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Tuesday 22 October 2019 03:33:33 PM
लद्दाख। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने पूर्वी लद्दाख में सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण कर्नल चेवांग रिनचेन सेतु का उद्घाटन कर दिया है। इस सेतु का निर्माण श्योक नदी पर सीमा सड़क संगठन ने किया है और जो पूर्वी लद्दाख में दुरबुक और दौलत बेग ओल्डी को जोड़ता है। इस अवसर पर रक्षामंत्री ने एक बार फिर दोहराया है कि सरकार देश में शांति को कम करने के किसी भी खतरे से प्रभावी तरीके से निपटने के लिए सीमा पर बुनियादी ढांचे को सहारा देने के लिए दृढ़ संकल्पित है। रक्षामंत्री ने कहा कि वर्तमान सुरक्षा स्थिति को ध्यान में रखते हुए अपनी सीमाओं को मजबूत बनाना समय की मांग है, सीमा क्षेत्र का विकास सरकार की योजना का एक अभिन्न अंग है और यह सेतु उसी रणनीति का हिस्सा है। राजनाथ सिंह ने कहा कि चीन के साथ भारत सौहार्दपूर्ण संबंध साझा करता है। उन्होंने कहा कि सीमा मुद्दे पर दोनों देशों के बीच मतभेद हैं, लेकिन इस मुद्दे को काफी समझदारी और जिम्मेदारी के साथ निपटाया जा रहा है। रक्षामंत्री ने कहा कि भारत-चीन ने स्थिति को और भड़कने अथवा हाथ से निकलने की इजाजत नहीं दी है।
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि कश्मीर भारत का आंतरिक और अभिन्न मसला है, यहां तककि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ महाबलीपुरम में हुई बैठक में कश्मीर का कोई जिक्र नहीं किया, जोकि चीन की भी इस तथ्य को मान्यता है। उन्होंने कहा कि आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई के संबंध में चीन का हाल का बयान भी महत्वपूर्ण है। रक्षामंत्री ने कहा कि लद्दाख को एक अलग संघशासित प्रदेश बनाने के फैसले के साथ ही सरकार ने लोगों की लंबे समय की मांग पूरी की है जो अब क्षेत्र में विकास के नए द्वार खोलेगी। उन्होंने कहा कि देश के अन्य भागों की तरह लद्दाख भी अब निवेश स्थल बन जाएगा और यहां राजस्व एवं स्थानीय लोगों के लिए रोज़गार के अवसर बढ़ेंगे। रक्षामंत्री ने कहा कि अनुच्छेद 370 को हटा देने से आतंकवाद और पृथकतावाद का खात्मा हुआ है, जिसके कारण आजादी के बाद हजारों निर्दोष लोगों की जान गई।
राजनाथ सिंह ने कहा कि अनुच्छेद 370 हटा देने के फैसले से मानवाधिकार मजबूत होंगे और क्षेत्र में महिलाएं सशक्त होंगी। राजनाथ सिंह ने कर्नल चेवांग रिनचेन सेतु को सकारात्मक बदलाव और देश के चहुंमुखी विकास के सरकार के संकल्प का प्रतीक बताया। उन्होंने कहा कि यह सेतु न केवल दुर्ग को दौलत बेग ओल्डी से जोड़ता है, बल्कि लद्दाख की जनता और जम्मू-कश्मीर के सभी अंदरूनी इलाकों को देश के अन्य भागों से जोड़ता है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि इस तरह की पहलों से इस क्षेत्र के लोगों को भारत के विकास की गाथा का हिस्सा बनने का अवसर मिलेगा। सीमा सड़क संगठन को प्रेरणाप्रद और अनुशासनात्मक बल के रूप में शाबाशी देते हुए राजनाथ सिंह ने काफी कठिन और दुर्गम क्षेत्रों के दूरदराज वाले इलाकों में बुनियादी ढांचे का विकास करने में प्रमुख भूमिका निभाने के लिए उसकी सराहना की। उन्होंने इन इलाकों में रहने वाले लोगों की मदद करने में प्रमुख भूमिका निभाने के लिए भी बीआरओ की सराहना की। रक्षामंत्री ने सम्पर्क को विकास का एक सबसे महत्वपूर्ण पहलू बताते हुए कहा कि लोगों के बीच आपस में सम्पर्क के जरिये नए रास्ते खोले जा सकते है।
राजनाथ सिंह ने यह कहते हुए कि बीआरओ लद्दाख के विकास के लिए 900 करोड़ रुपये का इस्तेमाल कर रहा है विश्वास व्यक्त किया कि यह क्षेत्र जल्दी ही न केवल घरेलू स्तर पर बल्कि विदेशी पर्यटकों का केंद्र बन जाएगा। उन्होंने वित्तवर्ष 2018-19 में 1200 किलोमीटर सड़क का निर्माण करने के लिए बीआरओ को बधाई दी। रक्षामंत्री ने कर्नल चेवांग रिनचेन को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि उनका साहस और शौर्य सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उन्होंने कर्नल रिनचेन की पुत्री डॉ फुनसोग आंगमो को देश सेवा में उनके पिता के योगदान के लिए सम्मानित किया। इस अवसर पर सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत, उत्तरी कमान के जनरल ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ लेफ्टिनेंट जनरल रणबीर सिंह, बीआरओ के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल हरपाल सिंह, लद्दाख के सांसद जामयांग त्सेरिंग नामग्याल और सेना, बीआरओ और रक्षा मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद थे।
काराकोरम और चांग चेनमो पर्वत श्रृंखलाओं के बीच स्थित कर्नल चेवांग रिनचेन सेतु 400 मीटर लंबा पुल है, जिसे माइक्रो पाइलिंग टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करते हुए करीब 15,000 फीट की ऊंचाई पर बनाया गया है। इसका निर्माण 15 महीने के रिकॉर्ड समय में पूरा हुआ है। कर्नल चेवांग रिनचेनका जन्म लद्दाख क्षेत्र में सुमूर नूब्रा घाटी में 11 नवम्बर 1931 को हुआ था। लेह और परतापुर क्षेत्र की रक्षा करने के लिए उनके अदम्य साहस के कारण उन्हें लद्दाख का शेर के नाम से जाना जाता था। वह सशस्त्र सेनाओं के उन छह जवानों में से एक हैं, जिन्हें दूसरा सर्वोच्च भारतीय शौर्य पुरस्कार, महावीर चक्र दो बार प्रदान किया गया।