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Tuesday 10 December 2019 08:46:19 PM
नई दिल्ली। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस एचएल दत्तू ने 10 दिसंबर मानव अधिकार दिवस पर एक समारोह में आयोग की 2019 की मानवाधिकार पर लघु फिल्म प्रतियोगिता के विजेताओं को पुरस्कार प्रदान किए। उन्होंने विशाल कुंभार को उनकी फिल्म 'कुंभिल शिवा', अर्नेस्ट रोसारियो पीबी को उनकी फिल्म ट्रांसकेंडर और विजयेंद्र श्याम को उनकी फिल्म गुल्प के लिए प्रमाणपत्र और ट्रॉफी के साथ क्रमशः प्रथम, द्वितीय और तृतीय पुरस्कार के रूपमें एक लाख, 75 हजार और 50 हजार रुपए प्रदान किए। विशाल कुंभार की लघु फिल्म कुंभिल शिवा के कंटेंट में न्याय मिलने में एक बाल बलात्कार पीड़िता और उसके परिवार की दुर्दशा को दर्शाया गया है। अर्नेस्ट रोसारियो की फिल्म ट्रांसकेंडर पीबी एक पुलिस अधिकारी बनने हेतु अपने सपने का पीछा करके समाज की मुख्यधारा में मान्यता लेने के लिए एक ट्रांसजेंडर के संघर्ष को उजागर करती है। विजयेंद्र श्याम की मूक फिल्म गुल्प विकास के हमले पर केंद्रित है, जिसके परिणामस्वरूप एक बूढ़े आदमी के प्राकृतिक आवास का नुकसान हुआ है।
मानवाधिकार पर लघु फिल्म प्रतियोगिता के विजेताओं को बधाई देते हुए न्यायमूर्ति एचएल दत्तू ने कहा कि मानवाधिकार आयोग लघु फिल्म निर्माताओं द्वारा एनएचआरसी लघु फिल्म प्रतियोगिता के लिए भेजी गई उनकी फिल्मों के पीछे के प्रयासों की सराहना करता है। उन्होंने कहा कि मानवाधिकार आयोग ने अगले वर्ष से पुरस्कार राशि को एक लाख से बढ़ाकर दो लाख, 75 हजार से डेढ़ लाख और 50 हजार से बढ़ाकर एक लाख रुपये करने का फैसला किया है। उन्होंने कहा कि इस योजना का उद्देश्य लोगों और विशेष रूपसे युवा पीढ़ी को इस प्रतियोगिता में शामिल करना, मानव अधिकारों के विभिन्न पहलुओं पर विचार करना और दृश्य मीडिया के माध्यम से अपने विचार व्यक्त करना है। उन्होंने कहा कि यह आशा की गई थी कि इस तरह के प्रयासों से लोगों को एक-दूसरे के अधिकारों के लिए खड़े होने के लिए प्रोत्साहित करने में मदद मिलेगी, जिससे मानव अधिकारों की चेतना का वातावरण बनेगा। उन्होंने फिल्म निर्माताओं से मानवाधिकारों के उल्लंघन पर विचारशील फिल्में बनाने का आह्वान किया और कहा कि यदि संभव हो तो वे अपनी रचनात्मकता के माध्यम से यह भी सुझाव दें कि मानवाधिकार से जुड़ी समस्याओं से कैसे निपटा जाए।
न्यायमूर्ति एचएल दत्तू ने एनएचआरसी के सदस्य और जूरी के अध्यक्ष डॉ डीएम मुले एवं उनकी टीम को भी बधाई दी, जिसने लंबी कवायद के बाद 80 से अधिक फिल्मों में से 12 फिल्मों की शॉर्ट लिस्टिंग की और इस तरह आयोग की उनमें से तीन सर्वश्रेष्ठ फिल्मों और स्पेशल मेंशन के लिए चार फिल्मों का चयन करने में मदद की। तीन पुरस्कार विजेता फ़िल्मों के अलावा विशेष उल्लेख प्रमाणपत्र चार अन्य फ़िल्मों को भी दिए गए, जिनमें के जयचंद्रा हाशमी की 'टू लेट' शामिल है, जिसमें बताया गया है कि कभी-कभी कैसे हमारी अजीब प्राथमिकताओं में भेदभाव का कार्य हो सकता है। शुभ्रा दीक्षित की ए डाइंग विश स्वेच्छा से मृत्यु की अनुमति मांगने वाले एक बूढ़े दंपति के संघर्षों को रेखांकित करती है। यांगचेन थापा की फिल्म नीमा यह दर्शाते हुए कि कभी-कभी बड़ों के कार्य कैसे भी हों, उनकी दिनचर्या बहुत नकारात्मक प्रभाव पैदा कर सकती है। आर रवि प्रसाद की 'डू स्पिट हियर' फिल्म में एक हास्य व्यंग्य उन लोगों पर है जो जानबूझकर सार्वजनिक और दूसरों के निजी स्थानों को खराब करते हैं।
मानवाधिकार आयोग के महासचिव जयदीप गोविंद ने शुरुआत में एनएचआरसी की लघु फिल्म पुरस्कार योजना का परिचय दिया और कहा कि यह लगातार पांचवा पुरस्कार है और इस प्रतियोगिता में प्रविष्टियों की बढ़ती संख्या के साथ आयोग को उम्मीद है कि आने वाले वर्षों में इसमें और भी अधिक फिल्म निर्माता भाग लेंगे। उन्होंने दो बाहर के विशेषज्ञों और फिल्म निर्माताओं को सम्मानित किया। उन्होंने अरुण चड्ढा और रीना मोहन को फिल्मों के चयन के लिए जूरी के हिस्से के रूपमें अपना समय देने के लिए धन्यवाद दिया। एनएचआरसी के सदस्य न्यायमूर्ति पीसी पंत, ज्योतिका कालरा, डॉ डीएम मुले महानिदेशक (जांच), प्रभात सिंह और अन्य वरिष्ठ अधिकारी, कर्मचारी और पुरस्कार विजेताओं के मित्र और संबंधी उपस्थित थे।