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Friday 17 May 2019 05:50:31 PM
नई दिल्ली। भारत सरकार के स्वच्छ भारत मिशन के बारे में आए संवाद समिति रॉयटर्स के एक नकारात्मक लेख पर बवाल मच गया है, जिसपर पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि यह लेख झूंठ है। संवाद समिति रॉयटर्स ने आज यह लेख प्रकाशित किया है, जिसका शीर्षक है 'मोदी की स्वच्छ भारत की घोषणा, लेकिन वास्तविकता कुछ और धुंधली हो सकती है'। रॉयटर्स ने स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के अंतर्गत खासतौर से ग्रामीण स्वच्छता के बारे में वार्षिक राष्ट्रीय सर्वेक्षण 2018-19 के हाल के निष्कर्षों पर सवाल उठाए हैं। स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) का दावा है कि रॉयटर्स का लेख ग़लत है। स्वच्छता मंत्रालय का कहना है कि ग्रामीण स्वच्छता के बारे में वार्षिक राष्ट्रीय सर्वेक्षण 2018-19 देश का सबसे बड़ा स्वतंत्र स्वच्छता सर्वेक्षण है, जो एक स्वतंत्र सत्यापन एजेंसी से कराया जाता है। इसमें 6136 गांव, 92040 परिवार और 5782 स्कूल, 5803 आंगनवाड़ी केंद्र, 1015 सार्वजनिक शौचालय और 6055 सार्वजनिक स्थल के चयन ढांचों को शामिल किया गया है, जिसकी वजह से यह देश का सबसे अधिक वर्णन करने वाला स्वच्छता सर्वेक्षण बन गया है। एनएआरएसएस 2018-19 में पाया गया कि गांवों में शौचालयों का इस्तेमाल 93.4 प्रतिशत और ग्रामीण भारत में 96.5 प्रतिशत होना चाहिए।
स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के दावों के बचाव में पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय ने कहा है कि भारत की गुणवत्ता परिषद के 2017 में और राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन के 2016 कराए गए 2 और स्वतंत्र सर्वेक्षणों में पाया गया है कि ग्रामीण शौचालयों का क्रमशः 91 प्रतिशत और 95 प्रतिशत इस्तेमाल किया गया है। इस खबर के प्रकाशन से रॉयटर्स ने पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय से संपर्क किया और उठाए गए सभी सवालों के बारे में विस्तार से जानकारी दी, तथापि जो लेख उन्होंने प्रकाशित किया है, वह स्थिति के बारे में एकतरफा जानकारी देता है। उसमें एनएआरएसएस के सर्वेक्षण के संबंध में मंत्रालय द्वारा रॉयटर्स के साथ साझा किए गए सभी विवरणों को सीमित, अधूरा और अपूर्ण अनुक्रिया के रूपमें प्रस्तुत किया गया है। मंत्रालय ने मिशन की जमीनी वास्तविकता के बारे में पूर्ण जानकारी के साथ-साथ इस ख़बर में लगाए गए आरोपों को पक्षपातपूर्ण बतात हुए सर्वेक्षण का पक्ष जारी किया है। पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय का कहना है जैसाकि विश्व बैंक समर्थित सर्वेक्षण के बारे में परामर्श देने वाली अनुसंधानकर्ता पायल हठी ने कहा है कि यह पूरा मामला लोगों के स्वास्थ्य के संबंध में है, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आंकड़े बेहद गुमराह करने वाले हैं...हठी और फेलो रिसर्चर निखिल श्रीवास्तव ने कहा कि सर्वेक्षण का स्वरूप तैयार करने के लिए हुई बैठकों में उन्हें अनेक खामियां देखने को मिलीं।
रॉयटर्स ने लिखा है कि मंत्रालय ने ‘विस्तार से बताए बिना’ आरआईसीई के दोनों अनुसंधानकर्ताओं के दावों को स्पष्ट रूपसे खारिज कर दिया है और उनका खंडन किया है, इसपर मंत्रालय ने कहा है कि ये ग़लत है, वास्तव में मंत्रालय ने विस्तृत पृष्ठभूमि साझा की और उसके दावों को खारिज करने के साथ विस्तृत जानकारी आरआईसीई के अनुसंधानकर्ताओं ने दी। मंत्रालय का कहना है कि सर्वप्रथम एनएआरएसएस की कार्यप्रणाली और प्रक्रियाओं को विशेषज्ञ कार्यदल ने विकसित किया और मंजूरी दी, जिसकी अध्यक्षता जेएनयू के प्रोफेसर और राष्ट्रीय सांख्यिकीय आयोग के पूर्व सदस्य अमिताभ कुंडू और सह अध्यक्षता भारत सरकार के पूर्व सचिव डॉ एनसी सक्सेना ने की। ईडब्ल्यूजी में अनेक स्वच्छता विशेषज्ञ और विश्व बैंक, यूनिसेफ, बीएमजीएफ, वाटर एड इंडिया, सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय, नीति आयोग सहित राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विकास संगठनों के प्रतिनिधि शामिल थे। जैसीकि रॉयटर्स के दल ने जानकारी दी है कि इस विशेषज्ञ समूह ने निरीक्षण किया और एनएआरएसएस के कार्यों में हिस्सा लिया। इसमें सवाल तैयार करने से लेकर प्रतिचयन से लेकर और क्षेत्र में वास्तविक सर्वेक्षण करने वाले गणनाकारों का प्रशिक्षण शामिल है।
मंत्रालय का कहना है कि आरआईसीई के कुछ प्रतिनिधियों ने एनएआरएसएस 2017-18 के दौरान ईडब्ल्यूजी की कुछ बैठकों में हिस्सा लिया और वे किसी भी तरह एनएआरएसएस 2018-19 से जुड़े नहीं थे, एनएआरएसएस 2018-19 की कार्यप्रणाली के बारे में सवाल उठाकर आरआईसीई के प्रतिनिधि न केवल एनएआरएसएस की विश्वसनीयता को कम करने का प्रयास कर रहे हैं, बल्कि रॉयटर्स के पाठकों को भी गुमराह कर रहे हैं। आरआईसीई कभी भी एनएआरएसएस 2018-19 की किसी भी बैठक का हिस्सा नहीं रहा, उनका यह कहना कि उन्होंने एनएआरएसएस की बैठकों में अनेक खामियां देखीं, यह बात पाठकों को गुमराह करने वाली है और आरआईसीई के पक्षपातपूर्ण, दुर्भावनापूर्ण और तथ्यों को गलत तरीके से पेश करने के उसके इतिहास के समान है। संदर्भ के लिए http://pib.nic.in/PressReleseDetail.aspx?PRID=1569875, http://pib.nic.in/PressReleseDetail.aspx?PRID=1570908, http://pib.nic.in/PressReleseDetail.aspx?PRID=1559229 लिंक देखा जा सकता है। इसी प्रकार दो सर्वेक्षणकर्ताओं ने एनएआरएसएस के निष्कर्षों को असंभव बताया और कहा कि जवाब देने वालों से पूछताछ करने में काफी कम समय बिताया गया।
स्वच्छता मंत्रालय का कहना है कि जैसाकि रॉयटर्स के दल को स्पष्ट रूपसे बता दिया गया था, जिसका उनके लेख में कुछ भी शामिल नहीं है, एनएआरएसएस के प्रोटोकॉल के अनुसार एक विशेष गांव का दौरा कर रहे सर्वेक्षणकर्ता को गांव की खुले में शौचमुक्त अवस्था के बारे जानकारी नहीं दी गई, ताकि किसी तरह के संभावित पक्षपात से बचा जा सके। सच्चाई यह है कि एक सर्वेक्षणकर्ता को सर्वेक्षण के लिए एक राज्य में सीमित संख्या में गांव मिलते हैं, यह संख्या राज्य में सर्वेक्षण किए गए गांवों की कुल संख्या से काफी कम होती है, अतः एक सर्वेक्षणकर्ता अथवा कुछ सर्वेक्षणकर्ता राज्यव्यापी अनुमान प्रदान करने की स्थिति में नहीं हैं, साथ ही सर्वेक्षण की संख्या सीएपीआई-कम्प्यूटर एडेड पर्सनल इंटरव्यूइंग का इस्तेमाल करते हुए पूरी की गई, जो किसी एक सर्वेक्षणकर्ता को किसी प्रकार का विश्लेषण करने अथवा अनुमान लगाने की इजाजत नहीं देता है। प्रत्येक इंटरव्यू में लगाया गया समय सीएपीआई ने भी दर्ज किया है और आईवीए ने इसकी निगरानी की है।हम यदि लोगों के खुले में शौच करने के एक आध मामले देखते भी हैं तो वह पूरा गांव खुले में शौच से मुक्त नहीं है ऐसा नहीं कह सकते हैं। मंत्रालय के प्रशिक्षकों ने सर्वेक्षण करने आई रायटर्स की टीम को इस आधार पर सर्वे करने को कहा भी था। इस बात का कड़ाई से खंडन किया जाता है। जैसा कि रायटर्स टीम को ई-मेल और और व्यक्तिगत दोनों रूपसे सूचित किया गया था कि एनआरएसएस के सर्वेक्षण की जो पद्धति है उसमें ऐसे किसी दावे के लिए कोई जगह नहीं है। प्रतिक्रिया में कहा गया है कि दरअसल इस परिप्रेक्ष्य में एक गांव के मुख्य केंद्र की अवधारणा अप्रासंगिक है, क्योंकि इस बात के स्पष्ट निर्देश थे कि किसी गांव को खुले में शौच से मुक्त का दर्जा तब तक न दिया जाए जब तक कहीं भी खुले में शौच का कोई भी मामला हो।
स्वच्छता मंत्रालय का कहना है कि इसके अलावा यह ध्यान में रखना भी जरूरी है कि सर्वेक्षण की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए मंत्रालय सर्वेक्षण प्रक्रिया में सीधे तौर पर हस्तक्षेप नहीं करता है।सर्वेक्षणकर्ताओं के कार्य का संचालन भी स्वतंत्र सत्यापित एजेंसी की वरिष्ठ परियोजना टीम करती है। एक जल और स्वच्छता सलाहकार नित्या जैकब ने कहा कि प्रतिभागी आपको गलत जवाब देंगे, क्योंकि उन्हें सिखाया गया है कि जब उनसे शौचालय के इस्तेमाल के बारे में पूछा जाए तो वह हमेशा हां में जवाब दें। मंत्रालय ने इस आरोप का भी खंडन किया है और कहा है कि यह आरोप सरारसर गलत है कि सर्वेक्षण में भाग लेने वाले 92,000 से ज्यादा प्रतिभागियों को पहले से ही सिखाया-पढ़ाया गया था। यह आरोप गलत होने के साथ ही दुर्भावनापूर्ण भी है जैसाकि मंत्रालय ने रॉयटर्स को दिए आधिकारिक बयान में कहा है कि सर्वेक्षण के दौरान कुछ लोगों ने घर में शौचालय होने के बावजूद इस बात को छिपाया, क्योंकि वे इसके लिए सरकार से मिलने वाली वित्तीय मदद लेने के फिराक में थे। यह बात विशेषज्ञ समूह और एनएआरएसएस की जानकारी में भी है और ऐसे मामलों को रिकॉर्ड किया गया है, लेकिन यह रॉयटर्स के लेख में शौचालयों की कमी के दावों को सही नहीं ठहराता, वैसे भी एनएआरएसएस के प्रोटोकॉल के अनुसार किसी भी गांव को खुले में शौच से मुक्त का दर्जा किसी सर्वेअर के आधार पर नहीं, बल्कि गांव के बारे में उपलब्ध आंकड़े और सूचनाओं का आईवीए परीक्षण के आधार पर किया जाता है।
स्वच्छता मंत्रालय का कहना है कि एनएआरएसएस हरियाणा में खुले में शौच के मामलों का पता लगाने के लिए सांयोगिक नमूना प्रक्रिया का अनुसरण करता है। आईवीए ने हरियाणा के 102 गांवों में 1530 घरों का सर्वेक्षण किया। इसके नमूने राज्य में कुल साफ-सफाई व्यवस्था का संकेतक हैं। दरअसल पिछले कुछ वर्षों के दौरान हुए सर्वेक्षण यह साबित करते रहे हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालयों के इस्तेमाल के मामले में हरियाणा का प्रदर्शन देश में सबसे बेहतर रहा है। क्यूसीआई-2017 और एनएआरएसएस-2017-18 के सर्वेक्षण नतीजों के अनुसार राज्य में 100 फीसदी शौचालयों का इस्तेमाल होता है। क्यूसीआई के सर्वेक्षण में 1.4 घरों और एनएआरएसएस के सर्वेक्षण में 92040 घरों का सर्वे किया गया था। इस परिप्रेक्ष्य में एक-आध मामलों में शौचालयों का इस्तेमाल नहीं होने के बारे में टिप्पणी करना मुश्किल होता है। कर्नाटक में लोगों पर जोर-जबरदस्ती करने का आरोप है। स्वच्छ भारत मिशन का कहना है कि वह लोगों के व्यवहार में सकारात्मक बदलाव का समर्थन करता है। ऐसे में मंत्रालय इस मामले में लोगों पर किसी तरह की जोर-जबरदस्ती किए जाने को गंभीरता से लेता है। दुर्भाग्यवश कई रिपोर्ट और खासकर आरआईसीई की रिपोर्ट लोगों के व्यवहार में सकारात्मक बदलाव और जोर-जबरदस्ती की घटनाओं के बीच अंतर करने में नाकाम रही है।
खुले में शौच के मामलों पर रिपोर्ट में स्थानीय निगरानी समितियों या ग्राम पंचायतों या फिर सामुदायिक स्तर पर लगाए जाने वाली रोक को जोर-जबरदस्ती माना गया है, जोकि सर्वेक्षणकर्ताओं की सीमित सोच को दर्शाता है। यह बात ध्यान देने योग्य है कि मंत्रालय से पूछे गए प्रश्नों में रॉयटर्स की टीम ने इस मामले को नहीं उठाया था। स्वच्छता मंत्रालय का कहना है कि वह खुले में शौच को रोकने के लिए जोर-जबरदस्ती के खिलाफ है और इसलिए ऐसी घटनाओं के बारे में जानकारी देने वाली एजेंसियों या व्यक्तियों को प्रोत्साहित करता है। जोर-जबरदस्ती करने वाले किसी भी सरकारी अधिकारी को अगर ऐसा करते पाया गया तो उसके खिलाफ कार्रवाई करने का आश्वासन भी देता है। पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय का कहना है कि रॉयटर्स जैसी प्रतिष्ठित समाचार एजेंसी की तथ्यात्मक रूपसे गलत और खराब स्तर की रिपोर्टिंग से काफी निराशा हुई है। पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय का कहना है यह स्पष्ट है कि पिछले पांच वर्ष की छोटी सी अवधि में खुले में शौच के बारे में देश के 55 करोड़ से ज्यादा लोगों के व्यवहार में बदलाव लाने वाले दुनिया के सबसे बड़े अभियान के बारे में रॉयटर्स का यह लेख पूर्वाग्रह और पक्षपातपूर्ण है।