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Thursday 9 January 2020 05:35:17 PM
हैदराबाद। भारत के उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू ने पैसे की बढ़ती ताकत से देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीति की घटती विश्वसनीयता पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए इसे रोकने के लिए संसद में जल्दी ही प्रभावी कानून बनाने और एकसाथ चुनाव कराने का आह्वान किया है। आज हैदराबाद विश्वविद्यालय, भारत इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक पॉलिसी तथा फाउंडेशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की ओर से ‘मनी पॉवर इन पॉलीटिक्स’ विषय पर आयोजित सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने मतदाताओं को लुभाने के लिए राजनीतिक दलों और सरकारों के बेलगाम खर्च के कारणों और परिणामों पर विस्तार से बात की।
उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने कहा कि आज सच्चाई यह है कि कम आमदनी वाले किसी ईमानदार और अधिक योग्य भारतीय नागरिक की कीमत पर किसी लखपति के पास सांसद या विधायक बनने के मौके ज्यादा हैं। उन्होंने इस संदर्भ में मौजूदा लोकसभा के 475 सांसदों की जांच में पाई गई करोड़ों रुपये की संपत्ति का जिक्र करते हुए कहा कि यह 533 सांसदों की कुल संपत्ति का 88 प्रतिशत है।वेंकैया नायडू ने कहा कि देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीति की दो भयावह विकृतियों का समाधान तत्काल किए जाने की जरूरत है, इसमें पहला चुनाव और राजनीति में बेहिसाब पैसे की ताकत का दुरुपयोग है, जो अक्सर अवैध और गैर कानूनी होता हैऔर दूसरा बुनियादी सुविधाओं, बुनियादी ढांचे, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, विकास और नौकरी के अवसरों को सुनिश्चित करने के दीर्घकालिक लक्ष्यों का प्रचार करके अल्पकालिक लाभ पाने के लिए सरकारों की मतदाताओं को लुभाने की बढ़ती कोशिश है।
उपराष्ट्रपति ने चुनावों में राजनीतिक दलों के बेहिसाब खर्च पर अफसोस जताते हुए कहा कि यह भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है, इससे चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता भी घटती है और शासन की गुणवत्ता को खतरा बना रहता है। उन्होंने राजनीति में ईमानदार तथा ज्यादा योग्य लोगों को आने से रोकने के लिए अमीरों की बाधाओं का जिक्र करते हुए कहा कि इस समस्या से निपटने के लिए राजनीतिक दल चंदा जुटाने, अपने कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण देने तथा अपने उम्मीदवारों के लिए चुनावी खर्च जुटाने जैसी गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए सख्त आचार संहिता बनाएं। वेंकैया नायडू ने आग्रह करते हुए कहा कि वे लोकतांत्रिक राजनीति की पारदर्शिता के हित में वित्तीय रूपसे जवाबदेह होने से कतराएं नहीं। उन्होंने कहाकि मेरा सुझाव है कि संसद को राजनीतिक दलों के खातों को सार्वजनिक करने के लिए उचित और कार्रवाई योग्य नियामक उपायों के माध्यम से राजनीति में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए एक कानून बनाने के बारे में सोचना चाहिए। उन्होंने कहा कि कई अन्य लोकतांत्रिक देशों में ऐसी व्यवस्थाएं हैं, जिनके तहत राजनीतिक दलों के खातों की नियमित रूपसे लेखा जांच की जाती है।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि सरकारें चुनावी लाभ के लिए अल्पअवधि की जो लोकलुभावनी घोषणाएं करती हैं, वह दरअसल उनके मुख्य कामकाज की कीमत पर की जाती हैं, इससे ग़रीब और मध्यमवर्ग को सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ता है। उन्होंने अर्थशास्त्रियों, सामाज शास्त्रियों, मीडिया और नागरिक समाज से कहा कि वे छोटे समय के लिए आमदनी बढ़ाने, और दीर्घकालिक विकास एवं गरीबी उन्मूलन के उद्देश्यों के बीच एक उचित संतुलन खोजने के लिए सक्षम तंत्र विकसित करें। वेंकैया नायडू ने कहा कि राजकोषीय घाटे पर लगाम लगाने वाले राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम की तर्ज पर उपयुक्त कानून बनाने पर विचार करने का समय आ गया है, यदि ऐसा हो सका तो शायद सभी राजनीतिक दल को समान अवसर मिल सकेगा, जिससे लोकलुभावन घोषणाओं पर लगाम लगाई जा सकेगी। वर्ष 1967 के बाद से देश में आमतौर पर बार-बार कराए जाने वाले चुनावों को देखते हुएचुनाव सुधारों के नाम पर सरकार चुनाव का खर्च उठाने और एकसाथ चुनाव कराए जाने के प्रस्ताव पर उपराष्ट्रपति ने कहा कि कुछ राजनीतिक दलों को ऐसी आशंका है कि एक साथ चुनाव कराए जाने से ऐसे राजनीतिक दलों को लाभ हो सकता है, जिनके पास करिश्माई नेतृत्व और बड़ा जनाधार है। उन्होंने कहा कि ऐसी आशंका निराधार है, क्योंकि भारतीय मतदाता अब काफी परिपक्व हो चुका है।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि सरकार का चुनाव का खर्च उठाने का प्रस्ताव दोधारी तलवार की तरह है, इसे लागू करने के पहले कई पहलुओं पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। वेंकैया नायडू ने कहा कि 70 वर्ष में लोकतंत्र ने देश में गहरी जड़ें जमा ली हैं, लेकिन इसमें गुणवत्ता की कमी देखी जा रही है, इसे दूर करने के लिए चुनाव में पैसे के दुरूपयोग और जाति तथा धर्म के आधार पर मतदान जैसी खराबियों से निपटना होगा। उन्होंने मतदाताओं से पैसे के लालच में आकर मतदान न करने का आह्वान करते हुए कहा कि यह अपने मूल्यों के साथ समझौता करने जैसा है, साथ ही यह चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता को खत्म करता है। उन्होंने उम्मीद जताई कि 2022 में देश की आजादी की 75वीं वर्षगांठ मनाए जाने के पहले राजनीति में पैसे की ताकत के इस्तेमाल को रोकने के लिए प्रभावी उपाय कर लिए जाएंगे। उन्होंने लोगों से अपील की कि वे चरित्र, स्वभाव, क्षमता और योग्यता के आधार पर अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करें। सम्मेलन में फाउंडेशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म के महासचिव डॉ जयप्रकाश नारायण, भारत इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक पॉलिसी, हैदराबाद विश्वविद्यालय के प्रतिनिधि और गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।