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Thursday 8 August 2019 05:27:22 PM
नई दिल्ली। केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा ने आज नई दिल्ली में ट्राईफेड और जनजातीय मामलों के मंत्रालय के शहद, बांस और लाख पर फोकस के साथ जनजातीय उद्यम पर राष्ट्रीय कार्यशाला का उद्घाटन किया। अर्जुन मुंडा ने इस अवसर पर बांस तथा बांस अर्थव्यवस्था और लाख तथा शहद पर एक प्रकाशन जारी किया और कहा कि राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन बांस, शहद और लाख पर जनजातीय उद्यम को प्रोत्साहित करने में कार्य योजना को प्रखर बनाने के लिए किया गया है। अर्जुन मुंडा ने कहा कि इस तरह के प्रयासों का फोकस केवल रोज़गार सृजन तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि बाज़ार की आवश्यकताएं पूरी करने पर भी फोकस होना चाहिए।
जनजातीय मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि समर्थन प्रणाली और अनुसंधान बाज़ार प्रेरित होने चाहिएं और बाजार में मांग और आपूर्ति के बीच संतुलन बनाए रखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इन उत्पादों के लिए बाज़ार को नवाचारी और अनुसंधान आधारित होना चाहिए, उत्पादों की गुणवत्ता और कीमतें भी उचित ढंग से रखी जानी चाहिएं। उन्होंने कहा कि जनजातीय लोगों के साथ उद्यमी की तरह व्यवहार करें और उन्हें टेक्नोलॉजी में उन्नत बनाने के प्रयास किए जाने चाहिएं। जनजातीय मामलों की राज्यमंत्री रेणुका सिंह ने कहा कि ऐसी पहलों से वन धन विकास केंद्र मजबूत होंगे। उन्होंने कहा कि वन धन, जनधन और पशुधन के एकीकरण से जनजातीय लोगों की जिंदगी में सुधार आएगा, वन धन योजना में जनजातीय लोगों को समर्थन देने के लिए स्वयं सहायता समूहों का क्लस्टर है और यह वन क्षेत्रों में तथा आसपास रहने वाले लोगों की पारिवारिक आय का मुख्य स्रोत है।
जनजातीय मंत्रालय में सचिव दीपक खांडेकर ने कहा कि वन धन योजना के लिए बांस, शहद और लाख को शामिल करने का कारण यह है कि ये सामग्रियां पहले से बाज़ार में हैं और उत्पादकों यानी जनजातीय उद्यमियों को खरीद-प्राथमिक स्तर की प्रोसेसिंग, भंडारण, मूल्यवर्धन और विपणन श्रृंखला तक ले जाने में सहायक हैं। बांस उत्पादों, लाह उत्पादों और शहद पर तकनीकी सत्र का आयोजन किया गया, जिसमें विशेषज्ञों ने इन उत्पादों से संबंधित सफलता की गाथाओं, उत्पादन, उपयोग और व्यवसाय पर प्रेजेंटेशन दिया। राष्ट्रीय कार्यशाला का उद्देश्य बांस, शहद और लाख के क्षेत्र में कौशल और स्थानीय संसाधनों पर आधारित जनजातीय उद्यम स्थापित करने के लिए रणनीति बनाना है। कार्यशाला में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों ने विचार-विमर्श किया और कार्ययोग्य तथा वाणिज्यिक रूपसे व्यावहारिक जनजातीय उद्यम स्थापित करने के बारे में अपनी राय प्रकट की।