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Wednesday 31 July 2019 04:22:33 PM
नई दिल्ली। केंद्रीय श्रम और रोज़गार राज्यमंत्री संतोष कुमार गंगवार ने लोकसभा में वेतन विधेयक-2019 पेश करते हुए कहा कि यह एक ऐतिहासिक विधेयक है, जिसका उद्देश्य पुराने और अप्रचलित श्रम कानूनों को विश्वसनीय और भरोसेमंद कानूनों में तब्दील करना है, जो वक्त की जरूरत है। संतोष कुमार गंगवार ने कहा कि इस समय 17 मौजूदा श्रम कानून 50 से ज्यादा वर्ष पुराने हैं और इनमें से कुछ तो स्वतंत्रता से पहले के दौर के हैं। उन्होंने कहा कि वेतन विधेयक में शामिल किए गए चार अधिनियमों में से वेतन भुगतान अधिनियम-1936 तो स्वतंत्रता से पहले का है और न्यूनतम वेतन अधिनियम-1948 भी 71 साल पुराना है, इसके अलावा बोनस भुगतान विधेयक-2965 और समान पारिश्रमिक अधिनियम-1976 भी इसमें शामिल किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इस संबंध में ट्रेड यूनियनों, नियोक्ताओं और राज्य सरकारों के साथ व्यापक विचार-विमर्श हुआ है। उन्होंने कहा कि वेतन संहिता का एक मसौदा मंत्रालय की वेबसाइट के माध्यम से सार्वजनिक तौरपर उपलब्ध है, इसके लिए कई लोगों ने अपने मूल्यवान सुझाव दिए हैं।
श्रम और रोज़गार राज्यमंत्री ने कहा कि वेतन संहिता सभी कर्मचारियों और कामगारों के लिए वेतन के समयबद्ध भुगतान के साथ ही न्यूनतम वेतन सुनिश्चित करती है। उन्होंने कहा कि कृषि मजदूर, पेंटर, रेस्टोरैंट और ढाबों पर काम करने वाले लोग, चौकीदार आदि असंगठित क्षेत्र के कामगार जो अभी तक न्यूनतम वेतन की सीमा से बाहर थे, उन्हें न्यूनतम वेतन कानून बनने के बाद कानूनी सुरक्षा हासिल होगी। उन्होंने कहा कि विधेयक में सुनिश्चित किया गया है कि मासिक वेतन पाने वाले कर्मचारियों को अगले महीने की 7 तारीख तक वेतन मिलेगा, वहीं जो लोग साप्ताहिक आधार पर काम कर रहे हैं उन्हें हफ्ते के आखिरी दिन और दैनिक कामगारों को उसी दिन पारिश्रमिक मिलना चाहिए। उन्होंने उम्मीद जताई कि वेतन संहिता एक मील का पत्थर साबित होगी और इससे असंगठित क्षेत्र के 50 करोड़ कामगारों को सम्मानजनक जीवन मिलेगा। उन्होंने विधेयक को पारित कराने में सहयोग करने वाले सदस्यों के प्रति आभार प्रकट किया। उन्होंने कहा कि न्यूनतम वेतन के वैधानिक संरक्षण करने को सुनिश्चित करने तथा देश के 50 करोड़ कामगारों को समय पर वेतन भुगतान मिलने के लिए यह एक ऐतिहासिक कदम है। उन्होंने कहा कि यह कदम जीवन सरल बनाने और व्यापार को ज्यादा आसान बनाने के लिए भी वेतन संहिता के माध्यम से उठाया गया है।
वेतन विधेयक-2019 की विशेषताएं हैं कि वेतन संहिता सभी कर्मचारियों के लिए क्षेत्र और वेतन सीमा पर ध्यान दिए बिना सभी कर्मचारियों के लिए न्यूनतम वेतन और वेतन के समय पर भुगतान को सार्वभौमिक बनाती है। वर्तमान में न्यूनतम वेतन अधिनियम और वेतन का भुगतान अधिनियम दोनों को एक विशेष वेतन सीमा से कम और अनुसूचित रोज़गारों में नियोजित कामगारों पर ही लागू करने के प्रावधान हैं। इस विधेयक से हर कामगार के लिए भरण-पोषण का अधिकार सुनिश्चित होगा और मौजूदा लगभग 40 से 100 प्रतिशत कार्यबल को न्यूनतम मजदूरी के विधायी संरक्षण को बढ़ावा मिलेगा। इससे यह भी सुनिश्चित होगा कि हर कामगार को न्यूनतम वेतन मिले, जिससे कामगार की क्रयशक्ति बढ़ेगी और अर्थव्यवस्था में प्रगति को बढ़ावा मिलेगा। न्यूनतम जीवनयापन की स्थितियों के आधार पर गणना किए जाने वाले वैधानिकस्तर वेतन की शुरुआत से देश में गुणवत्तापूर्ण जीवनस्तर को बढ़ावा मिलेगा और लगभग 50 करोड़ कामगार इससे लाभांवित होंगे। विधेयक में राज्यों द्वारा कामगारों को डिजिटल मोड से वेतन के भुगतान को अधिसूचित करने की परिकल्पना की गई है।
विभिन्न श्रम कानूनों में वेतन की 12 परिभाषाएं हैं, जिन्हें लागू करने में कठिनाइयों के अलावा मुकद्मेबाजी को भी बढ़ावा मिलता है, इस परिभाषा को सरल बनाया गया है, जिससे मुकद्मेबाजी कम होने और एक नियोक्ता के लिए इसका अनुपालन सरलता करने की उम्मीद है। इससे प्रतिष्ठान भी लाभांवित होंगे, क्योंकि रजिस्टरों की संख्या, रिटर्न और फॉर्म आदि न केवल इलेक्ट्रॉनिक रूपसे भरे जा सकेंगे और उनका रख-रखाव किया जा सकेगा, बल्कि यह भी कल्पना की गई है कि कानूनों के माध्यम से एक से अधिक नमूना निर्धारित नहीं किया जाएगा। वर्तमान में अधिकांश राज्यों में विविध न्यूनतम वेतन हैं। वेतन पर कोड के माध्यम से न्यूनतम वेतन निर्धारण की प्रणाली को सरल और युक्तिसंगत बनाया गया है। रोज़गार के विभिन्न प्रकारों को अलग करके न्यूनतम वेतन के निर्धारण के लिए एक ही मानदंड बनाया गया है।
न्यूनतम वेतन निर्धारण मुख्य रूपसे स्थान और कौशल पर आधारित होगा, इससे देश में मौजूद 2000 न्यूनतम वेतन दरों में कटौती होगी और न्यूनतम वेतन की दरों की संख्या कम होगी। निरीक्षण प्रक्रिया में अनेक परिवर्तन किए गए हैं। इनमें वेब आधारित रेंडम कम्प्यूटरीकृत निरीक्षण योजना, अधिकार क्षेत्र मुक्त निरीक्षण, निरीक्षण के लिए इलेक्ट्रॉनिक रूपसे जानकारी मांगना और जुर्मानों का संयोजन आदि शामिल हैं। इन सभी परिवर्तनों से पारदर्शिता और जवाबदेही के साथ श्रम कानूनों को लागू करने में सहायता मिलेगी। ऐसे अनेक उदाहरण थे कि कम समयावधि के कारण कामगारों के दावों को आगे नहीं बढ़ाया जा सका। अब सीमा अवधि को बढ़ाकर तीन वर्ष किया गया है और न्यूनतम वेतन, बोनस, समान वेतन आदि के दावे दाखिल करने को एक समान बनाया गया है। फिलहाल दावों की अवधि 6 महीने से 2 वर्ष के बीच है।