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Saturday 15 February 2020 05:09:08 PM
रामनगर (मंडला)। उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने आज मध्य प्रदेश के रामनगर मंडला में आदिवासी महोत्सव के उद्घाटन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा है कि प्राकृतिक आपदाओं, प्रदूषित पर्यावरण से त्रस्त विश्व प्रकृति सम्मत स्थाई विकास के रास्ते खोज रहा है और हमारे जनजातीय समुदायों के पास पीढ़ियों के अनुभव से प्राप्त वह ज्ञान एवं विद्या है, जो भविष्य के लिए स्थाई, समावेशी और प्रकृति सम्मत विकास सुनिश्चित कर सकता है। उन्होंने कहा कि इन समुदायों ने पीढ़ियों से एक पर्यावरणीय नैतिकता, विकसित की है, जो आज के तथाकथित सभ्य समाज के लिए भी अनुकरणीय है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि यह आवश्यक है कि जनजातियों के पारंपरिक ज्ञान और शिल्प को संरक्षित रखते हुए भी उन्हें राष्ट्रीय जीवन की मुख्यधारा में बराबर अवसर उपलब्ध कराए जाएं। उन्होंने कहा कि जनजातीय समुदाय के विकास की अपेक्षाओं, आकांक्षाओं को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि आवश्यक है कि प्रशासन और स्थानीय समुदाय के बीच निरंतर रचनात्मक संवाद हो, जिसमें विकास तथा परम्परा के बीच संवेदना एवं संतुलन की आवश्यकता होगी।
उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने कहा कि जनजातीय समुदायों का विकास न केवल हमारे समावेशी विकास के दर्शन की आवश्यक शर्त है, बल्कि हमारा संवैधानिक दायित्व भी है, जिसके लिए हमारे संविधान में जनजातीय क्षेत्रों और समुदायों के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं। आदिवासी महोत्सव को उन्होंने देश के मूल संस्कारों का उत्सव बताया। उपराष्ट्रपति ने इस अवसर पर वीरांगना रानी दुर्गावती और रानी अवंती बाई की पुण्यभूमि गोंडवाना के लोकप्रिय शासकों और नायकों को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की। उपराष्ट्रपति ने अपेक्षा व्यक्त की कि इस प्रकार के आयोजनों के माध्यम से जनजातीय समुदाय को ही नहीं, बल्कि स्थानीय प्रशासन को भी परिचित कराया जाए। उन्होंने बताया कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इस वर्ष के अपने अभिभाषण में इस वर्ष 400 एकलव्य विद्यालयों के निर्माण की घोषणा की है। उन्होंने कहा कि जनजातीय समुदायों की आय बढ़ाने के लिए सरकार ने वन उत्पादों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना की घोषणा की है। उपराष्ट्रपति ने सुझाव दिया कि जनजातीय शिल्प, वस्त्रों, वन उत्पादों और युवाओं की उद्यमिता को आवश्यक बाज़ार उपलब्ध कराने के लिए खादी ग्रामोद्योग के विस्तृत नेटवर्क से ट्राइफेड को जोड़ना चाहिए। उन्होंने आशा व्यक्त की कि ई-वाणिज्य के आने से बाज़ार को और भी विस्तृत किया जा सकता है।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमारे अकादमिक और बौद्धिक विमर्श में जनजातीय पारंपरिक ज्ञान परम्परा पर शोध किया जाना जरूरी है, अन्यथा ये समृद्ध परंपराएं लुप्त हो जाएंगी। उन्होंने कहा कि 50 वर्ष में भारत में लगभग 250 भाषाएं और बोलियां विलुप्त हो चुकी हैं और इनमें से अधिकांश बोलियां जनजातीय समुदायों की हैं। उन्होंने कहा कि एक भाषा के लोप के साथ ही एक सभ्यता, एक संस्कृति की सृजनात्मक परम्परा का अवसान होता है। उन्होंने विश्वविद्यालयों से अपेक्षा की कि वे स्थानीय जनजातीय संस्कृति के संरक्षण और शोध का केंद्र बने। उन्होंने कहा कि हम सभी भारत की प्राचीन सभ्यता, उसके इतिहास के उत्तराधिकारी हैं, लेकिन हमारे जनजातीय समुदाय वास्तव में उन प्राचीन संस्कारों को अपने जीवन में जीते हैं, प्रकृति को माता के रूपमें देखना उसकी असीम शक्तियों में ममता को देखना, उसे आदरपूर्वक पूजना, ये संस्कार हमें जनजातीय समुदायों से ही प्राप्त हुए हैं। उपराष्ट्रपति ने कहा कि आदिकाल से ही हमारे जनजातीय समुदाय भारतीय सभ्यता के अभिन्न अंग हैं। उन्होंने कहा कि रामायण, महाभारत जैसे ग्रंथों में स्थानीय समुदायों की वीर परम्परा का उल्लेख मिलता है, यदि इन ग्रंथों का सामाजिक और मानवविज्ञान दृष्टि से अध्ययन करें तो पाते हैं कि ये ग्रंथ देश के विभिन्न क्षेत्रों, स्थानीय वनवासी, जनजातीय समुदायों के बीच परस्पर संबंधों के विकास की जटिल प्रक्रिया का इतिहास हैं, आस्थाओं और मान्यताओं में संवाद की यह प्रक्रिया पीढ़ियों तक चली होगी, इसी प्रक्रिया ने भारतीय संस्कृति को सहिष्णु और समावेशी बनाया है, इसी विविधता को हमारे संविधान में स्वीकार और संरक्षित भी किया गया है।
उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने देश के स्वतंत्रता आंदोलन में जनजातीय आंदोलनों की महत्वपूर्ण भूमिका की चर्चा करते हुए कहा कि वस्तुत: हमारे स्वतंत्रता आंदोलन की शुरुआत भी अंग्रेज़ों की शोषणकारी नीतियों के खिलाफ 19वीं सदी के स्थानीय जनजातीय आंदोलनों से ही हुई, जिन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के शोषणकारी, क्रूर चरित्र को उजागर किया। इस संदर्भ में उपराष्ट्रपति ने 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में रानी अवंतीबाई की वीरता को हर पीढ़ी के लिए वंदनीय बताया। उपराष्ट्रपति ने कहा कि इन आंदोलनों को हमारे इतिहास में स्थान मिलना चाहिए, तभी हमारा इतिहास सम्पूर्ण और समावेशी होगा। उन्होंने बताया कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी इस वर्ष अपने अभिभाषण में जनजातियों के वीर योद्धाओं के बलिदान से देशवासियों को परिचित कराने के लिए संग्रहालय की स्थापना करने की घोषणा की है। विगत वर्षों की भांति इस वर्ष भी सरकार ने ऐसी समर्पित कर्मठ विभूतियों को पद्म सम्मान से सम्मानित किया है, जिन्होंने जनजातीय संस्कृति, शिल्प, संगीत और कला तथा जनजातीय ज्ञान परम्परा के संरक्षण और संवर्धन में मूर्धन्य योगदान दिया है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि इससे हमने अपनी सभ्यता में अपनी ज्ञान परंपरा, अपनी सांस्कृतिक विकास और भावी प्रगति में जनजातीय समुदायों के योगदान को आदरपूर्वक स्वीकार किया है।
वेंकैया नायडू ने कहा कि माओवादी हिंसा किसी समस्या का समाधान नहीं है, विकास के लिए शांति आवश्यक है, देश के विभिन्न क्षेत्रों में सरकारें वामपंथी हिंसा को रोकने में सफल हो रही है तथा स्थानीय समुदाय से बातचीत कर उनकी अपेक्षाओं का यथा संभव समाधान निकाल रही हैं। इस संदर्भ में उन्होंने असम में हाल के बोडो समझौते को एक सराहनीय कदम बताया। उपराष्ट्रपति ने उम्मीद जताई कि आदिवासी महोत्सव के आयोजन से प्राचीन सतपुड़ा पहाड़ों की तलहटी में नर्मदा के समीप बसा गौंड राजाओं का यह ऐतिहासिक क्षेत्र पर्यटन का केंद्र बनेगा, जिससे न केवल इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था का विकास होगा, बल्कि अन्य क्षेत्रवासियों को यहां की समृद्ध संस्कृति और प्राकृतिक सौंदर्य के विषय में जानकारी मिलेगी। उपराष्ट्रपति ने शासकीय नीतियों और कार्यक्रमों से लाभांवित हुए नागरिकों को प्रमाणपत्र वितरित किए। उपराष्ट्रपति ने जनजातीय कलाकारों के प्रस्तुत नृत्य को भी देखा। कार्यक्रम में केंद्रीय इस्पात राज्यमंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते, केंद्रीय पर्यटन और संस्कृति राज्यमंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल, केंद्रीय जनजातीय मामलों की राज्यमंत्री रेणुका सिंह और गणमान्य अतिथि उपस्थित थे।