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Tuesday 02 April 2013 06:28:08 AM
लखनऊ। हजरतगंज विधानसभा के सामने धरना स्थल पर प्रदेश के विभिन्न जिलों के मूर्धंय आरटीआई एक्टिविस्टों ने एश्वर्याज सेवा संस्थान एवं उत्तर प्रदेश सूचना का अधिकार बचाओ अभियान (यूपीसीपीआरआई) के तत्वावधान में भैंस के आगे बीन बजाकर एवं सांपों को दूध पिलाकर उत्तर प्रदेश सरकार एवं उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग से सूचना के अधिकार का प्रभावी क्रियांवयन कराने के लिए प्रतीकात्मक प्रदर्शन किया। उत्तर प्रदेश में सूचना के अधिकार के क्रियांवयन की दुर्दशा को लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं आरटीआई एक्टिविस्टों ने सरकार एवं उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग को जमकर कोंसा। तमाम सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं आरटीआई एक्टिविस्टों का कहना रहा कि आज प्रदेश के एक आम आदमी को सही सूचनाएं प्राप्त करने में जितनी अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, उसके लिए उत्तर प्रदेश सरकार एवं उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग बराबर के दोषी हैं।
आरटीआई कार्यकर्ता डॉ नूतन ठाकुर ने बताया कि उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग में वर्तमान में जो आयुक्त हैं, उनके अधिनियम की मूल भावना के अनुरूप प्रभावी ढंग से कार्य का निष्पादन नहीं किया जा रहा है, जिसके कारण भयहीन होकर जन सूचना अधिकारी एवं प्रथम अपीलीय अधिकारी या तो सूचना देते नहीं हैं या फिर गलत सूचनाएं प्रदान करते हैं। सामाजिक कार्यकर्ता एवं आरटीआई एक्टिविस्ट सलीम बेग ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार ने अभी तक सूचना के अधिकार अधिनियम की धारा 4-1(बी) का पालन नहीं किया, जबकि इस धारा के अनुसार सूचना के अधिकार अधिनियम के अधिनियमन से 120 दिन के भीतर सूचनाओं को विभाग की वेबसाइटों पर स्वतःअपलोड कर दिया जाना चाहिए था, जो कि अब तक उत्तर प्रदेश सरकार ने नहीं किया।
अखिलेश सक्सेना ने राज्य सूचना के आयुक्तों की नियुक्ति को एक अहम मुद्दा कहा। एडवोकेट आरपी मिश्रा ने कहा कि इस अधिनियम के तहत उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग अधिनियम की धारा 20(1) के तहत अब तक जितने अधिकारियों पर दंड आरोपित हुए हैं, उनमें से तमाम ऐसे अधिकारी हैं, जिन पर आरोपित दंड की वसूली अभी तक नहीं की जा सकी। डॉ डीडी शर्मा ने कहा कि प्रथम अपीलीय अधिकारी, वादी की प्रथम अपील पर सुनवाई हेतु वादी को सूचना नहीं भेजते किंतु ऐसे प्रथम अपीलीय अधिकारियों के विरूद्ध उत्तर प्रदेश सरकार एवं उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग एकदम मौन है। उन्होंने कहा कि यदि प्रथम अपील करने पर ही प्रथम अपीलीय अधिकारी, सूचना मांगने वाले व्यक्ति को जन सूचना अधिकारी के सम्मुख अपनी आपत्ति रखने का अवसर दे, तो आयोग में इतने वाद इकट्ठा ही न हों, जितने आज लंबित हो चुके हैं।
प्रदर्शन में मौजूद डॉ नीरज कुमार ने कहा कि सूचना के अधिकार को लेकर राज्य स्तरीय समिति की बैठकें न होने के कारण विभिन्न विभाग सूचना के अधिकार अधिनियम की घनघोर उपेक्षा कर रहे हैं। एडवोकेट त्रिभुवन कुमार गुप्ता का कहना रहा कि सर्वोच्च न्यायालय के याचिका संख्या 210/2012 (नमित शर्मा बनाम भारत सरकार) के अंतिम निर्णय एवं सूचना के अधिकार में सूचना आयुक्तों की नियुक्ति की विहित व्यवस्था का शाब्दिक एवं आत्मिक अनुपालन सुनिश्चित करते हुए, प्रदेश में रिक्त पड़े सूचना आयुक्तों के आठ पदों पर पारदर्शी प्रक्रिया अपनाते हुए, तीन माह में नियुक्तियां करने के आदेश पर कोई अमल नहीं हो रहा है। राम स्वरूप यादव ने कहा कि उत्तर प्रदेश में सूचना के अधिकार का कानून इस कदर दम तोड़ रहा है कि जन सूचना अधिकारियों के अधिकतम तीस दिनों में सूचना दिए जाने की प्राविधानिक विधिक व्यवस्था का अनुपालन न करने पर प्रथम अपीलीय अधिकारियों एवं विभागीय अधिकारी उसका संज्ञान नहीं ले रहे हैं।
एश्वर्याज सेवा संस्थान की सचिव एवं उत्तर प्रदेश सूचना का अधिकार बचाओ अभियान (यूपीसीपीआरआई) की समन्वयक उर्वशी शर्मा ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार से सूचना के अधिकार के प्रयोगकर्ताओं के उत्पीड़न को रोकने के लिए नए कानून बनाने की मांग की गई, क्योंकि एक आम आदमी के ऐसी सूचना मांगे जाने पर जिससे कि कोई भ्रष्टाचार उजागर होता है या उजागर होने की संभावना होती है, विभागों से सूचना मांगने वाले व्यक्ति का उत्पीड़न किया जाता है एवं उस व्यक्ति का राह चलना भी दुश्वार हो जाता है। उर्वशी ने कहा कि ऐसे तमाम मामले सामने आए हैं, जिनमें सूचना मांगने वाले व्यक्ति को फोन पर धमकी दी गई, उन्हें मारा-पीटा गया और उनकी सच्चाई तथा भ्रष्टाचार विरोधी आवाज़ को दबाने के लिए उनकी हत्याएं तक कर दी गईं। हत्याओं के मामले में अनेक ऐसे संभावित अपराधी हैं, जिनके विरूद्ध अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई। ऐसे संभावित अपराधियों पर रासुका की धाराओं में मुकदमा पंजीकृत करने की मांग की गई।
मीडिया प्रभारी ज्ञानेश पांडेय ने बताया कि इन सभी मामलों को लेकर यूपीसीपीआरआई का दस सदस्यीय शिष्टमंडल जल्द ही राज्यपालए मुख्यमंत्री एवं मुख्य सचिव से व्यक्तिगत भेंट कर उनको तीन माह का समय देते हुए एक ज्ञापन हस्तगत कराएगा, यदि इतने पर भी प्रदेश सरकार ने कोई यथेष्ट कार्रवाई नहीं की गई तो प्रकरण को लेकर दिल्ली में जंतर-मंतर पर क्रमिक अनशन का आयोजन किया जाएगा।