रों, ग्रामीण एवं शहरी आधारभूत संरचना में व्यक्त किया गया है। अपर्याप्त आधारभूत संरचना से पूरे देश में आर्थिक गतिविधियों के प्रसार में लगातार अवरोध पैदा हुआ है। वर्ष 2011-12 में बिजली और सड़कों के लिए निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त किए जाने की संभावना है। सरकार को मुख्य आधारभूत संरचना क्षेत्रों और परिचालन कार्य निष्पादन, विशेष रूप से कोयला क्षेत्र में महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित करने चाहिएं, जिससे 12वीं योजना के पहले वर्ष 2012-13 में आर्थिक गतिविधियों में सुधार लाने के लिए प्रोत्साहन मिले।
मुद्रास्फीति- संवेदनशील परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पादों के बिक्री मूल्यों की लागत निकालने और सरकार एवं तेल कंपनियों की वहन की जा रही अनुदान राशि के भार को कम करने के लिए समायोजित किया जाना है। इसके परिणाम स्वरूप अपर्याप्त लागत से कम हुई मुद्रास्फीति इन संवेदनशील परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पादों से ही गुजर जाती है, जो अब 2012-13 में अलग की जानी है और यह तब स्वयं शीर्ष मुद्रास्फीति को अभिव्यक्त करेगी। मुद्रा में सुधार, आयातित या आयात अनुरूपता पर निर्धारित मूल्य की वस्तुओं में समायोजन के प्रकार का निराकरण करेगा जिसे 2011 के अंतिम महीनों में देखा गया था। 2012-13 के दौरान मुद्रास्फीति के दबाव का कम होना जारी रहेगा और वर्ष के दौरान यह लगभग 5 से 6 प्रतिशत रहेगा। खाद्य मूल्यों पर पैनी नजर रखने और न केवल उत्पादन बढ़ाने को प्रोत्साहन देने, बल्कि अपर्याप्त खाद्य नेटवर्क को समेटने के लिए भी अग्रसक्रिय कदम उठाने की आवश्यकता होगी ताकि बागवानी एवं पशुपालन उत्पादों के उत्पादन की बढ़ती मांग के साथ न्याय किया जा सके।
विदेशी भुगतान- वर्ष 2012-13 के दौरान चालू लेखा घाटा (सीएडी) तीन प्रतिशत रहेगा। हालांकि यह उचित होगा कि सीएडी को मध्यम अवधि के दौरान जीडीपी के 2 से 2.5 प्रतिशत के बीच सीमित रखने का प्रयास किया जाए। पूंजी खाते के स्तर पर पूंजी प्रवाह को विशेष रूप में इक्विटी के रूप में प्रोत्साहित किया जाना चाहिए और निवेश के लिए घरेलू परिस्थिति में सुधार लाना चाहिए। मौलिक व्यापक आर्थिक स्थिरता जैसे मूल्य, विनिमय दर एवं वित्तीय संतुलन शामिल है, के साथ-साथ वृद्धि भी मूलभूत आवश्यकताएं हैं।
वित्तीय घाटा- वित्त वर्ष 2011-12 के दौरान केंद्र सरकार का वित्तीय संतुलन जीडीपी के 4.6 प्रतिशत के बजटीय अनुमान से ज्यादा रहने की संभावना है। यह मुख्य रूप से रिफाइंड पेट्रोलियम उत्पादों में बजट अनुमान से ज्यादा सब्सिडी के कारण है। वृहत सब्सिडी बिल विकास के खर्च के लिए रखे गए मौजूदा संसाधनों को सीधे रूप से कम करता है। इसकी वजह से सरकार के कर्ज की जरूरतों में भी विस्तार होता है जिसकी वजह से निवेश के संसाधन भी उस हद तक कम हो जाते हैं और निजी क्षेत्र में उत्पादक निवेश में भी कमी आती है। वर्ष 2012-13 के दौरान सरकार को सब्सिडी के बोझ को कम करने के लिए प्रयास करना चाहिए, ताकि विकास की जरूरतों को संघीय बजट से पूरा किया जा सके। निजी क्षेत्रों के आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सरकारी उधार कार्यक्रमों में ऋणात्मक गिरावट को रोकने के लिए पर्याप्त सावधानी की जरूरत है। यह निर्विवाद रूप से दर्शाया जाना चाहिए कि सरकारी वित्तीयन वास्तव में वित्तीय समेकन के लिए है जो वृहत आर्थिक स्थायित्व को मजबूती प्रदान करता है।