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Friday 2 August 2019 06:36:20 PM
नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने देशभर के वन अधिकारियों का जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता के नुकसान से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने के लिए खुद को ज्ञान और कौशल से लैस होने का आह्वान किया है। उन्होंने कहा कि वन अधिकारियों की पारंपरिक भूमिका मौलिक रूपसे बदल रही है और उन्हें अब न केवल वनों का स्थायी प्रबंधन सौंपा गया है, बल्कि उन्हें वनों पर निर्भर लोगों को भी शिक्षित करना है। उपराष्ट्रपति ने आज नई दिल्ली में उपराष्ट्रपति भवन में भारतीय वन सेवा के 2018 बैच के प्रशिक्षु अधिकारियों के साथ बातचीत करते हुए कहा कि जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता के नुकसान को दूर करने के लिए भारत को एक विश्व नेता बनना चाहिए और अन्य राष्ट्रों के अनुसरण करने योग्य एक मॉडल बनाना चाहिए।
उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने वन संरक्षण पर लोगों को शिक्षित और प्रोत्साहित करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि बढ़ती आबादी को देखते हुए वन क्षेत्र का विस्तार करने की गुंजाइश बहुत कम है, यह समय है कि हम उनका संरक्षण और सुरक्षा करें। वन अधिकारियों को वनों का संरक्षक बताते हुए उन्होंने कहा कि उनका कार्य राष्ट्रीय वन नीति को लागू करना और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण, भागीदारी, सतत प्रबंधन के माध्यम से देश की पारिस्थितिक स्थिरता सुनिश्चित करना है। उपराष्ट्रपति विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच एक अच्छा संतुलन बनाने में वन अधिकारियों से महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का आग्रह करते हुए कहा कि भारत जैसे तेजी से विकसित राष्ट्र के समावेशी और सतत विकास के लिए यह संतुलन आवश्यक है।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि वनस्पतियों और जीवों की कई प्रजातियों के नैसर्गिकवास के नुकसान और विखंडन और लापरवाह दोहन के कारण वह विलुप्त होने के खतरे का सामना कर रही हैं। उपराष्ट्रपति ने आगाह किया कि जैवविविधता के नुकसान से पारिस्थितिकीय तंत्र में बड़े और अप्रत्याशित बदलाव हो सकते हैं, जो सभी को प्रतिकूल रूपसे प्रभावित कर सकते हैं। उपराष्ट्रपति ने प्रशिक्षु अधिकारियों से भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र के वनों को संरक्षित करने पर विशेष जोर देने को कहा, क्योंकि 18 वर्ष से इस क्षेत्र में लगातार वृक्षों की कमी हो रही है। इस अवसर पर आईजीएनएफए के निदेशक ओंकार सिंह, वन महानिदेशक सिद्धांत दास और गणमान्य व्यक्ति मौजूद थे।