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Monday 08 April 2013 08:28:56 AM
लखनऊ। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में रविवार को विज्ञान भवन नई दिल्ली में हुए मुख्यमंत्रियों एवं उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों के संयुक्त सम्मेलन में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव नहीं पहुंचे। उन्होंने अपनी कहीं और व्यस्तता का बहाना बनाकर सम्मेलन में उत्तर प्रदेश सरकार का अभिमत प्रस्तुत करने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री मायावती का उपेक्षात्मक तरीका अपनाते हुए प्रतिनिधि के रूप में अपने मंत्रिमंडल में पंद्रहवें नंबर के होमगार्ड्स एवं प्रांतीय रक्षक दल विभाग के मंत्री ब्रह्माशंकर त्रिपाठी को भेजा, उन्होंने सम्मेलन में मुख्यमंत्री का भाषण पढ़ा।
उत्तर प्रदेश वादकारियों एवं न्यायिक अधिकारियों से संबंधित कई बड़ी समस्याओं से रू-ब-रू है, जिनमें जजों की संख्या में कमी, मुकदमों की तेजी से बढ़ती संख्या एवं जजों के न्यायकक्षों का अभाव समस्याएं मुख्य हैं। इस सम्मेलन में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की उपस्थिति इस दृष्टि से भी आवश्यक थी कि वे देश के सबसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री हैं और ऐसे सम्मेलनों में भाग लेने को शीर्ष प्राथमिकता दी जाती रही है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सम्मेलन में भाग न लेने की जो भी विवशता बताई हो, किंतु यह माना जा रहा है कि इन दिनों प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के यूपीए सरकार को सपा का समर्थन जारी रखने को लेकर आए बयान एवं उस पर मुलायम सिंह यादव की तल्ख टिप्पणियों से सपा और कांग्रेस में गंभीर गतिरोध आया है जिसके चलते अखिलेश यादव इस सम्मेलन में शामिल नहीं हुए।
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस संयुक्त सम्मेलन में न जाकर वही काम किया है, जो पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री मायावती ने पूरे पांच साल किया। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली महत्वपूर्ण बैठकों में स्वयं न जाकर अपने मंत्रियों को उन बैठकों में भेजने का खामियाजा न केवल उत्तर प्रदेश सरकार को उठाना पड़ा, अपितु मायावती को भी कई तरहों से नुकसान उठाना पड़ा। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली ऐसी बैठकें कोई राजनीतिक नहीं मानी जाती हैं, बल्कि उनमें राज्यों का प्रतिनिधित्व होता है, ऐसी बैठकों में मुख्यमंत्री का न जाना राज्य के महत्व को कम करता है। अखिलेश यादव के लिए यह सम्मेलन इसलिए भी महत्वपूर्ण था, क्योंकि इसमें न केवल राज्यों के मुख्यमंत्रियों, अपितु देश की सर्वोच्च न्यायपालिका भी उपस्थित थी। अखिलेश यादव के लिए ऐसी हर एक बैठक भाग लेने योग्य है, वे इस बैठक का महत्वपूर्ण अनुभव हासिल करने से चूक गए जिसका लाभ राज्य को भी मिलता। सपा नेतृत्व ने जो भी सोचा हो, लेकिन मुलायम सिंह यादव इससे इंकार नहीं कर सकते हैं कि उन्हें अभी हर कदम पर केंद्र सरकार की आवश्यकता है।
बहरहाल उप्र के मंत्री ब्रह्माशंकर त्रिपाठी के पढ़े मुख्यमंत्री के भाषण में बताया गया कि प्रथम चरण में उत्तर प्रदेश के 113 तहसील मुख्यालयों पर ग्राम न्यायालय स्थापित किए जाने का प्रस्ताव है, पंचायतों एवं ब्लाक की भौगोलिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए तहसील मुख्यालयों पर ही ग्राम न्यायालय खोलना उचित होगा। उन्होंने कहा कि ग्राम न्यायालयों की स्थापना पर होने वाले व्यय-भार को भारत सरकार शत-प्रतिशतवहन करे। उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश के उच्च न्यायालय में न्यायमूर्तियों के 160 पदों के सापेक्ष मात्र 84 न्यायमूर्ति तैनात हैं और अधीनस्थ न्यायालयों में 2138 न्यायिक अधिकारियों के पदों के सापेक्ष केवल 1849 अधिकारी तैनात हैं। उन्होंने वादों के शीघ्र निस्तारण के लिए रिक्त पदों को शीर्ष प्राथमिकता के आधार पर भरने का अनुरोध किया। उन्होंने यह भी बताया कि वादों के शीघ्र निस्तारण के लिए प्रदेश सरकार ने 63 पारिवारिक न्यायालय, 22 भ्रष्टाचार निवारण से संबंधित विशेष न्यायालय 113 सिविल जज (जूडिशियल) के वाह्य न्यायालय, ग्रामीण न्यायालय तथा 300 विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट न्यायालय खोले जाने का निर्णय लिया है।
मुख्यमंत्री के प्रतिनिधि ने सम्मेलन को जानकारी दी कि उत्तर प्रदेश के अधीनस्थ न्यायालयों में कंप्यूटरीकरण किया जा चुका है, एमबीए डिग्री धारक 43 कोर्ट मैनेजरों की नियुक्ति की जा चुकी है तथा सभी न्यायिक अधिकारियों को ई-कोर्ट प्रोजेक्ट के तहत लैपटॉप उपलब्ध कराया गया है, इसके अलावा सभी न्यायिक अधिकारियों को ब्राडबैंड सुविधा दी गई है। वित्तीय वर्ष 2013-2014 में न्यायालय भवनों एवं न्यायिक अधिकारियों के आवासों के निर्माण हेतु 250 करोड़ रूपए का प्राविधान भी किया गया है। उन्होंने कहा कि केंद्रीय अधिनियम के अंतर्गत सृजित अतिरिक्त न्यायालयों का व्ययभार भारत सरकार वहन करे। राज्य सरकार से बनाए गए अधिनियमों के अंतर्गत सृजित अतिरिक्त न्यायालयों का व्ययभार राज्य सरकार वहन किया जाएगा। सम्मेलन में मंत्री के साथ राज्य के सचिव वित्त अरविंद नारायण मिश्र और विशेष सचिव न्याय एसएम हसीब भी उपस्थित थे।