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Saturday 21 March 2020 01:38:27 PM
नई दिल्ली। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने रक्षा खरीद प्रक्रिया-2020 के मसौदे का अनावरण किया है, जिसका उद्देश्य रक्षा उपकरणों की खरीद के लिए स्वदेशी विनिर्माण को ज्यादा बढ़ाना और उसमें लगने वाली समय सीमा को कम करना है। ये और इस तरह के कई अन्य अभिनव उपाय अगस्त 2019 में स्थापित रक्षा मंत्रालय के अधिग्रहण महानिदेशक की अध्यक्षता वाली एक उच्चस्तरीय समिति के तैयार किए गए ड्राफ्ट का हिस्सा थे। रक्षामंत्री ने इस अवसर पर कहा कि हमारा उद्देश्य भारत को आत्मनिर्भर और वैश्विक विनिर्माण का केंद्र बनाना है, स्वदेशी रक्षा उत्पादन के लिए इको-सिस्टम विकसित करने के लिए एमएसएमई सहित निजी उद्योगों को सशक्त बनाने के लिए सरकार लगातार नीतियां बनाने की कोशिश में लगी है। उन्होंने कहा कि भारत का रक्षा उद्योग एक रणनीतिक रूपसे महत्वपूर्ण क्षेत्र है, जिसमें विकास की बहुत भारी संभावना है, इसे भारत की आर्थिक तरक्की और हमारी वैश्विक महत्वाकांक्षाओं को साकार करने के लिए एक उत्प्रेरक बनने की ज़रूरत है।
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि रक्षा उद्योग और रक्षा मंत्रालय के अनुभव के साथ अब 'मेक इन इंडिया’ पहल को और मजबूत करने के लिए आगे कदम बढ़ाने का समय आ चुका है। उन्होंने कहा कि खरीदे गए उपकरणों और प्लेटफॉर्मों के जीवनचक्र समर्थन को परिष्कृत किया जाए और प्रक्रियाओं को और भी सरल बनाते हुए और समग्र खरीद में लगने वाले समय को घटाते हुए रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया को तेज किया जाए। नई रक्षा खरीद प्रक्रिया में प्रस्तावित प्रमुख परिवर्तन इस प्रकार हैं-हमारे घरेलू उद्योग के अनुभव के मद्देनज़र इस मसौदे में 'मेक इन इंडिया’ पहल का समर्थन करने के लिए खरीद की विभिन्न श्रेणियों में स्वदेशी सामग्री को लगभग 10 फीसदी तक बढ़ाने का प्रस्ताव दिया है। पहलीबार स्वदेशी सामग्री के सत्यापन के लिए एक सरल और यथार्थवादी पद्धति को शामिल किया गया है। कच्चे माल, अलॉय यानी विशेष मिश्रित धातुओं और सॉफ्टवेयर के उपयोग को प्रोत्साहित किया गया है, क्योंकि स्वदेशी कच्चे माल का उपयोग 'मेक इन इंडिया’ का एक बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू है और सॉफ्टवेयर में तो भारतीय कंपनियां विश्व में अग्रणी हैं।
देश में स्थापित एफएबी विनिर्माण इकाइयों से चिप्स और एयरो इंजन निर्माण इकाई से एकल विक्रेता आधार पर खरीद का आश्वासन। कुल अनुबंध मूल्य की लागत के आधार पर न्यूनतम 50 फीसदी स्वदेशी सामग्री के साथ नई श्रेणी खरीद को लाया गया है। इसमें केवल न्यूनतम आवश्यक सामग्री को ही विदेश से खरीदा जाएगा, जबकि शेष मात्रा का निर्माण भारत में किया जाएगा। ये 'वैश्विक खरीद' श्रेणी से प्राथमिकता में होगा, क्योंकि विनिर्माण भारत में होगा और देश में रोज़गार सृजित होंगे। आवधिक किराये के भुगतान के साथ विशाल प्रारंभिक पूंजीगत व्यय को प्रतिस्थापित करने के लिए मौजूदा 'बाय' (खरीद) और 'मेक' (निर्माण) श्रेणियों के साथ-साथ अधिग्रहण के लिए लीज़िंग को एक नई श्रेणी के रूप में पेश किया गया है। लीज़िंग की अनुमति दो श्रेणियों के तहत दी जाती है, यानी लीज़ (भारतीय) जहां भारतीय इकाई कमतर है और संपत्ति की मालिक है और दूसरी लीज़ (वैश्विक) जहां वैश्विक इकाई कमतर है। ये उन सैन्य उपकरणों के लिए उपयोगी साबित होगा जो वास्तविक युद्ध में उपयोग नहीं किए जाते हैं, जैसे कि परिवहन बेड़े, ट्रेनर, सिम्युलेटर आदि। सॉफ्टवेयर और सिस्टम संबंधित परियोजनाओं की खरीद के लिए एक नया अध्याय शुरू किया गया है, क्योंकि ऐसी परियोजनाओं में प्रौद्योगिकी में तेजी से बदलाव के कारण अप्रचलन बहुत तेज होता है और प्रौद्योगिकी के साथ गति बनाए रखने के लिए खरीद प्रक्रिया में लचीलापन आवश्यक है।
अनुबंध पश्चात प्रबंधन के लिए एक नया अध्याय शुरू किया गया है, ताकि अनुबंध की अवधि के दौरान उत्पन्न होने वाले मुद्दों के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश प्रदान किए जा सकें, क्योंकि आमतौर पर रक्षा अनुबंध लंबे समय तक चलते हैं। आवश्यकता की स्वीकृति के समझौते की प्रक्रिया को कम करके खरीद के लिए समय सीमाओं को घटाया गया है, जो 500 करोड़ रुपये से कम की परियोजनाओं और दोहराए जाने वाले ऑर्डरों के लिए एक चरण की होगी। परीक्षण पद्धति और गुणवत्ता आश्वासन योजना आरएफपी का हिस्सा बनेंगे। फील्ड इवैल्यूएशन ट्रायल विशेष ट्रायल विंग द्वारा अंजाम दी जाएंगी और इन ट्रायल का उद्देश्य छोटी कमियों का उन्मूलन करने के बजाय प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना होगा। स्टार्ट-अप और इनोवेटर्स और डीआरडीओ की अनुसंधान परियोजनाओं समेत भारत में निर्माताओं से खरीद के सिलसिले में निर्माण के लिए एक व्यापक अध्याय प्रस्तुत किया गया है। अभी चलन वाली समकालीन अवधारणाओं को शामिल करने के लिए उत्पाद समर्थन के दायरे और विकल्पों को चौड़ा किया गया है, ताकि उपकरण के लिए जीवन चक्र समर्थन का अनुकूलन किया जा सके। पूंजी अधिग्रहण अनुबंध में सामान्य रूपसे वारंटी अवधि के पांच साल बाद भी समर्थन शामिल होगा।
डीपीपी 2020 का मसौदा निजी उद्योग सहित सभी हितधारकों की सिफारिशों के आधार पर महानिदेशक (अधिग्रहण) की अध्यक्षता वाली समीक्षा समिति ने तैयार किया है। विभिन्न विषय विशेषज्ञों की उस क्षेत्र की विशेषज्ञता का लाभ उठाने के लिए समीक्षा समिति की सहायता करने हेतु लेफ्टिनेंट जनरल या समकक्ष अधिकारियों की अध्यक्षता में आठ उप-समितियों का गठन भी किया गया था। इन समितियों ने अपने संबंधित घोषणा पत्र तैयार करने के लिए छह महीने की अवधि तक व्यापक विचार-विमर्श किया और बातचीत की। ये मसौदा अब सभी हितधारकों से आगे के सुझाव लेने के लिए रक्षा मंत्रालय की वेबसाइट https://mod.gov.in/dod/defence-procurement-procedure पर 17 अप्रैल 2020 तक अपलोड कर दिया गया है। रक्षा सचिव डॉ अजय कुमार और महानिदेशक (अधिग्रहण) अपूर्व चंद्रा ने भी डीपीपी मसौदे की प्रमुख विशेषताओं के बारे में संबोधित किया। रक्षा राज्यमंत्री श्रीपद नाइक, सचिव (रक्षा उत्पादन) राज कुमार और वरिष्ठ प्रशासकीय और सैन्य अधिकारी जो डीपीपी 2020 मसौदा तैयार करने वाली उप-समितियों का हिस्सा थे, वे इस अवसर पर मौजूद थे।