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'नई पीढ़ी की साहित्य में रुचि घट रही है'

डॉ दुर्गाप्रसाद की पुस्तकों का ऑस्ट्रेलिया में लोकार्पण

हिंदी का लेखन बहुरंगी और बहुआयामी है-डॉ अग्रवाल

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Thursday 17 October 2019 02:30:14 PM

dr. durgaprasad's books released in australia

पर्थ/ नई दिल्ली। ऑस्ट्रेलिया के खूबसूरत शहर पर्थ की अग्रणी साहित्यिक और सांस्कृतिक संस्था ‘संस्कृति’ तथा हिंदी समाज ऑफ पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के संयुक्त तत्वावधान में भारत के लेखक डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल की दो सद्य प्रकाशित पुस्तकों ‘समय की पंचायत’ और ‘जो देश हम बना रहे हैं’ का समारोहपूर्वक लोकार्पण किया गया। दिल्ली के कौटिल्य प्रकाशन से प्रकाशित इन दोनों किताबों में लेखक और जानेमाने स्तम्भकार डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल ने अपने समय, समाज, शिक्षा, विचार, साहित्य, संस्कृति, संचार माध्यमों आदि पर बड़ी बेबाकी से टिप्पणियां की हैं। इस मौके पर डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल ने कहा कि हिंदी लेखन बहुरंगी और बहुआयामी है। पर्थ के मैनिंग सीनियर सिटीजन सेंटर में इस लोकार्पण समारोह में नवोदित हिंदी रचनाकार और साहित्यानुरागी उपस्थित थे।
लोकार्पण समारोह के प्रारम्भ में ‘संस्कृति’ के वरिष्ठसदस्य और हिंदी समाज ऑफ वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर प्रेमस्वरूप माथुर ने अतिथि लेखक डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल का संक्षिप्त परिचय दिया। डॉ अग्रवाल ने भी अपनी किताबों की विषयवस्तु की संक्षिप्त जानकारियां दीं। पुस्तकों का लोकार्पण हिंदी समाज के अध्यक्ष अनुराग सक्सेना, हिंदी समाज की प्रतिनिधि रीता कौशल, हिंदी समाज की ट्रस्टी राजश्री मालवीय और प्रोफेसर प्रेमस्वरूप माथुर ने किया। अनुराग सक्सेना ने इस बात पर हर्ष व्यक्त किया कि भारत के एक जानेमाने लेखक की दो नव प्रकाशित कृतियों का लोकार्पण उनकी संस्था के तत्वावधान में हुआ है। उन्होंने यह भी जानकारी दी कि संस्‍था ‌का ये आयोजन इस वर्ष का पहला आयोजन है। इस अवसर पर पर्थ से प्रकाशित प्रथम हिंदी उपन्यास ‘पड़ाव’ (वाणी प्रकाशन) की रचनाकार लक्ष्मी तिवारी भी उपस्थित थीं। कार्यक्रम का संचालन किया राजश्री मालवीय ने किया। संस्था की प्रतिनिधि और ‘भारत भारती’ पत्रिका की सम्पादक रीता कौशल ने पुष्प गुच्छ भेंट करके डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल का अभिनंदन किया।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जन्म की एक सौ पचासवीं वर्षगांठ को स्मरण करते हुए कार्यक्रम का शुभारम्भ गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर रचित उनके प्रिय गीत ‘एकला चालो रे’ के हिंदी अनुवाद के सुमधुर गायन से हुआ। गीत को शरद सी शर्मा और उनके साथियों ने प्रस्तुत किया। डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल ने ‘आज का समाज और साहित्य’ विषय पर एक रोचक व्याख्यान दिया। उन्होंने समाज और साहित्य के पारस्परिक रिश्तों को स्पष्ट करने के बाद हिंदी साहित्य की नवीनतम प्रवृत्तियों और महत्वपूर्ण कृतियों की दिलचस्प अंदाज़ में चर्चा की। उन्होंने इस बात का प्रत्याख्यान किया कि आज की पीढ़ी की साहित्य में रुचि घट रही है। उन्होंने कहा कि साहित्य को समाज का दर्पण मानने की बात भी सहज स्वीकार्य नहीं है, जबकि साहित्य को केवल दर्पण मानना उसकी भूमिका को सीमित करके देखना है।
डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल ने हिंदी साहित्य की नवीनतम प्रवृत्तियों की चर्चा करते हुए कहा कि आज हिंदी में कविताएं खूब लिखी जा रही हैं, गद्य के क्षेत्र में काफी कुछ नया और उत्तेजक हो रहा है, खूब नए प्रयोग हो रहे हैं, कथेतर की दुनिया में अनेक महत्वपूर्ण काम हुए हैं, विधाओं में आवाजाही बढ़ी है और सबसे बड़ी बात यह कि इंटरनेट व तकनीक के सहज सुलभ हो जाने से लोगों में लिखने का चाव और उत्साह खूब बढ़ा है, ब्लॉग्स ने भी बहुत सारे लोगों की सर्जनात्मकता को प्रोत्साहित किया है। डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल का विचार था कि आज हिंदी का अधिकांश लेखन अपने परिवेश की बेहतरी की चिंता में हो रहा है, समाज में जो भी घटित होता है, विशेष रूपसे बुरा, वह लेखक को परेशान करता है और वह अपनी परेशानी को लेखन में व्यक्त करता है। इस मामले में साहित्य को जो शाश्वत प्रतिपक्ष कहा जाता है, वह सच्चे अर्थों में चरितार्थ हो रहा है, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि हिंदी का सारा ही लेखन परिवेश की चिंता में हो रहा है।

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