Saturday 9 November 2019 06:43:07 PM
दिनेश शर्मा
नई दिल्ली। जय श्रीराम! अयोध्या के अंतःपुर में श्रीराम जन्मभूमि स्थान विवाद पर सुप्रीमकोर्ट ने चालीस दिन की रोज सुनवाई के बाद आज अपना ऐतिहासिक फैसला सुना दिया है। अयोध्या में सत्तर साल से विवादित श्रीराम जन्मभूमि किसी और की नहीं, बल्कि रामलला की ही है। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता में पांच जजों की पीठ ने सर्वसम्मति से यह फैसला दिया है। सुप्रीमकोर्ट ने माना है कि श्रीराम लला ही मुख्य पक्षकार हैं, बाकी कोई और पक्ष किसी भी प्रकार से श्रीराम जन्मभूमि पर अपने मालिकाना दावे को सिद्ध नहीं कर सका है। लिहाजा यह भूमि श्रीराम जन्मभूमि न्यास को देने का भी फैसला दे दिया गया है, यानी विवादित जमीन श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए आजाद कर दी गई है। सुप्रीमकोर्ट ने सरकार से मुस्लिम पक्ष को भी अयोध्या में किसी और स्थान पर मस्जिद निर्माण के लिए तीन माह में पांच एकड़ जगह देने को कहा है। सुप्रीमकोर्ट ने केंद्र सरकार को श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए तीन महीने के अंदर एक ट्रस्ट बनाने और वहां भव्य श्रीराम मंदिर निर्माण का प्रारूप प्रस्तुत करने का आदेश दिया है। सुप्रीमकोर्ट के इस फैसले के विरुद्ध अब कोई भी नई रिट याचिका दाखिल नहीं हो सकती है, यदि कोई चाहे तो वह केवल इस मामले के रिव्यू में जा सकता है। इस प्रकार श्रीराम जन्मभूमि स्थान का विवाद अंतिम रूपसे निस्तारित हो गया है।
श्रीराम जन्मभूमि स्थान के विवाद पर यह एक ऐसा फैसला है, जिसे देश-दुनिया ने दिल से सराहा है, मगर दूसरी तरफ से अभी से ही जो विरोधाभासी स्वर सुनाई दे रहे हैं, उनसे लगता है कि श्रीराम जन्मभूमि स्थान के विवाद पर सुप्रीमकोर्ट का फैसला स्वीकार करने की बातें करने वालों के गले नहीं उतरा यह फैसला? बहरहाल! अंत भला सो भला। कोई माने या ना माने, यह सुप्रीमकोर्ट के पांच न्यायाधीशों का सर्वसम्मत फैसला है। जिन लोगों ने इस फैसले पर सवालिया निशान लगाने की कोशिश की है, उससे यह सिद्ध होता है कि करीब एक हज़ार साल से एशिया में चले आ रहे इस्लामिक जेहाद का यह एक सुनियोजित अभियान है, जो आज भी जारी है, जो हिंदुस्तान में राजनीतिक दलों में मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति अख्तियार करने का दुष्परिणाम है और जो इस समय देश में इस्लामिक आतंकवाद के रूपमें अपने चरम पर है। सुप्रीमकोर्ट के इस फैसले का सभी धर्मों एवं मतों के लोगों ने स्वागत किया है और इस फैसले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बयान तो दुनियाभर में बड़ा ही गरिमामय और स्वागत योग्य माना गया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि देश के सर्वोच्च न्यायालय ने अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि स्थान के विवाद पर अपना फैसला सुना दिया है, मगर इस फैसले को किसी की हार या किसी की जीत के रूपमें नहीं देखा जाना चाहिए। प्रधानमंत्री ने कहा है कि रामभक्ति हो या रहीमभक्ति, ये समय हम सभी के लिए भारतभक्ति की भावना को सशक्त करने का है, इसलिए देशवासियों से मेरी अपील है कि वे शांति, सद्भाव और एकता बनाए रखें। वास्तव में सुप्रीमकोर्ट का यह फैसला सभी के लिए स्वागत योग्य और कई मायनों में महत्वपूर्ण है, जो यह बताता है कि किसी भी सामान्य या गंभीर विवाद को सुलझाने में कानूनी प्रक्रिया का पालन कितना जरूरी होता है। इस मामले में हरएक पक्ष को अपनी दलील रखने के लिए पर्याप्त अवसर दिया गया। इससे भारतीय न्याय व्यवस्था और न्यायिक प्रक्रियाओं में जनसामान्य का विश्वास और भी ज्यादा मजबूत हुआ है, भले ही कुछ लोग कह रहे हैं कि वे इस फैसले से संतुष्ट नहीं हैं या वे देश के मुसलमानों को इसके खिलाफ उकसाने में लग गए हैं।
सुप्रीमकोर्ट के फैसले के प्रति मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और उनके कुछ लोगों की नकारात्मक प्रतिक्रियाएं हिंदुस्तान की नई पीढ़ी पर नकारात्मक असर डाल सकती हैं, जिनसे आगे चलकर किसी ऐतिहासिक सांप्रदायिक सौहार्द और भाईचारे की आशा नहीं की जा सकती है, क्योंकि इनकी प्रतिक्रियाओं के फलस्वरूप अभी से ही काशी और मथुरा की आजादी के भी स्वर सुनाई देने लगे हैं। भारतीय मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और जमियत उलमा-ए-हिंद के कुछ प्रतिक्रियावादी लोग इस फैसले से खुश नहीं हैं और भारत में उदारवादी मुसलमानों की कोई पूछ नहीं है। मुस्लिम समाज के ये वो लोग हैं, जिन्होंने मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के वजूद को नकारने और अयोध्या में उनके जन्मभूमि स्थान को चुनौतियां देने में कभी भी कोई कसर बाकी नहीं रखी है। हिंदुस्तान की हजारों साल पुरानी भाईचारे की भावना बहुत मजबूत मानी जाती है, लिहाजा 130 करोड़ भारतीयों को शांति और संयम, भारत के शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की अंतर्निहित भावना का परिचय देना होगा।