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सनातन संस्कृति की एक धारा है बुद्ध-लालजी टंडन

बौद्ध धर्म पर्यावरण एवं भूमंडलीकरण विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी

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Monday 25 March 2013 10:02:21 AM

international buddhist research institute

लखनऊ। कालीचरण पीजी कालेज लखनऊ एवं अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में बौद्ध धर्म पर्यावरण एवं भूमंडलीकरण विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का राजर्षि पुरषोत्तम दास टंडन सभागार में आयोजन किया गया। लखनऊ के सांसद लालजी टंडन ने इसमें मुख्य अतिथि के रूप में भाग लिया। गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय के संकायाध्यक्ष डॉ आनंद सिंह, अंतराष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान के निदेशक डॉ योगेंद्र सिंह, विधान परिषद सदस्य डॉ महेंद्र सिंह, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के प्रोफेसर परमानंद सिंह, लखनऊ विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर अमर सिंह एवं बंग्लादेश से आई वेन भिक्खु पाल ने माँ सरस्वती एवं महात्मा बुद्ध की प्रतिमाओं पर पुष्पांजलि अर्पित कर दीप प्रज्जवलन किया।
सांसद एवं मुख्य अतिथि लालजी टंडन ने इस अवसर पर भारतीय संस्कृति को विश्व की श्रेष्ठतम संस्कृति बताया और कहा कि भारत से उपजे सभी पंथ सामाजिक-सौहार्द-शांति और समन्वय के संवाहक हैं, सनातन संस्कृति की एक धारा है-बुद्ध। भारतवर्ष में जिस समय कर्मकांडों की जटिलता एवं ‘वैदिक हिंसा, हिंसा न भवति’ के नाम पर जीव-हिंसा अपने चरम पर थी, उस समय अहिंसा का उपदेश प्रदान करने हेतु बुद्ध का अवतरण हुआ, अहिंसा मात्र जीव हिंसा का निषेध नहीं अपितु प्राणि मात्र के कल्याणार्थ एक प्रवृत्ति है, डॉ अंबेडकर ने कहा था कि हिंदू धर्म की विकृतियों का समाधान बुद्धिज्‍़म में है, मानव मूल्यों की रक्षा, दया, करूणा, प्रेम, अहिंसा आदि बौद्ध पंथ के तत्व हैं।
अंतराष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान के निदेशक डॉ योगेंद्र सिंह ने कहा कि बौद्ध धर्म ने विश्व को एक सरल तथा आडंबर रहित धर्म प्रदान किया, बौद्ध धर्म के माध्यम से भारत का सांस्कृतिक संपर्क विश्व के साथ स्थापित हुआ, आधुनिक संघर्षमय युग में यदि बौद्ध धर्म के सिद्धांतों और आदर्शों का अनुसरण करें तो निःसन्देह संपूर्ण विश्व में शांति एवं सद्भाव स्थापित हो सकता है। मुख्य वक्ता गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय नोएडा के संकायाध्यक्ष डॉ आनंद सिंह ने कहा कि धारणक्षम्य विकास के लिए बुद्धवाद ही एक मात्र विकल्प है, बुद्धवादी विचारधारा के आधार पर ही भारत विश्व की अगुवाई करेगा, आज सारी दुनिया सुख-शांति, समृद्धि के लिए बौद्ध धर्म अपना रही है, चीन, मध्य एशिया, जापान, कोरिया, तिब्बत आदि देशों ने बौद्ध धर्म के साथ भारतीय संस्कृति को आत्मसात किया है, हमें दूसरों की नकल करने की ज़रूरत नहीं है, भारत अपनी श्रेष्ठ नीतियों के आधार पर ही विश्व के अग्रणी राष्ट्रों में खड़ा होगा।
शिक्षाविद् एवं विधान परिषद सदस्य डॉ महेंद्र सिंह ने कहा कि बौद्ध दर्शन व्यवहारिकता की भावभूमि पर आधारित है, केवल धन-संपदा पर निर्भरता आत्मिक खुशी एवं शांति नहीं प्रदान कर सकती है, वर्तमान शिक्षा मनुष्य को अर्थमानव बना रही है, जबकि शिक्षा का उद्देश्य मानव कल्याण होना चाहिए, बुद्ध के धम्म जीवन दर्शन में सभी मनुष्य समान है, बुद्धवाद से ही निर्धनता उन्मूलन एवं ग्रामीण विकास संभव है, पर्यावरण नष्ट कर सुख-शांति वैभव नहीं प्राप्त किया जा सकता है, प्रकृति के तादात्मय स्थापित करने का संदेश दुनिया को भारत ने दिया है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे लखनऊ विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर अमर सिंह ने कहा कि बौद्ध धर्म ने जिन समस्याओं का हल प्रस्तुत किया, वे सारी मानव जाति की समस्याएं थीं, बौद्ध एक जीवन पद्धति है, जो आज भी उतनी ही महत्वपूर्ण है, जितनी बुद्ध के समय में थी, जीवन के सभी क्षेत्रों में बुद्ध प्रासंगिक हैं।
कालेज के प्राचार्य डॉ देवेंद्र कुमार सिंह ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि बुद्ध की अहिंसात्मक नीति ने पशुधन रक्षा में महत्वपूर्ण योगदान दिया, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था सुदृढ़ हुई। उन्होंने कहा यह वर्ष कालीचरण इंडाउमेंट ट्रस्ट की शताब्दी का वर्ष है, हमारा उद्देश्य विद्यार्थियों में छिपी प्रतिभा को उभारकर एक सुयोग्य नागरिक का निमार्ण कराना है, जिससे देश विकास की तरफ़ अग्रसर हो, संगोष्ठी का उद्देश्य विश्व में शांति समन्वय और समृद्धि लाना है। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के प्रोफेसर परमानंद सिंह ने कहा कि पर्यावरण को बचाना है तो बुद्ध के संदेश का अनुसरण करना ही होगा। कार्यक्रम का संचालन डॉ नीरज शुक्ला एवं आभार ज्ञापन डॉ राजकुमार सिंह ने किया। अतिथियों को अंगवस्त्र एवं प्रतीक चिन्ह से कालेज प्राचार्य ने सम्मानित किया।
संगोष्ठी के प्रथम दिन 40 शिक्षाविद्, शोध छात्रों ने अपने शोध-पत्र प्रस्तुत किए, जिसमें प्रमुख रूप से डॉ दिलीप कुमार, डॉ अनूप कुमार सिंह, डॉ पंकज सिंह, डॉ मीना कुमारी, डॉ डीसीआर पांडेय, डॉ अर्चना मिश्रा, कुसुम शुक्ला, डॉ सुभाषचंद्र पांडेय, डॉ मनोज पांडेय, डॉ धीरेन्द्र सिंह, डॉ राकेश सिंह, डॉ अल्का द्विवेदी, डॉ स्वेता पांडेय, डॉ सन्तोष पांडेय, डॉ अरुण सिंह, डॉ पूनम अस्थाना, डॉ दीपमाला, डॉ बबिता पांडेय, डॉ वैशाली अग्रवाल, डॉ रश्मि मिश्रा, डॉ रूपेश कुमार गुप्ता, डॉ शांतुनु कुमार श्रीवास्तव, डॉ प्रीतिश वैश्य, डॉ अमित भदौरिया और डॉ हरनाम सिंह ने विभिन्न विषयों पर अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए।

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