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Monday 3 June 2019 05:29:02 PM
नई दिल्ली/ विशाखापट्टनम। नई शिक्षा नीति का मसौदा तैयार कर रही डॉ कस्तूरीरंगन समिति ने कल मानव संसाधन विकास मंत्रालय को नई शिक्षा नीति का मसौदा सौंप दिया। मंत्रालय ने इस संबंध में कई बातें स्पष्ट की हैं, जिनमें समिति ने शिक्षा नीति के मसौदे को आम जनता की राय के लिए रखा है और अभी यह सरकार द्वारा घोषित नीति नहीं है, आम जनता की राय मिलने और राज्य सरकारों से सलाह के बाद भारत सरकार राष्ट्रीय शिक्षा नीति को अंतिम रूप देगी। कहा गया है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार सभी भारतीय भाषाओं के समान विकास और उनके संवर्द्धन के लिए दृढ़ संकल्प है, शिक्षा संस्थानों में किसी भी भाषा को थोपा नहीं जाएगा और न ही किसी भाषा के साथ भेदभाव किया जाएगा। उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने भी देशवासियों से अनुरोध किया है कि वे नई शिक्षा नीति के मसौदे का अध्ययन करें, विश्लेषण करें, उस पर बहस और चर्चा करें और जल्दबाजी में किन्हीं निष्कर्षों पर न पहुंचें।
उपराष्ट्रपति ने विशाखापट्टनम में एक कार्यक्रम में कहा कि शिक्षा के केंद्रीय विषय बहुत अधिक महत्वपूर्ण हैं, जिनपर सभी हितधारकों का ध्यान होना जरूरी है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि स्कूल बैगों का भार कम करना, खेलों को प्रोत्साहित करना, नैतिक मूल्य, वैज्ञानिकता और तार्किक तासीर विकसित करना, इतिहास और स्वतंत्रता सैनानियों के योगदान को छात्रों के मन में बैठाना स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा बन जाना चाहिए। भारतीय पैट्रोलियम एवं ऊर्जा संस्थान के शैक्षणिक गुणवत्ता में सुधार के लिए इंडस्ट्री एकेडमी वार्ता विषय पर दो दिन के सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए उन्होंने आह्वान किया कि शिक्षा जगत और उद्योग जगत के बीच एक सहजीवी रिश्ता स्थापित किया जाए, ताकि नवाचारों का ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र बनाया जा सके जो फले फूले और युवाओं के लिए रोज़गार पैदा करे। इसे हासिल करने के लिए उन्होंने चाहा कि भारतीय उद्योग जगत इस संबंध में ज्यादा सक्रिय भूमिका अदा करते हुए शैक्षणिक संस्थानों के साथ एक मजबूत रिश्ता कायम करे।
वेंकैया नायडू ने उद्योग और शिक्षा जगत से कहा कि वह हमारे विश्वविद्यालयों और अन्य महत्वपूर्ण शैक्षणिक संस्थानों में बड़े स्तरपर अनुसंधान की संस्कृति को स्थापित करने के लिए दीर्घकालिक गठजोड़ों पर ध्यान दे, न कि सीमित उद्देश्यों या एक बार की परियोजनाओं के लिए हाथ मिलाए। उपराष्ट्रपति ने कॉरपोरेट प्रतिष्ठानों को सुझाव दिया कि विशेष महत्व के क्षेत्रों की पहचान करे और उससे जुड़े डॉक्टरेट और पोस्ट-डॉक्टरेट अनुसंधानों को वित्त मुहैया करवाए। उन्होंने उनसे ये भी अनुरोध किया कि देश की अर्थव्यवस्था और समाज को लाभ पहुंचाने और नवाचारों को बढ़ावा देने वाली अनुसंधान परियाजनाओं को धन मुहैया करवाने के लिए एक विशेष कोष या निधि स्थापित करे। उच्च शिक्षा के संस्थानों से पढ़कर निकल रहे बहुत से छात्रों में रोज़गार योग्य कौशल की कमी होती है, इस बात की ओर ध्यान दिलाते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि इसी वजह से ऐसे ग्रेजुएट युवाओं को नौकरी दे रहे संगठनों को मजबूरन नौकरी के दौरान ही छह महीने से लेकर सालभर तक का प्रशिक्षण उन्हें देना पड़ता है। उपराष्ट्रपति ने शिक्षा व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता पर बल दिया ताकि ग्रेजुएट बन कर निकल रहे छात्र संबंधित उद्योग या कृषि की जरूरतों को पूरा करने की कुशलताओं से युक्त हों या उनमें एक जोखिम लेने वाले उद्यमी का कौशल या योग्यता हो।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि छात्रों को सिर्फ रोज़गार योग्य ही नहीं होना चाहिए, बल्कि उनमें जीवन कौशल, भाषा संबंधी कुशलता, तकनीकी कुशलताएं और उद्यम संबंधी कुशलताएं भी होनी चाहिएं, ताकि वे रोज़गार पाने या स्व रोज़गार करने में सक्षम हो सकें। कोई भारतीय विश्वविद्यालय विश्व के 100 शीर्ष रैंकिंग वाले विश्वविद्यालयों में भी शामिल नहीं हो सका, इस ओर इशारा करते हुए उपराष्ट्रपति ने विश्वविद्यालयों और शिक्षाविदों से अनुरोध किया कि वे इसपर आत्मावलोकन करें और संबंधित मानकों को सुधारें। महिलाओं के खिलाफ अत्याचारों और लैंगिक भेदभाव की घटनाओं पर अपनी चिंता जताते हुए वेंकैया नायडू ने कहा कि हमारी शिक्षा व्यवस्था को सामाजिक रूपसे जिम्मेदार नागरिक निर्मित करने चाहिएं। उन्होंने लोगों की मानसिकता में परिवर्तन लाने की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' और 'स्वच्छ भारत' जैसे कार्यक्रम लोगों के आंदोलनों में तब्दील होने चाहिएं। उपराष्ट्रपति ने यह भी कहा कि नीति आयोग ने पिछले साल '75वें बरस में नए भारत के लिए रणनीति' का उद्घाटन किया था, जिसमें अब तक हुई तरक्की, बाधाओं और उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए आगे की राह का ब्यौरा दिया गया था।
उन्होंने कहा कि जैसाकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है-विकास को 'जन आंदोलन' में तब्दील होना होगा। इसके अलावा जो अन्य महत्वपूर्ण सिफारिशें हैं उनमें-किसानों को 'एग्रीप्रेन्योर्स' बनाने की जरूरत, किसानों की आय बढ़ाने के तरीकों के तौर पर 'जीरो बजट प्राकृतिक कृषि' तकनीकों को मजबूती से आगे बढ़ाना, श्रम कानूनों का संपूर्ण रूपसे संहिताकरण करना, खनिज पदार्थ अन्वेषण और लाइसेंसिंग नीति को पूरी तरह सुधारना, भारतीय कारोबार की प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाना और नागरिकों के लिए 'ईज़ ऑफ लिविंग' यानी जीवन की आसानी को सुनिश्चित करना शामिल है। भारत देश एक समय में 'विश्वगुरु' के तौर पर जाना जाता था इस बात पर विचार करते हुए वेंकैया नायडू ने कहा कि भारत को एक बार फिर ज्ञान और नवाचार का वैश्विक केंद्र बनना होगा। भारतीय पैट्रोलियम और ऊर्जा संस्थान विशाखापट्टनम के निदेशक प्रोफेसर वीएसआरके प्रसाद, आंध्रा यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रोफेसर जी नागेश्वर राव, आईआईएम विशाखापट्टनम के निदेशक प्रोफेसर एम चंद्रशेखर, एपीपीसीबी के अध्यक्ष बीएसएस प्रसाद, सीआईआई विशाखापट्टनम के अध्यक्ष केवीवी राजू, एपी चैंबर्स के अध्यक्ष जी संबासिवा राव, एनआरडीसी के सीएमडी डॉ एच पुरुषोत्तम और आईएआई के संयोजक प्रोफेसर पुलीपति किंग भी इस अवसर पर उपस्थित थे।