स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
Friday 21 June 2019 04:54:10 PM
नई दिल्ली। राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू ने विधायिकाओं के कामकाज में आनेवाली बाधाओं से लोकतंत्र के खतरे में पड़ने से सांसदों को आगाह करते हुए उन्हें अपने कामकाज के तरीकों और सोच में बदलाव लाने की सलाह दी है। सभापति ने आज सदन में कहा कि विधायिकाओं के कामकाज में लगातार बाधा उत्पन्न होने से लोगों के बीच में नकारात्मक धारणा बन रही है, जिसके बारे में वे पहले भी कई बार सदस्यों को आगाह कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि कामकाज में बाधा आने से कार्यदिवसों का भारी नुकसान होता है, जिसकी वजह से कई विधेयक पारित नहीं हो पाते और लोकसभा का कार्यकाल समाप्त हो जाने पर ऐसे विधेयक राज्यसभा में स्वतः निरस्त हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि प्रश्नकाल के व्यर्थ जाने वाले हर घंटे का मतलब होता है-सरकार की नीतियों से जुड़े मुद्दों पर सदस्यों के सवाल पूछे जाने के अवसरों का खत्म होना।
सभापति वेंकैया नायडू ने राज्यसभा के पिछले सत्र में सदन की कार्यवाही में उत्पन्न बाधाओं का जिक्र करते हुए कहा कि वे इससे बेहद व्यथित हैं। उन्होंने कहा की आम जनता सदन में इस तरह के हंगामे और बाधा से बहुत विचलित और भ्रम की स्थिति में है। उन्होंने सदस्यों को स्मरण कराया कि वरिष्ठ सदस्यों के सदन होने के कारण राज्यसभा पर अतिरिक्त जिम्मेदारी है, ऐसे में लोग हमसे सार्वजनिक महत्व के मुद्दों पर एक परिपक्व दृष्टिकोण, निष्पक्ष और संवेदनशील चिंतन तथा सार्थक विचार-विमर्श की अपेक्षा करते हैं, हमें उनकी उम्मीदों पर खरा उतरना होगा और दूसरे सदस्यों के लिए रोल मॉडल बनना होगा। उन्होंने कहा कि देश की जनप्रतिनिधित्व वाली संस्थाओं पर से लोगों का विश्वास खत्म होता जा रहा है, इसे रोकना होगा। सभापति ने कहा कि देश के लोगों की अपेक्षा है कि वरिष्ठ सदस्यों वाली राज्यसभा बेहतर तरीके से काम करे, ऐसे में हमें इस बारे में उदाहरण पेश करना चाहिए। उन्होंने कहा कि लोगों की अपेक्षाएं बहुत अधिक हैं, ऐसे में यदि हम इन्हें पूरा नहीं कर पाए तो यह हमारी विफलता होगी, हम ऐसा कभी नहीं होने दे सकते।
वेंकैया नायडू ने सभी सांसदों से नए सत्र की शुरुआत के साथ ही नई सोच के साथ काम करने की अपील करते हुए कहा कि हमारी संसद को 2022 तक न्यू इंडिया के निर्माण में अहम भूमिका निभानी है और हमारे लिए यह गौरव की बात है। उन्होंने दो तिहाई युवा आबादी वाली जनसंख्या के साथ भारत को एक आकांक्षी देश बताते हुए कहा कि देश का हर नागरिक विकास प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका निभाने का इच्छुक है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि इस परिप्रेक्ष्य में हमें अपनी व्यवस्थाओं को और बेहतर बनाने तथा संस्थाओं को ज्यादा तेजी से अपनी जवाबदेही निभाने लायक बनाने के साथ ही शासन के तौर-तरीकों को जनकल्याण केंद्रित बनाने का काम करना होगा, संसद में बैठे हमलोंगों पर इसकी बड़ी जिम्मेदारी है। उन्होंने राज्यसभा में स्वतः निरस्त हो जाने वाले विधेयकों और संसद को निर्णय लेने वाला अधिक प्रभावी मंच बनाए जाने के बारे में सदस्यों से सुझाव भी मांगे।