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Monday 14 October 2019 12:39:26 PM
नई दिल्ली। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के 26वें स्थापना दिवस समारोह को मुख्य अतिथि के रूपमें संबोधित करते हुए भारत की सामाजिक संरचना में मानवाधिकारों की वर्तमान स्थिति पर अपने विचार रखे। अमित शाह ने कहा कि मानवाधिकार के मामले में भारत और विश्व की मान्यताएं एवं परिस्थितियां बहुत भिन्न हैं, विश्व के मानवाधिकार मानकों पर भारत का आंकलन करना सही नहीं होगा। उन्होंने कहा कि भारत की सामाजिक संरचना एवं पारिवारिक व्यवस्था में मानवाधिकार की रक्षा समाहित है, चाहे वे बच्चों के हो, महिलाओं के हो या पिछड़े वर्ग के लोगों के हो, किसी भी गांव या शहर में देखें तो बिना किसी कानून की आवश्यकता के मानवाधिकारों की रक्षा करने की संरचना और संस्थाएं स्थापित मिलेंगी। गृहमंत्री ने कहा कि विश्व में मानवाधिकार के क्षेत्र में सबसे परिपूर्ण काम करने वाले देशों में से भारत एक देश बन सकता है। उन्होंने कहा कि कायदे-कानून की परिधि से ऊपर उठकर, विभिन्न क्षेत्रों में स्वतः ही जो लोग अपना दायित्व समझकर मानवाधिकार का रक्षण कर रहे हैं, उन्हें प्रक्रिया के साथ जोड़ना ज़रूरी है और ऐसे लोगों को मंच प्रदान करने का दायित्व मानवाधिकार आयोग का है।
गृहमंत्री अमित शाह ने मानवाधिकारों का संकुचित अर्थ निकालने का विरोध करते हुए कहा कि इसमें कोई दो राय नहीं कि हर एक नागरिक को संविधान प्रदत्त रक्षा मिलनी ही चाहिए, परंतु इस विषय के कई ऐसे आयाम और दृष्टिकोण हैं, जिनके बारे में गहनता से चिंतन करने की आवश्यकता है, ताकि उनका दुरुपयोग न हो। उन्होंने कहा कि भारतीय समाज सदियों से केवल अपने परिवार के लिए सोचने वाली संकुचित धारणा से ऊपर उठकर 'वसुधैव कुटुंबकम सूत्र' का पाठ विश्व को पढ़ाता आया है, इस सूत्र में मानवाधिकार का विषय समाहित है, आज हमें इस सूत्र को एक वैश्विक मंच प्रदान करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि भारत के कई संतों ने अपने जीवन के कार्यकलापों में मानवाधिकार के संरक्षण के लिए काम किया है और साहित्य की रचना की है। उन्होंने कहा कि आज की परिस्थिति में इस साहित्य का महत्व किसी भी मानवाधिकार कानून से ऊपर है। महात्मा गांधी की डेढ़ सौवीं जयंती वर्ष में उनके सिद्धांतों का उल्लेख करते हुए अमित शाह ने कहा कि गांधीजी के सिद्धांत आज भी शाश्वत और प्रासंगिक हैं, जिन्हें विश्व के सामने रखा जाना बहुत आवश्यक है। गांधीजी के भजन 'वैष्णव जन तो तेने कहिये, पीड़ पराई जाने रे' का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि आज भी वैश्विकस्तर किसी भी मानवाधिकार के चार्टर से ऊपर है। अमित शाह ने कहा की मानवाधिकार के क्षेत्र में विश्वस्तर पर कई बड़ी चुनौतियां हैं, जिनमें सबसे बड़ी चुनौती ग़रीबी और हिंसा के बढ़ते स्तर से है। उनका मानना है कि भारत में मानवाधिकार के सभी हितधारक जैसेकि सरकार, संसद, न्यायपालिका, मीडिया, सिविल सोसाइटी आदि सबको ग़रीबी उन्मूलन के लिए कार्य करना अत्यंत आवश्यक है।
अमित शाह ने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार ने 'सबका साथ सबका विकास' की धारणा के साथ गरीबी उन्मूलन के लिए लड़ाई लड़ने का एक अद्वितीय प्रयास किया है और सफलतापूर्वक परिणाम भी प्राप्त किए हैं। गृहमंत्री ने पूछा कि आज़ादी के 70 साल बाद भी देश में अगर 5 करोड़ लोग बिना घर के जी रहे थे या 3.5 करोड़ लोग ऐसे थे, जिनके घर में बिजली नहीं थी या वे करोड़ों महिलाएं, जिनके घर में गैस चूल्हा नहीं था और धुएं से उनका स्वास्थ्य बिगड़ रहा था तो क्या यह उनके मानवाधिकार का उल्लंघन नहीं है? गृहमंत्री ने स्वास्थ्य सुविधाओं और शौचालयों के अभाव में करोड़ों लोगों के बिगड़ते स्वास्थ्य का हवाला देते हुए कहा कि मोदी सरकार के आने के बाद ये सारी सुविधाएं भारत के करोड़ों नागरिकों को मिली हैं। उन्होंने कहा कि मानवाधिकार की रक्षा हेतु भारत सरकार की इन पहलों और उपलब्धियों को विश्वपटल पर रखने की आवश्यकता है। अमित शाह ने आतंकवाद और नक्सलवाद को मानवाधिकार का सबसे बड़ा दुश्मन बताते हुए कहा कि जहां एक तरफ पुलिस अत्याचार से हुई हिरासत में मौत के खिलाफ भारत सरकार की शून्य सहिष्णुता की नीति है, वहीं आतंकवाद और नक्सलवाद के प्रति भी भारत सरकार शून्य सहिष्णुता की नीति पर अडिग है। गृहमंत्री ने कहा कि अकेले कश्मीर में 30 साल में 40000 से ज्यादा लोगों की मौत आतंकवाद के कारण हुई है, नक्सलवाद के चलते देश में कई जिले विकास से वंचित रह गए, कई लोगों की जानें गई, क्या यह सब मानवाधिकारों का हनन नहीं है। मानवाधिकार की रक्षा का दायित्व सरकार का है यह कहते हुए अमित शाह ने कहा कि भारत के संविधान में मानवाधिकारों की रक्षा समाहित है और सरकार इसे सुनिश्चित करने के लिए कटिबद्ध है, जिस प्रकार भारत के संविधान और उसके निर्माताओं की चर्चाओं में मानव अधिकारों की रक्षा के महत्व दिया और इसके लिए व्यवस्था को स्थापित किया, ऐसा किसी और देश के संविधान में नहीं पाया जाता।
गृहमंत्री अमित शाह ने मानवाधिकार अधिनियम में संशोधन का हवाला देते हुए कहा कि अब भारत का मानव अधिकार कानून पहले से कहीं अधिक समावेशी बन गया है। उन्होंने मानवाधिकार आयोग के 26 साल के सफर में आई चुनौतियों व उपलब्धियों पर चिंतनकर मानवाधिकार कानून को और सुदृढ़ बनाने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। अमित शाह ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकारों के संरक्षण और सुरक्षा के लिए जो मानक बनाए गए हैं, वे भारत जैसे देश के लिए पर्याप्त नहीं है, इनके बंधन और दायरों में रहकर अगर हम मानव अधिकार पर विचार करेंगे तो हमारे देश की समस्याओं को समाप्त करने में शायद ही सफल हो पाएंगे, हमें इन मानकों के दायरे से ऊपर उठकर के नए दृष्टिकोण से अपने देश की समस्याओं को समझकर उनका समाधान ढूंढना होगा। उन्होंने कहा कि मानवाधिकार आयोग देश के नागरिकों के अधिकारों के प्रति सजग भी है और उनका प्रहरी भी है। गृहमंत्री ने आयोग को अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थानों से 'ए' स्टेटस प्रदान किए जाने पर बधाई दी। मानवाधिकारों की रक्षा के क्षेत्र में कानून के होने और सरकार के अपने दायित्व पर अमित शाह ने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार अपने नागरिकों के मानव अधिकारों के सजग प्रहरी के रूपमें कार्य कर रही है और ऐसा प्रयास कर रही है कि मानवाधिकार कानून के उपयोग के बिना ही अपने नागरिकों के अधिकारों की रक्षा की जा सके। उनका मानना है कि कानून होना अच्छी बात है, परंतु जब सरकार स्वयं ही आगे बढ़कर मानव अधिकारों की रक्षा के लिए काम करे, इससे उत्तम कुछ नहीं हो सकता।
गृहमंत्री ने फिर एक बार सभी हितधारकों से मानवाधिकारों के प्रति एक 'भारतीय दृष्टिकोण' रखते हुए अधिकारों के उलंघन को उजागर करने और शोध के आधार पर मानवाधिकारों की रक्षा के लिए सरकार का मार्गदर्शन करने की अपील की। गृहमंत्री ने कहा कि आनेवाले दिनों में मानवाधिकारों के एक नए दृष्टिकोण से हम भारत को विश्वपटल पर सर्वप्रथम देश के रूपमें खड़ा करेंगे, जहां किसी प्रकार के मानवाधिकार के उल्लंघन की संभावना नहीं होगी और नरेंद्र मोदी सरकार इस उद्देश्य के लिए कटिबद्ध है। समारोह में आयोग के अध्यक्ष, पूर्व न्यायाधीश एचएल दत्तू और गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।