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Friday 20 December 2019 04:19:29 PM
नई दिल्ली/ लखनऊ। भारत के नागरिकता कानून में संशोधन के बाद से विरोधस्वरूप प्रदर्शन की आड़ में देश की राजधानी दिल्ली सहित देश के अनेक मुस्लिम बाहुल्य इलाकों और इस्लामिक शिक्षण संस्थानों में जिस प्रकार हिंसा और आगजनी का तांडव होता आ रहा है, पुलिस और दूसरे सुरक्षा बलों पर हमलों, उनपर हिंसक कश्मीरी अलगाववादियों की तरह पत्थरबाजी, सरकारी गैर सरकारी सम्पत्तियों, थानों एवं पुलिस चौकियों, वाहनों, सार्वजनिक स्थानों को आग लगाने का जो संगठित और सुनियोजित अभियान चल रहा है, उससे देश का आम नागरिक सहमा हुआ है, डरा है। उसके मन में यह धारणा स्थापित हो रही है कि भारत में अल्पसंख्यकों के हितों के नाम पर कांग्रेस, टीएमसी, समाजवादी पार्टी, बसपा और पाकिस्तान के इशारे पर एक समुदाय भारत में विघटन की पुरजोर कोशिश कर रहा है और यही नहीं, समय रहते यह भी पता चल गया है कि कभी भारत और पाकिस्तान में युद्ध की स्थिति में उसकी किसकी और कैसे तरफदारी होगी। सीएबी और एनआरसी के विरोध प्रदर्शन की इस भयावह श्रृंखला में कल लखनऊ में जबरदस्त हिंसा हुई और प्रदर्शन में शामिल लोगों के खतरनाक मंसूबे सामने आए। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सख्त लहजे में कहा है कि उपद्रवियों को छोड़ा नहीं जाएगा और आगजनी से जो नुकसान हुआ है, उनकी सम्पत्तियां जब्त कर नुकसान की भरपाई की जाएगी।
जामा मस्ज़िद दिल्ली में आज शुक्रवार की नमाज़ के बाद प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, भाजपा, सीएबी और एनआरसी के खिलाफ जमकर जहर उगला। इस समय देश में कोई भी ऐसा आदमी नहीं है, जिसे अच्छी तरह से यह तथ्य मालूम नहीं हो चुका हो कि नागरिकता संशोधन कानून भारत में पैदा हुए किसी भी नागरिक की नागरिकता के लिए किसी प्रकार की कोई भी चुनौती नहीं है। यह कानून भारत में रह रहे मुसलमानों के खिलाफ नहीं है, बल्कि यह पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में अल्पसंख्यक हिंदू, बौद्ध, जैन, पारसी सिख और ईसाई को उस अवस्था में भारत में संरक्षण और नागरिकता प्रदान करेगा, जब इन समुदायों का कोई व्यक्ति, परिवार या लोग इन देशों में अपनी धार्मिक या सामाजिक प्रताड़ना के कारण भारत में आना एवं शरण चाहेंगे या वहां के जो अल्पसंख्यक एक समय से इस वक्त भारत में हैं, वे भारतीय नागरिक हो जाएंगे। यह सबकुछ अच्छी तरह जानने के बावजूद भारत में मुस्लिम समुदाय की ओर से अचानक हिंसक प्रदर्शन सामने आए हैं और कई जगहों पर हाथ में तिरंगा, बापू की तस्वीर और संविधान निर्माता डॉ भीमराव आंबेडकर की तस्वीर के साथ इनकी उग्रता पुलिस पर हमले, पत्थरबाजी, आगजनी, विघटनकारी नारेबाजी, देश की कानून व्यवस्था को चुनौती और जनसामान्य का जीवन संकटमय बनाने के रूपमें देश के सामने है।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का यह बयान देश विरोधी और बहुत विचलित करने वाला माना जा रहा है कि वह सीएबी और एनआरसी पर यूनाईटेड नेशन से भारत में जनमत संग्रह कराना चाहती हैं। गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल में बांग्लादेश के इस्लामिक घुसपैठियों, रोहिंग्याओं और साम्प्रदायिक अपराधियों ने नागरिकता कानून के विरोध में पश्चिम बंगाल में सब तरफ और रेलवे की संपत्तियों में जमकर आगजनी की है। इस दौरान पश्चिम बंगाल के मूल रहवासी बंगाली डरे सहमे अपनी जानमाल का बचाव करते हुए नज़र आ रहे हैं और ममता बनर्जी सरकार उन्हें कोई भी सुरक्षा नहीं दे पा रही है। असम तो मामले की सच्चाई जानकर शांत हो गया है, किंतु उसके बाद पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में घुसपैठियों का भीषण तांडव देखने को मिला है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भले ही हिंसक लोगों को चेतावनी दी हो, लेकिन पश्चिम बंगाल को आग के हवाले करने की साजिश का बचाव करते हुए भी वह सामने आई हैं। पश्चिम बंगाल के हावड़ा मुर्शिदाबाद के इस्लामिक आतंकवादियों और उपद्रवियों ने रेलवे स्टेशन, दुकानें और टोल प्लाजा फूंक दिए हैं और अनेक वाहन, सरकारी बसें जला दी गई हैं। ममता बनर्जी का यूएन से जनमत संग्रह वाला बयान अब उनके गले की हड्डी बन गया है। वे अपना यह बयान वापस लेती हैं तो उनसे मुसलमान नाराज होते हैं और वापस नहीं लेती हैं तो कानून उनका पीछा करता है। पश्चिम बंगाल के राज्यपाल ने उनसे अपना बयान वापस लेने और माफी मांगने को कह ही दिया है।
लखनऊ की हिंसा में एनडीटीवी के रिपोर्टर कमाल खान की रिपोर्ट फेयर नहीं मानी जा रही है। लगता है कि ये घटना स्थल पर मौजूद नहीं थे, क्योंकि ये फोन पर कवरेज देते दिखाई दे रहे हैं, मगर ग्राउंड रिपोर्टर की तरह कह रहे हैं कि ये प्रोटेस्ट बिना लीडरशिप का प्रोटेस्ट है, इसमें छोटे-छोटे बच्चे शामिल हैं, महिलाएं हैं, पढ़े-लिखे लोग हैं, बहुत सारे एएमयू और जामिया के पढ़े लिखे लोग हैं जो लखनऊ में बड़ी-बड़ी पोजीशंस में हैं, गर्वमेंट के बहुत सारे बड़े आफिसर्स हैं, उनका परिवार है, उनकी पत्नियां हैं, वो सारी प्रदर्शन कर रही हैं, इंडियन सिविल सर्विसेज़ के बहुत सारे लोग हैं, उनकी फैमलीज़ हैं। सवाल है कि इस प्रोटेस्ट में ये सोकाल्ड सिटिजन्स अफसर और उनकी बीवियां एवं बच्चे क्या पत्थर और पेट्रोल की बोतलें साथ लेकर आए थे, जिनका उन्होंने इस प्रोटेस्ट के दौरान लखनऊ में हिंसा करने और सरकारी संपत्तियों, प्राईवेट वाहनों, सार्वजनिक स्थलों और पुलिस चौकियों में आग़जनी करने में भरपूर उपयोग किया? शहरभर में आग़ लगाने का काम किया। रिपोर्टर के पास इसका क्या सबूत है कि प्रशासनिक अधिकारी एवं उनके परिवार इस प्रोटेस्ट में शामिल थे और यदि उनकी खोजी पत्रकारिता इतनी ही विश्वसनीय है तो उन्होंने क्या स्थानीय प्रशासन के सामने यह सवाल रखा? कृपया उनका एनडीटीवी का यह लिंक देखें-https://www.youtube.com/watch?v=3DbbnpfKm50
कहा जा रहा है कि शांति कायम करने में सहयोग देने के लिए झूंठ बोला जाए तो ठीक भी है और अगर रिपोर्टर ऐसे प्रोटेस्ट को बड़ा दबाव बनाने के रूपमें इस्तेमाल एवं प्रचारित करने के लिए बढ़ा चढ़ाकर झूंठ बोल रहा है तो ऐसी धर्मनिरपेक्ष और जेहादी पत्रकारिता कमाल खान और उन जैसे रिपोर्टरों और समाचार प्रतिष्ठानों को मुबारक ही मुबारक हो। इस चैनल को अपनी गाड़ी का नुकसान दिखाई दे रहा है, उसका कोई नुकसान भी नहीं हुआ है जबकि उसे हाईलाइट किया जा रहा है, लेकिन जो नुकसान इस शहर की तहज़ीब का किया गया है, उसके बारे में वह चुप है। हिंदूवादी नेता कमलेश तिवारी से शुरुआती झगड़े में भी कमाल खान की ऐसी ही पत्रकारिता सामने आई थी, जिसमें काफी बवाल हुआ था। कहा जाता है कि अखिलेश सरकार ने इसमें रिपोर्टर के दबाव में कमलेश तिवारी के विरुद्ध भेदभावपूर्ण कार्रवाई की थी। इस विषय पर अब क्या बोला जाए। ऐसे अफवाहबाजों पर समुचित कार्रवाई होनी चाहिए और सरकार को ऐसी रिपोर्टिंग का संज्ञान लेना चाहिए। उत्तर प्रदेश सरकार और लखनऊ प्रशासन को जनहित में यह बताना चाहिए कि भारतीय प्रशासनिक सेवा के कौन अधिकारी और उनके परिवार इस हिंसा और आग़जनी जनित प्रोटेस्ट मे शामिल थे या नहीं। अगर ऐसा नहीं है तो प्रशासन ऐसे समाचार चैनल पर क्या कार्रवाई कर रहा है?
एनआरसी कानून अभी आया भी नहीं है और एनडीटीवी जैसे किंतु परंतु के साथ लोगों को उकसाने-भड़काने की दुकान लगाकर बैठ गए हैं, इनके बारे में यह जनधारणा स्थापित है। कहा जा रहा है कि नागरिकता कानून में संशोधन पर गुमराह करके ये लोग देश में आग लगवा ही रहे हैं, इस बात को देश का हर आदमी समझ रहा है। लखनऊ में कमाल खान से लेकर दिल्ली तक रवीश कुमार और प्रणय राय तक देश में सामाजिक और सांप्रदायिक उन्माद फैलाने में लगे हैं? देश में अनेक अवसरों पर विभिन्न मुद्दों पर विघटन फैलाने के इनके बहुत से उदाहरण हैं। इस कारण देश में एक वर्ग को छोड़कर मीडिया के रूपमे इनकी विश्वसनीयता नहीं बची है। इनके नामधारी रिपोर्टर डकैती और लूट का अंतर नहीं जानते हैं, निधन मृत्यु और देहावसान शब्द की उपयोगिता का पता नहीं है और देश को गंगा-जमुना संस्कृति की परिभाषा सुनाते फिरते हैं। शेषनाग के फन ये ही हैं, जिनपर भारत की धरती टिकी हुई है। जिस लाइन पर ये चल रहे हैं, सांप्रदायिक सद्भाव का बंटाधार ही कर रही है। प्रणय राय के बारे में मीडिया का तो हर कोई जानता है कि कभी दूरदर्शन के करोड़ों रुपए के कैमरे और सिस्टम हड़पकर एनडीटीवी खड़ाकर पत्रकारिता के लंबरदार बने हैं। भ्रष्टाचार के विरोध की बात करते हैं, झूंठ फैलाकर जनसामान्य का जीवन खतरे में डालते हैं, यह बिकाऊ, सांप्रदायिक और कपटपूर्ण पत्रकारिता नहीं है तो और क्या है?
एनडीटीवी चैनल एवं इस तरह के एक-दो और चैनल को छोड़कर बाकी मीडिया को मोदी मीडिया कहकर हिंसात्मक रूपसे टार्गेट किया जा रहा है। लखनऊ में इनके प्रदर्शन का वीभत्स रूप देखने को मिला। हिंसक और पत्थरबाज़ प्रदर्शनकारियों ने यहां कई चैनलों की ओबी वैनों को आग लगा दी। मीडिया को मोदी मीडिया, गो दी मीडिया कहकर विरोध किया जा रहा है। लखनऊ एवं उत्तर प्रदेश के अन्य जिलों में कल की हिंसा में पत्रकारों पर हमले और ओबी वैन जलाए जाने का विरोध करते हुए आईएफडब्लूजे और उसकी राज्य इकाई श्रमजीवी पत्रकार यूनियन एवं उपजा एवं उसकी लखनऊ जिला इकाई ने आज अपनी आपातकालीन बैठकों में निंदा प्रस्ताव पारित किए हैं। आईएफडब्लूजे के अध्यक्ष के विक्रम राव, यूपीडब्लूजेयू प्रदेश अध्यक्ष हसीब सिद्दीकी एवं लखनऊ मंडल जिला अध्यक्ष एवं सचिव शिवशरण सिंह ने इस हिंसा की भर्त्सना करते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से दोषियों को खिलाफ त्वरित कार्रवाई और पत्रकारों को हुए नुकसान की भरपाई और मुआवज़े की मांग की है। उधर जुमे की नमाज़ के बाद आज फिर उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, फिरोजाबाद, एटा, बुलंदशहर, बहराईच, सम्भल आदि जगहों पर हिंसा और सुरक्षाबलों पर पत्थरबाजी हुई है, इसके बावजूद सुरक्षाबल बहुत संयम से काम ले रहे हैं एवं कानून व्यवस्था बनाए रखने की पूरी कोशिशें कर रहे हैं।