Wednesday 11 March 2020 06:58:27 PM
दिनेश शर्मा
नई दिल्ली/ भोपाल। मध्य प्रदेश के कांग्रेस के दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया आज शाम भारतीय जनता पार्टी के केंद्रीय मुख्यालय पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की मौजूदगी में भाजपा में शामिल हो गए। इसी के साथ भाजपा ने उन्हें मध्यप्रदेश से राज्यसभा सदस्य के लिए उम्मीदवार भी घोषित कर दिया। आज के संदर्भ में यह ज्योतिरादित्य सिंधिया की बड़ी राजनीतिक सफलता है। गुना से अपने ही कार्यकर्ता से लोकसभा चुनाव हार जाने के बाद का यह कालखंड उनके राजनीतिक भविष्य का बड़ा प्रश्न बन चुका था, जिसने ज्योतिरादित्य सिंधिया को बेहद परेशान किया हुआ था। कांग्रेस में उनके सामने कांटे उग आए थे और माना जाता है कि यदि उन्होंने भाजपा में जाने का निर्णय नहीं लिया होता तो उनका महाराज के रूपमें भी मध्य प्रदेश की राजनीति में खड़ा होना मुश्किल हो जाता। ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में जाने के बाद न केवल उनका प्रचंड राजयोग लौटा है, अपितु वे मध्य प्रदेश की राजनीति में लौट आए हैं।
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने के बाद उनके चेहरे पर गज़ब का आत्मविश्वास दिखाई पड़ रहा था, जिसके लिए उन्होंने भाजपा में शामिल होने के दौरान कहा भी कि यह उनका सौभाग्य है। जनसंघ की संस्थापकों में से एक सिंधिया राजवंश की राजमाता विजयाराजे सिंधिया का पूरा परिवार अब भारतीय जनता पार्टी में आ गया है। राजमाता विजयाराजे सिंधिया अपने पुत्र माधवराव सिंधिया को भी भाजपा में देखना चाहा करती थीं, लेकिन मां और पुत्र के बीच कड़वे रिश्ते हो जाने और उनके कांग्रेस की राह पकड़ने के कारण ऐसा नहीं हो सका। यह काम आज उनके पोते ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कर दिया। माना जा रहा है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने राजनीतिक सूजबूझ से काम लेते हुए एवं भाजपा को कभी आंख दिखाने की हिमाकत नहीं की तो वे भाजपा में बड़ी राजनीतिक उपलब्धियां हासिल करने में अपने पिताश्री और पूर्वजों से भी आगे निकल जाएंगे, क्योंकि ज्योतिरादित्य सिंधिया की राजनीतिक पृष्ठभूमि संघ और जनसंघ है, जिसमें उन्हें लौटने का यह सौभाग्य प्राप्त हुआ है।
ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिताश्री महाराज माधवराव सिंधिया कांग्रेस के चक्रवर्ती नेता राजीव गांधी के खास लोगों में या यह कहिए कि खास मित्रों में एक हुआ करते थे। वे भी राजमाता की भांति जनसंघ और बाद में भाजपा में ही होते, क्योंकि उस समय हिंदुत्व और भाजपा का कोई जोर नहीं था और कांग्रेस सत्ता में थी, इसलिए उन्होंने सत्ता की चकाचौंध को चुनते हुए कांग्रेस को अपना राजनीतिक घर बनाया, लेकिन एक समय बाद एक विमान दुर्घटना में उनकी दुखद मृत्यु हो गई। उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी और पुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया ने उनका राजनीतिक स्थान लिया। ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी के करीब तो आ गए मगर उनके राजवंश का प्रभामंडल बड़े राजनीतिक उलटफेर का शिकार हो गया। अवसर पाकर मध्य प्रदेश में कांग्रेस के कालनेमियों ने सिंधिया परिवार को घेर लिया और नौबत यहां तक आई कि इस बार ज्योतिरादित्य सिंधिया अपनी राजनीति की गुना लोकसभा सीट अपने ही कार्यकर्ता और भाजपा प्रत्याशी से हार गए।
ज्योतिरादित्य सिंधिया का यह ऐसा बुरा वक्त रहा है जब कांग्रेस हाईकमान ने उनकी अहमियत लगभग शून्य कर दी एवं मध्यप्रदेश में इसबार के राज्यसभा सदस्य चुनाव में भी उन्हें किनारे कर दिया। आखिर भाजपा नेतृत्व ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को शानदार राजनीतिक उत्तरदान दिया और उन्हें भाजपा में शामिल करते ही राज्यसभा का टिकट भी थमा दिया। ज्योतिरादित्य सिंधिया को भाजपा ने वह अवसर प्रदान कर दिया है, जिसकी वे भाजपा को कभी भी कीमत अदा नहीं कर सकेंगे। गुना से लोकसभा हार जाने के बाद वे बिल्कुल राजनीति के हांसिए पर जा चुके थे, इसीलिए उनके चाहने वाले उन्हें बार-बार यह सलाह संकेत दे रहे हैं कि वे भाजपा को कभी भी कांग्रेस समझने की भूल न करें, क्योंकि इसकी जड़ें गहराई तक जा चुकी हैं और कांग्रेस का समय सिमट रहा है, बड़ी मुश्किल से उनकी अपने पुरातन घर में वापसी हुई है, जो उनकी दादी और राजमाता ने खड़ा किया था। कहने वाले कह रहे हैं कि अब ज्योतिरादित्य सिंधिया को समझना है कि वे उकसाई हुई राजनीति का शिकार होते हैं या भाजपा में अपनी जड़ें मजबूत करते हुए अपने निष्ठापूर्ण प्रदर्शन से देश की राष्ट्रवादी राजनीति का एक मुकाम हासिल करते हैं।
ज्योतिरादित्य सिंधिया के राजनीतिक प्रयोग और विकल्प अब नहीं बचे हैं। उनको भाजपा में मजबूती से खड़ा होने के लिए ही अभी कई अग्नि परिक्षाओं और धैर्य की कसौटी से गुजरना होगा। उन्होंने आज देख और समझ लिया होगा कि कभी भाजपा नेतृत्व की मज़ाक उड़ाने और नरेंद्र मोदी सरकार की नीतियों पर तंज व व्यंग्य कसने के बावजूद भाजपा में उनके लिए पलक-पावड़े बिछा दिए गए हैं। आज देश में या तो होली की चर्चा है या फिर ज्योतिरादित्य सिंधिया की चर्चा है। उधर मध्य प्रदेश की राजनीति में एक और भूचाल आया हुआ है, जिसमें कमलनाथ सरकार हिल गई है। भले ही कमलनाथ और कांग्रेस यह दावा कर रहे हों कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में जाने के बावजूद मध्य प्रदेश में कांग्रेस सरकार को कोई खतरा नहीं है। खतरा है और कमलनाथ के लिए अब अपनी सरकार बचाना बेहद मुश्किल है। कमलनाथ सरकार के विरोध में भाजपा के बाद अब सिंधिया राजवंश भी खड़ा हो गया है, जिससे कमलनाथ सरकार किसी भी समय जा सकती है और शिवराज सिंह चौहान की सरकार वापस आ सकती है।
भारतीय जनता पार्टी सात राज्यों में हार की टीस महसूस कर रही है, यह अलग बात है कि भाजपा का वोट प्रतिशत पहले से ज्यादा बढ़ा है, लेकिन उसने मध्य प्रदेश की राजनीति में सिंधिया का तूफान लाकर इस राज्य में कांग्रेस के तंबू तो उड़ा ही दिए हैं और शायद अब महाराष्ट्र की बारी है, जिसमें उद्धव सरकार अब जा सकती है। भाजपा ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को अपने यहां लेकर कांग्रेस के युवा तुर्कों में खलबली तो मचा ही दी है, जिसके देर-सवेर परिणाम सामने आएंगे। भाजपा के लिए देश का राजनीतिक और सामाजिक वातावरण कुछ ऐसे विकसित हो रहा है, जिसमें उसकी आगे की राजनीतिक स्थितियां अनुकूल ही होती दिख रही हैं। दूसरे राजनीतिक दलों और उनके युवा नेताओं की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं रातों-रात बढ़ रही हैं, मगर नई राजनीतिक रणनीतियां उनका साथ नहीं दे रही हैं। कईयों को भाजपा आकर्षित कर रही है। चुनौतियां भाजपा की भी बढ़ गई हैं, अपनों का ध्यान रखने की। देखना है आगे और क्या होता है। फिलहाल मध्यप्रदेश की राजनीति पर सबकी नज़रें टिकी हैं।