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Wednesday 11 September 2019 03:22:01 PM
लखनऊ। लखनऊ विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग और उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में भारतेंदु हरिश्चंद्र की जयंती पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ, जिसका केंद्रीय विषय 'भारतेंदु हरिश्चंद्र के साहित्य का राष्ट्रीय सामाजिक एवं सांस्कृतिक प्रदेश' था। विभागाध्यक्ष प्रोफेसर योगेंद्रप्रताप सिंह ने इस अवसर पर कहा कि भारतेंदु का साहित्य बहुआयामी है, उन्होंने कविता, नाटक, निबंध, यात्रा वृत्तांत और आलोचना के माध्यम से हिंदी साहित्य को समृद्धि प्रदान की। प्रोफेसर सूर्यप्रसाद दीक्षित ने कहा कि भारतेंदु हरिश्चंद्र ने एक मंडल की स्थापना की थी, जिसमें वे स्वयं शामिल थे, वे एक व्यक्ति नहीं बल्कि एक युग थे। प्रोफेसर सूर्यप्रसाद दीक्षित ने 'निज भाषा उन्नति अहे' की व्याख्या करते हुए कहा कि यह केवल हिंदी ही नहीं, अपितु और भी मात्र भाषाओं के उत्थान की बात है। उन्होंने कहा कि भारतेंदु हरिश्चंद्र ने जिस गजल परंपरा का प्रारम्भ किया था, वह आज भी साहित्य एवं समाज के लिए महत्वपूर्ण है।
हिंदुस्तान अकादमी प्रयागराज के कार्यकारी अध्यक्ष प्रोफेसर उदयप्रताप सिंह ने भारतेंदु हरिश्चंद्र की लेखनशैली पर विस्तार से चर्चा की। प्रोफेसर सदानंद गुप्त ने कहा कि भारतेंदु हरिश्चंद्र ने रीतिकालीन परम्परा से साहित्य को निकालकर समाज से जोड़ने का अभूतपूर्व कार्य किया। द्वितीय अकादमिक सत्र में प्रोफेसर सूरज बहादुर थापा ने कहा कि भारतेंदुजी का व्यक्तित्व हमें दो संदर्भों में देखना चाहिए पहला उनका उपनिवेशवादी अंग्रेजी सत्ता पर व्यंग्यात्मक लेखन, दूसरा भारतेंदु हरिश्चंद्र का सामाजिक सांस्कृतिक संदर्भों में लेखन, जिसके अंतर्गत स्त्री शिक्षा, विधवा विवाह एवं धार्मिक परंपराओं पर भारतेंदु हरिश्चंद्र के विचार पर विस्तार से चर्चा की। विशिष्ट अतिथि के रूपमें केरल से पधारे डॉ एजे अब्राहम ने भारतेंदु हरिश्चंद्र और हिंदी के महत्व को सम्पूर्ण भारत के परिप्रेक्ष्य में देखने की बात कही। डॉ ब्रजेश श्रीवास्तव ने कहा कि भारतेंदुजी को तद्युगीन परिस्थितियों के साथ-साथ आधुनिक संदर्भ में भी देखने की जरूरत है, उनकी स्त्री विषयक दृष्टि प्रगतिशील है। नार्वे से आए डॉ सुरेशचंद्र शुक्ल ने कहा कि हिंदी की महत्ता को वैश्विकस्तर पर लाने में भारतेंदु हरिश्चंद्र का योगदान सराहनीय है। प्रोफेसर रमेशचंद्र त्रिपाठी ने कहा कि भारतेंदु की पत्रकारिता का अत्यधिक महत्व है, उनसे प्रभावित होकर 1881 में लाहौर से ज्वाला प्रसाद ने भारतेंदु पत्र निकाला था।
जनसंचार संस्थान दिल्ली से आए गोपाल मिश्र ने कहा कि भारतेंदु हरिश्चंद्र ने लोक साहित्य के सृजन से जनजीवन के रहस्यों को उद्घाटित करने का कार्य किया और उनका लोक साहित्य जनजागरण का प्रमुख साधन रहा एवं भाषायी उदारता के साथ पत्र-पत्रिकाओं का समाज में क्या स्थान है, इसको समझाने का बखूबी प्रयास किया है। डॉ दाऊजी गुप्त ने भारतेंदु हरिश्चंद्र के 'विद्यासुंदर' नाटक का जिक्र करते हुए उनकी नारी विषयक दृष्टि स्पष्ट की। उन्होंने कहा कि भारतेंदुजी को गार्सा द तासी ने विश्व साहित्य का श्रेष्ठ साहित्यकार माना है और उनके कृतित्व की विविध विधाओं पर सूक्ष्म रूपसे प्रकाश डालने की आवश्यकता है। सांस्कृतिक संध्या में सतीश आर्य की 'गंगा' विषयक कविताओं का पाठ हुआ। डॉ कृष्णा श्रीवास्तव ने भारतेंदु हरिश्चंद्र कृत 'गंगावतरण' कविता का पाठ किया। इस अवसर पर सुब्रत राय के निर्देशन में छात्रों ने 'अधेर नगरी' एकांकी का मंचन किया। सांस्कृतिक संध्या की अध्यक्षता हिंदुस्तानी एकेडमी के अध्यक्ष प्रोफेसर यूपी सिंह ने किया। इस अवसर पर हिंदी विभाग लखनऊ विश्वविद्यालय और विभिन्न विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय से आए शिक्षकों एवं छात्र-छात्राओं ने सहभागिता की। उद्घाटन सत्र का संचालन प्रोफेसर अलका पांडेय ने किया और प्रोफेसर पवन अग्रवाल ने धन्यवाद ज्ञापन किया।