हृदयनारायण दीक्षित
वैदिक काल में चैत्र माह 'मधुमास' है। ऋग्वेद के ऋषि मधुरस से सराबोर हैं, 'हवाएं मधुमती हैं, जलों में मधु है, धरती-आकाश मधु से भरे हुए हैं, सब तरफ मधुरस है, मधुप्रीति है।' मधुमास में पूरी प्रकृति मधु छंदस् है। भारतीय इतिहास के महानायक श्रीराम के जन्म की मंगल मुहुर्त भी यही मधुमास है। तुलसीदास ने लिखा, 'नवमी तिथि मधुमास पुनीता/शुकुल पक्ष अभिजित हर प्रीता।' चैत्र का आगमन मंगल भवन है। राम जन्म की बेला, नवरात्र की शक्ति उपासना। लहलहाती फसल, महकते वन उपवन। चैत्र माह ही राम के राज्याभिषेक के लिए भी चुना गया था। राजा दशरथ ने वशिष्ठ और वामदेव से कहा था, 'चैत्रं श्रीमानयं मासः पुण्यः पुष्पित काननः/यौवराज्याय रामस्य सर्वमेवोप कल्पयताम्-चैत्र का मास श्रीमान है, वन उपवन पुष्पित हैं, राम के राज्याभिषेक की तैयारी हो' लेकिन बाधांए आ गयीं। राम को वनवास मिला। सीताहरण हुआ। राम-रावण युद्ध हुआ तब आया 'रामराज्य'। रामराज्य की स्वप्नद्रष्टा भारत की मनीषा सोचें। राम और रावण में से किसी एक का पक्ष चुनें और लड़ें। रावण के पक्ष में रहने वाले भी स्वर्ग गये थे, राम के पक्ष वालों को रामराज्य मिला। लेकिन 'तटस्थ' जीवित होकर भी मुर्दा ही रहे।
श्रीराम मर्यादा पुरूषोत्तम हैं। वे लोकश्रुति में हैं। स्मृति में हैं। इतिहास में हैं। वे संज्ञा हैं, सर्वनाम हैं, वे भारत का मन हैं, अंतरंग हैं, बहिरंग हैं। प्रीति और प्यार हैं। रस हैं, छन्द हैं। गीत और काव्य हैं। प्रीति और अनुभूति हैं। तरूणाई और यौवन हैं। वे लोकआस्था में ब्रह्म हैं। मंगल भवन अमंगल हारी हैं। वे सृष्टि के कण कण में हैं, प्रतिपल स्पंदन में हैं। सो वंदन हैं और वंदनीय हैं। डा लोहिया भी राम कथा पर मोहित थे। लोहिया के अनुसार राम उत्तर दक्षिण एकता के देवता है और रामायण उत्तर दक्षिण एकता का ग्रन्थ। उन्होंने कहा, 'राम की पूर्णता मर्यादित व्यक्तित्व में है। उन जैसा मर्यादित जीवन कहीं और नहीं, न इतिहास में, न कल्पना में। न्याय के लिए संघर्ष के प्रतीक हैं-रामानंद सागर है।' रामराज्य भारत का आदर्श स्वप्न है। वाल्मीकि ने लिखा, 'काले वर्षति पर्जन्यः सुभिक्षं विमला दिशः-समय पर वर्षा, सब तरफ समृद्धि। इसी तरह 'नाकाले म्रियते कश्चिन् व्याधिः प्राणिनां तथा-न अकाल मृत्यु, न रोग, न पीड़ा। (उत्तरकाण्ड 99 सर्ग) 'रामराज्य' अतीत में है, भारत के मन में है और भविष्य का सपना भी है। गांधी रामराज्य का सपना बुन रहे थे और लोहिया भी। रामरसायन की अपनी मस्ती है। विश्व के सभी भरतवंशी आज राम जन्मदिवस की इसी मस्ती में हैं।
क्या राम सिर्फ काव्य कल्पना हैं? पार्जीटर के 'पुराण टेक्सट आफ दि डायनेस्टीज आफ दि कलि एज' में पुराणों के अध्ययन का ऐतिहासिक महत्व है। पौराणिक विवेचन में मनु पहले राजा थे। मनु ऋग्वेद (10.62.8) में हैं। उनके बड़े पुत्र इक्ष्वाकु ऋग्वेद (10.60.4) में राजा हैं। इक्ष्वाकु अयोध्या के राजा थे। इक्ष्वाकु की 41वीं पीढ़ी में राजा सगर और 45वीं में भगीरथ। इक्ष्वाकुवंश की 60वीं पीढ़ी में दिलीप फिर दिलीप का पोता रघु, रघु के पुत्र अज, अज के पुत्र दशरथ और दशरथ के पुत्र श्रीराम। श्रीराम इक्ष्वाकुवंश की 65वीं पीढ़ी में थे। वाल्मीकि ने इन्हीं श्रीराम को अपना नायक बनाया। वाल्मीकि के राम मनुष्य ज्यादा हैं, ईश्वर कम हैं। तुलसीदास के राम ईश्वर हैं, घटघट व्यापी हैं परब्रह्म हैं लेकिन वाल्मीकि के राम हमारे पूर्वज हैं, मर्यादा पुरूषोत्तम हैं। राम सबको भाये। संस्कृत प्राकृत सहित विश्व की तमाम भाषाओं में रामकथाएं लिखी गयीं। तमिल कवि कम्बन ने 11वीं सदी में ही राम कथा लिखी। इंडोनेशिया में भी रामायण राष्ट्रीय महत्व वाला ग्रन्थ है। कालिदास ने रघुवंश में राम के समय के इतिहास बोध की चर्चा की है। भवभूति और राजशेखर ने रामायण को इतिहास बताया है। बौद्ध जातकों में अयोध्या के मान्धाता, दशरथ और राम का उल्लेख है। बाली, जावा, मलेशिया, लाओस, कम्बोडिया, इंग्लैण्ड और अमेरिका तक राम कथा की धूम रहती है।
श्रीराम इतिहास ही हैं। वे मनुष्य की तरह क्रोध करते हैं। वे सीता को लेकर रोते भी हैं। वे युद्धविजय के बाद सीता से कहते हैं, 'मैंने पुरूषार्थ के द्वारा शत्रु को हराकर तुम्हे छुड़ा लिया।' (युद्धकाण्ड 116वाँ सर्ग श्लोक 2) वे वन गमन के निर्देश को नियतिवाद बता रहे थे लेकिन लंकाविजय को 'दैव सम्पादित दोषो मानुषेण माया जितः'-दैव की दोषपूर्ण योजना को मैंने मनुष्य होकर भी जीत लिया।' (वही श्लोक 5) यहां दैववाद, नियतिवाद पर मनुष्य के पुरूषार्थ की विजय है। वे अपमान के बदले का मानवीय स्वभाव भी बताते है 'यत कर्तव्यं मनुष्येण धर्षणां प्रतिभार्जिता-अपमान का बदला लेना मनुष्य का कर्तव्य है।' (वही, श्लोक 13) किस्किंधा का राजा बाली सुग्रीव से ज्यादा ताकतवर था। वे बाली से मित्रता करके रावण के युद्ध में ज्यादा अच्छा गठबंधन बना सकते थे। लेकिन उन्होंने सुग्रीव का साथ निभाया। राम की दृष्टि में सीता निष्कलंक थी। लेकिन लोकमत का आदर बीच में था। सीता अग्नि में प्रविष्ट हुई लेकिन अग्नि की आंच राम को भी झुलसा गयी। सीता ने अग्नि प्रवेश के पूर्व कहा, 'कुछ स्त्रियों के गलत आचरण को लेकर आप समूची स्त्री जाति पर आरोप लगा रहे हैं। राम इस प्रश्न पर दग्ध हैं लेकिन लोक मर्यादा का पालन जरूरी है। वाल्मीकि के अनुसार अग्नि देव श्रीराम से कहते हैं 'एषा ते राम वैदेही पापमस्यां न विद्यते-श्रीराम यह वैदेही पापरहित है।' (वही, सर्ग 118, श्लोक 5) भारतीय परम्परा में अग्नि साक्षी है।
कालिदास के 'रघुवंश' में पुष्पक विमान है। राम और सीता पुष्पक में हैं। विमान माल्यवान पर्वत से गुजरा तो राम ने सीता से कहा, 'जब वर्षा हुई, तब तुम्हारी याद आई, वर्षा के कारण पोखरों से उठी गंध, अधखिली मंजरियों वाले कदम्ब पुष्प और भौरों के मनोहर स्वर तुम्हारे बिना बहुत अखरे।' राम समुद्र देखकर सीता से कहते हैं 'सगर ने अश्वमेध किया। कपिल आश्रम में घोड़ा मिला। इसके पूर्व सगर पुत्रों ने धरती खोद डाली, यहां समुद्र बन गया।' फिर रघु की कथा सुनाते हैं। श्रीराम जाते समय पुल का सहारा लेते हैं और लंका विजय के बाद कुबेर के विमान का। दुनिया के किसी भी देश की प्राचीन कथाओं में विमान नहीं है। वायुमार्ग से उड़ने की आकांक्षा का आदि केन्द्र भारत है। ऋग्वेद के तमाम देवता रथ पर चलते हैं। विष्णु का गरूड़ आकाश मार्ग पकड़ता है। नारद वायु मार्ग से ही उड़ते हैं। राम भी विमान का उपयोग करते हैं। भारतीय काव्य में आकाश मार्ग की प्यास बड़ी गहरी है। भारत का मन ऊर्ध्वगामी है। मनुष्य की सम्पूर्ण ऊर्जा का ऊर्ध्वागमन राम है, इसी का अधोगमन है काम।
लोक मर्यादा का पालन आसान नहीं है। रामकथा में पग पग पर परीक्षा है। सीता की परीक्षा दो बार लेकिन राम की परीक्षा बार-बार बारम्बार। सीता गर्भ से हैं। लोक आक्षेप हैं। राम की अग्नि परीक्षा है। 'मेरी आत्मा सीता को शुद्ध समझती है। लेकिन लोकापवाद बढ़ा है।' (उत्तर काण्ड 45वाँ सर्ग श्लोक 10, 11) फिर संसार का मानवीय सिद्धांत समझाते हैं, 'जिसकी बदनामी होती है और जब तक अपयश की चर्चा है, तब तक वह अधम लोकों में रहता है।' (वही, 13) यहां राम भी साधारण मनुष्य की तरह निन्दा से भयभीत हैं। राम कहते है, 'देवता भी अपकीर्ति की निन्दा और कीर्ति की प्रशंसा करते हैं।' (वही, 13) लव और कुश श्रीराम के दरबार में रामकथा सुना रहे हैं। राम ने वाल्मीकि को संदेश भेजा कि सीता मेरा कलंक दूर करने के लिए शपथ लें। सीता वाल्मीकि के साथ आईं। वाल्मीकि ने कहा, 'यह सीता उत्तमव्रता है और धर्मपरायण है। यदि मैं झूठ बोलूं तो मुझे मेरी जीवन भर की तपस्या का कोई फल न मिले। (उत्तरकाण्ड सर्ग 96, श्लोक 16-22) श्रीराम ने कहा कि मुझे सीता की शुद्धता पर पूरा विश्वास है। तो भी लोक समुदाय के बीच शुद्धता का प्रमाण जरूरी है।' (वही सर्ग 97, 1-10) यहां लोक बड़ा है।
'मर्यादा पालन' के मार्ग में राम हैं तो बस राम ही हैं। यह मर्यादा भी उन्होंने स्वयं नहीं बनाई। मर्यादा लोक गढ़ता है, लोक ही उत्तीर्ण या अनुत्तीर्ण करता है। सीता ने उन्हें कड़ी सजा सुनाई। सीता ने 3 बार शपथ ली 'मैं श्रीराम के सिवा दूसरे पुरूष का चिन्तन नहीं करती, यदि यह सत्य है तो पृथ्वी मुझे गोद में ले।' धरती फटी, सीता धरती में समा गयी। आहत श्रीराम खम्भे के सहारे खड़े हो गये। श्रीराम का संसार सूना 'शून्यमिदं जगत्' हो गया। वे अशांत 'शान्तिं मनसागमत्' थे। (वही, सर्ग 99 श्लोक 4) मर्यादा का मार्ग कंटकाकीर्ण है-श्रुतंचैवयत् कंटाकीर्ण मार्ग। हे! मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम! आपका आर्शीवाद सभी को प्राप्त हो!