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Saturday 17 August 2019 05:27:46 PM
नई दिल्ली। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह, उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस और शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने पारसी नववर्ष पर पारसी समाज को बधाई और शुभकामनाएं दी हैं। बधाई संदेश में राष्ट्रपति ने कहा है कि पारसी नववर्ष पर मैं सभी देशवासियों विशेष रूपसे पारसी भाइयों और बहनों को बधाई एवं शुभकामनाएं देता हूं। अलग-अलग बधाई संदेशों में इन सभी ने कहा है कि पारसी समुदाय ने राष्ट्र की प्रगति और खुशहाली में अमूल्य योगदान दिया है और अपनी विशिष्ट संस्कृति से इसे समृद्ध बनाया है। उन्होंने कहा कि नववर्ष का यह पर्व सभी के लिए उल्लास और आनंद लेकर आए तथा देशवासियों के बीच परस्पर सौहार्द और भाईचारे को और भी मजबूत करे। उल्लेखनीय है कि अगस्त माह में पारसी समाज का नववर्ष मनाया जाता है। पारसी नववर्ष को 'नवरोज' कहा जाता है।
नवरोज़ ईरानी नववर्ष का नाम है, जिसे फारसी नया साल भी कहा जाता है और इसे मुख्यतः ईरानी दुनियाभर में मनाते हैं। यह मूलत: प्रकृति प्रेम का उत्सव है। यह पर्व प्रकृति के उदय, ताज़गी, हरियाली, प्रफुल्लता और उत्साह का मनोरम दृश्य पेश करता है। प्राचीन परंपराओं और संस्कारों के साथ नौरोज़ का उत्सव न केवल ईरान बल्कि कुछ पड़ोसी देशों में भी मनाया जाता है। कुछ अन्य भाषाई समूह जैसे भारत में पारसी समुदाय भी इसे नए साल की शुरुआत के रूपमें मनाता है। इतिहास के अनुसार पश्चिम एशिया, मध्य एशिया, काकेशस, काला सागर बेसिन और बाल्कन में इसे 3,000 से भी अधिक वर्ष से मनाया जाता है। यह ईरानी कैलेंडर के पहले महीने यानी फारवर्दिन का पहला दिन भी है। यह उत्सव मनुष्य के पुनर्जीवन और उसके हृदय में परिवर्तन के साथ प्रकृति की स्वच्छ आत्मा में चेतना और निखार पर बल देता है।
पारसी समाज में अग्नि का विशेष महत्व है और इसकी खास पूजा की जाती है। नागपुर, मुंबई, दिल्ली और गुजरात के कई शहरों में आज भी कई साल से अखंड अग्नि प्रज्वलित हो रही है। इस ज्योत में बिजली, लकड़ी, मुर्दों की आग के अलावा तकरीबन 8 जगह से अग्नि ली गई है। इस ज्योत को रखने के लिए भी एक विशेष कमरा होता है, जिसमें पूर्व और पश्चिम दिशा में खिड़की, दक्षिण में दीवार होती है। पारसी नववर्ष दुनिया के कई हिस्सों में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, जिसमें ईरान, पाकिस्तान, इराक, बहरीन, तजाकिस्तान, लेबनान तथा भारत में यह विशेषतौर पर मनाया जाता है। पारसी समाज का इतिहास और उसकी परंपरा : 1380 ईस्वी पूर्व जब ईरान में धर्मपरिवर्तन की लहर चली तो कई पारसियों ने अपना धर्म परिवर्तित कर लिया, लेकिन जिन्हें यह मंजूर नहीं था, वे देश छोड़कर भारत आ गए। यहां आकर उन्होंने अपने धर्म के संस्कारों को आज तक सहेजकर रखा हुआ है।
पारसी समाज में सबसे खास बात यह है कि पारसी समाज के लोग धर्मपरिवर्तन के खिलाफ होते हैं। माना जाता है कि अगर पारसी समाज की लड़की किसी दूसरे धर्म में शादी कर ले तो उसे अपने ही धर्म में रखा जा सकता है, लेकिन उसके पति और बच्चों को धर्म में शामिल नहीं किया जाता है, ठीक इसी तरह पारसी लड़कों के साथ भी होता है। पारसी समुदाय के लिए पारसी नववर्ष आस्था और उत्साह का संगम है, जिसके दम पर पारसी आज भी अपने धर्म और इससे जुड़े रीति-रिवाजों को संभाले हुए हैं। नववर्ष पारसी समुदाय में इसे खौरदाद साल के नाम से भी जाना जाता है। पारसियों में 1 वर्ष 360 दिन का और शेष 5 दिन गाथा के लिए होते हैं। इस दिन समाज में रात 3.30 बजे से खास पूजा-अर्चना होती है। धर्म के लोग चांदी या स्टील के पात्र में फूल रखकर अपने पूर्वजों को याद करते हैं।