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Tuesday 23 July 2019 05:00:23 PM
नई दिल्ली। लोकसभा में सूचना का अधिकार संशोधन विधेयक-2019 पारित कर दिया गया है। इस संशोधन में सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 में संशोधन करने का प्रस्ताव किया गया है, ताकि मुख्य सूचना आयुक्त, सूचना आयुक्तों तथा राज्य मुख्य सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्तों का कार्यकाल, वेतन, भत्ते और सेवा की अन्य शर्तें वही होंगी, जैसा केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित किया जाए। आरटीआई संशोधन विधेयक की बहस में भाग लेते हुए केंद्रीय कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन राज्यमंत्री डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा है कि नरेंद्र मोदी सरकार पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है और इसी सिद्धांत का अनुपालन करते हुए सरकार ने आरटीआई की संख्या कम करने के लिए सरकारी विभागों को अधिकतम जानकारी देने के विस्तार को स्वत: प्रोत्साहित किया है।
लोक शिकायत राज्यमंत्री डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा कि सरकार नागरिकों की भागीदारी के माध्यम से शिकायतों के निवारण पर ध्यान दे रही है, सरकार ने आरटीआई के प्रमुख सिद्धांत को मजबूत किया है और पांच वर्ष के दौरान आरटीआई आवेदनों के लंबित मामले काफी कम हुए हैं। सदस्यों को आश्वासन देते हुए उन्होंने कहा कि सरकार राज्य सूचना आयोगों के संबंध में नियमों को लागू करने के लिए अपने अधिकारों का दुरुपयोग नहीं कर रही है। उन्होंने बताया कि 2005 के मूल आरटीआई अधिनियम के अनुसार सूचना आयुक्तों के संबंध में नियम लागू करने का अधिकार न तो केंद्र न राज्य और न ही समवर्ती सूची के दायरे में आता है, इसलिए राज्य सूचना आयोगों के संबंध में भी कानून बनाना केंद्र सरकार के शेष अधिकारों के अंतर्गत आता है।
सूचना आयोगों और निर्वाचन आयोगों की सेवा शर्तों की तुलना करने के मुद्दे का जवाब देते हुए डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा कि केंद्रीय सूचना आयोग को राज्य सूचना आयोग सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 के प्रावधानों के तहत स्थापित वैधानिक निकाय है, इसलिए भारत के निर्वाचन आयोग तथा केंद्र और राज्य सूचना आयोग के अधिदेश अलग-अलग हैं। उन्होंने कहा कि इसी के अनुसार इनकी स्थिति और सेवा शर्तों को तर्कसंगत बनाने की जरूरत है और सूचना आयुक्तों की नियुक्ति संबंधी मूल अधिनियम में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है, इसीलिए सूचना आयुक्तों की स्वायत्ता कम करने का प्रश्न ही पैदा नहीं होता है।