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Wednesday 24 July 2019 06:08:50 PM
नई दिल्ली। केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) जेएंडके बैंक और उसके पूर्ववर्ती चेयरमैन परवेज अहमद के खिलाफ की गई कार्रवाई में मिले सुराग पर सक्रियतापूर्वक आगे की कार्रवाई करता रहा है। इसी तरह की आगे की एक अन्य कार्रवाई के तहत एक ऐसे समूह के यहां तलाशी एवं जब्ती की कार्रवाई की गई है, जो जम्मू-कश्मीर और देश के अन्य हिस्सों में होटलों का संचालन करने के साथ-साथ व्यावसायिक प्रतिष्ठानों और जानी-मानी हस्तियों को सुरक्षा मुहैया कराता रहा है। जिस समूह के यहां तलाशी ली गई है, उसकी पंजाब में एक विवादास्पद मेडिकल कॉलेज में नियंत्रणकारी हिस्सेदारी थी, जिसे भारतीय चिकित्सा परिषद ने वर्ष 2014 में बंद करने का आदेश दिया था। इस समूह के खिलाफ लगाए गए आरोपों में बैंक अधिकारियों के साथ साठगांठ कर जेएंडके बैंक सहित सार्वजनिक क्षेत्र के कई बैंकों को चूना लगाना, समूह के विभिन्न निकायों में बगैर लेखा-जोखा वाली नकद राशि जमा करना और बंद किए गए मेडिकल कॉलेज के विकास के लिए ली गई धनराशि को प्रमोटरों के निजी लाभ के लिए समूह के होटलों में बड़े पैमाने पर लगाने के मामले शामिल हैं।
तलाशी अभियान के दौरान तलाशी टीम को सार्वजनिक क्षेत्र के विभिन्न बैंकों से लिए गए 74 करोड़ रुपये से भी अधिक के ऋणों को चालबाजी के जरिए निकाले जाने के बारे में भी जानकारी मिली है। तलाशी के दौरान मिले डिजिटल एवं दस्तावेजी साक्ष्यों से ऋणों की मंजूरी में बैंक हितों की रक्षा के लिए बने कारोबारी कानूनों के साथ-साथ विवेकपूर्ण मानकों का उल्लंघन कर बैंक अधिकारियों की चालबाजी के बारे में स्पष्ट रूपसे पता चला है, जिनमें निहित धनराशि 200 करोड़ रुपये से ज्यादा है। ये ऋण आगे चलकर गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां अथवा फंसे कर्ज बन गए। तलाशी अभियान के दौरान इस समूह के प्रमोटरों द्वारा 125 करोड़ रुपये से भी ज्यादा धनराशि की ‘राउंड ट्रिपिंग’ किए जाने के ठोस सुराग भी मिले हैं। ‘राउंड ट्रिपिंग’ के लिए ऐसे संदिग्ध निकायों का उपयोग किए जाने के बारे में जानकारी मिली है, जिनके जरिए प्रमोटर के परिजनों एवं उनके करीबी सहयोगियों को दिए गए असुरक्षित ऋणों के रूपमें 125 करोड़ रुपये की राशि वापस लाई गई है। तलाशी अभियान के दौरान इस समूह के प्रमोटर से 1.28 करोड़ रुपये से भी अधिक की अघोषित नकद राशि और बेहिसाबी या बगैर लेखा-जोखा वाले जेवरात जब्त किए गए हैं।
तलाशी अभियान के दौरान ऐसे स्पष्ट साक्ष्य भी मिले हैं, जिनसे यह पता चलता है कि वित्तीय संस्थानों को गुमराह करने एवं चूना लगाने के लिए जानबूझकर कोशिश की गई है। इस तरह के छल के कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं-मुख्य प्रमोटर के एक परिजन को जम्मू-कश्मीर में एक होटल की जमीन महज 35 लाख रुपये में बेच दी गई। बाद में प्रति माह एक लाख रुपये का लीज किराया उसी डमी रिश्तेदार के बैंक खाते से निकाला गया। इस डमी रिश्तेदार से गहन पूछताछ करने पर पता चला है कि उसे इस तरह के वित्तीय लेन-देन के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं है। यही नहीं समूह की खाता-बही से निकाले गए लीज किराये को हेराफेरी कर समूह के अन्य निकायों के बैंक खातों में वापस डाल दिया गया है। इसी तरह जेएंडके बैंक से बड़ी रकम ऋण के रूपमें प्राप्त करने के लिए इस समूह ने यह झूंठा दावा किया कि समूह द्वारा मुंबई में बनाया जा रहा 60 कमरों वाला होटल अब परिचालन में आ गया है और उससे नकद प्रवाह सृजित हो रहा है। तलाशी लेने वाली टीम को यह पता चला कि मुंबई में इस होटल का निर्माण कार्य अभी जारी है और इसके जल्द पूरा होने के कोई आसार नहीं हैं। यही नहीं, इस भवन के निर्माण की ताजा स्थिति कुछ इस तरह की है, जिसमें 60 कमरों को परिचालन में तुरंत लाना संभव नहीं है, अतः ऐसे में कर्ज की अदायगी के लिए नकद प्रवाह को शीघ्र सृजित करना मुमकिन ही नहीं है।
तलाशी टीम को फर्जी कर्मचारियों पर किए गए खर्चों के बारे में भी साक्ष्य मिले हैं। ऐसे फर्जी लोगों को बड़ी संख्या में चेक जारी किए गए, जिनके नाम विभिन्न कारोबारियों और जानी-मानी हस्तियों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए इस समूह के कर्मचारियों की सूची में दर्ज थे। ये चेक मुख्य प्रमोटर के पास मिले। प्रथम दृष्टया इन फर्जी अथवा डमी लोगों को समूह के कर्मचारियों के रूपमें दर्शाया गया है, ताकि देश में विभिन्न स्थानों पर इस समूह द्वारा मुहैया कराई जा रही सुरक्षा सेवा से जुड़े खर्चों को बढ़ा-चढ़ाकर दर्शाया जा सके। मुख्य प्रमोटर और उनके परिजन उस शैक्षणिक सोसायटी के प्रबंधन एवं नियंत्रणकारी ट्रस्टी थे, जो अब पंजाब में बंद कर दिए गए मेडिकल कॉलेज का संचालन करती थी। विद्यार्थियों के तीन बैचों ने इस मेडिकल कॉलेज में अपना दाखिला कराया था और उन्होंने बाकायदा कैपिटेशन शुल्क सहित फीस अदा की थी। हालांकि सोसायटी ने कभी भी कोई टैक्स रिटर्न दाखिल नहीं किया और तलाशी के दौरान मिले साक्ष्यों से यह पता चलता है कि बंद की जा चुकी शैक्षणिक सोसायटी ने अन्य नियामकीय कानूनों का भी उल्लंघन किया था। यह स्पष्ट है कि विद्यार्थियों से प्राप्त रकम के साथ-साथ उन बैंक ऋणों को भी मुख्य प्रमोटर और उसके परिजनों ने निजी लाभ के लिए चालबाजी से निकाल लिया है, जिनका उपयोग संभवतः मेडिकल कॉलेज से जुड़ी उन बुनियादी ढांचागत सुविधाओं के निर्माण करने में किया गया, जो वास्तव में कभी भी निर्मित नहीं की गईं।