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जी-7 में भारत को आमंत्रण से चीन को झटका

अमेरीका की नई पेशकश और आर्थिक मोर्चे पर चीन बौखलाया

चीन का संकट-लद्दाख में भारत एक इंच भी पीछे नहीं हट रहा

Wednesday 3 June 2020 01:05:32 PM

दिनेश शर्मा

दिनेश शर्मा

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नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के साथ टेलीफोन पर बातचीत हुई है। सरकार की ओर से बताया गया है कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जी-7 के अमेरिकी अध्यक्ष पद के बारे में और जी-7 समूह के दायरे का विस्तार करने की अपनी इच्छा व्यक्त करते हुए इसमें उन्होंने यूएसए में आयोजित होने वाले अगले जी-7 शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आमंत्रित भी किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के इस रचनात्मक और दूरदर्शी दृष्टिकोण के लिए डोनाल्ड ट्रम्प की सराहना की और उनसे कहा कि इस तरह का विस्तारित मंच कोविड के बाद की दुनिया की उभरती वास्तविकताओं के अनुरूप होगा। भारत-चीन सीमा तनाव और अमेरिका-चीन कोरोना तनाव के बीच भारत को अमेरिका का जी-7 शिखर सम्मेलन केलिए आमंत्रण चीन को अमेरिका का कड़ा संदेश है कि वह लद्दाख में सेना खड़ी करके बड़ा खतरा मोल ले रहा है, जिसमें भारत समर्थन मांगे या न मांगे, अमेरिका हर हाल में भारत के साथ खड़ा होगा।
बहरहाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि प्रस्तावित शिखर सम्मेलन की सफलता सुनिश्चित करने के लिए अमेरिका और अन्य देशों के साथ काम करना, भारत के लिए खुशी की बात होगी। प्रधानमंत्री ने अमेरिका में चल रही सामाजिक अशांति पर चिंता व्यक्त की और स्थिति के शीघ्र समाधान के लिए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को अपनी शुभकामनाएं दीं। दोनों राजनेताओं ने विश्व के और भी सामयिक मुद्दों पर अपने विचारों का आदान-प्रदान किया। बातचीत में दोनों देशों में कोविड-19, भारत-चीन सीमा पर तनाव, विश्व स्वास्थ्य संगठन में सुधार की आवश्यकता जैसे विषय भी आए। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने इस साल फरवरी में अपनी भारत यात्रा को भी बड़े उत्साह के साथ याद किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनसे कहा कि उनकी यह यात्रा कई मायनों में यादगार और ऐतिहासिक है और इससे द्विपक्षीय संबंधों को नई मजबूती मिली है। मोदी और ट्रंप की बातचीत में असाधारण गर्मजोशी और स्पष्टता का जिक्र करते हुए बताया गया है कि भारत-अमेरिकी संबंधों की विशेष प्रकृति तथा दोनों राजनेताओं के बीच मित्रता और पारस्परिक सम्मान प्रदर्शित हुआ है।
जी-7 दुनिया की सबसे बड़ी और संपन्न अर्थव्यवस्थाओं वाले सात देशों का मंच है, जिसमें फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा शामिल हैं और इन देशों के राष्ट्राध्यक्ष हर साल अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था और मुद्रा के मुद्दों पर बैठक किया करते हैं। व्हाइट हाउस में जून में होने वाले जी-7 शिखर सम्मेलन को सितंबर तक स्थगित किया गया है, जिसका एक बड़ा कारण यह है कि इसमें रूस, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया तथा भारत को शामिल किए जाने की योजना है। गौरतलब है कि इस साल जी-7 शिखर सम्मेलन की अध्यक्षता अमेरिका के पास है और शिखर सम्मेलन के दौरान जी-7 अध्यक्ष किसी एक या दो देशों के प्रमुख को विशेष अतिथि के तौरपर भी आमंत्रित करते हैं। पिछले साल फ्रांस के राष्ट्रपति एमैनुअल मैक्रों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जी-7 शिखर सम्मेलन के लिए आमंत्रित किया था।
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से ऐसे समय बात हुई है, जब डोकलाम के बाद भारत और चीन की सेना भारतीय क्षेत्र लद्दाख में युद्ध की मानिंद आमने-सामने हैं। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जी-7 शिखर सम्मेलन में आमंत्रण के फोन से चीन और भी भड़क गया है, क्योंकि वह नहीं चाहता है कि भारत और अमेरिका में कोई ऐसी दोस्ती हो, जिससे उसके एशिया में आधिपत्य के विस्तार को चुनौती मिलती हो। जाहिर सी बात है कि इस समय चीन कोरोना महामारी फैलाने को लेकर पूरी दुनिया में घिरा हुआ है, जिससे उसके विश्व की सर्वोच्च अर्थव्यवस्‍था बनने के सपने को बहुत बड़ा झटका लगा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच कोरोना वायरस को लेकर पहले से ही भारी तनाव चल रहा है और यह भी हो सकता है कि अमेरिका कहीं चीन पर धावा भी न बोल दे, इस संभावित स्थिति को टालने और उससे ध्यान भटकाने के लिए चीन लद्दाख में सेना भेजकर भारत से सैन्य टकराव पर उतर आया है।
भारत-चीन सीमा विवाद कोई नया नहीं है, चीन अकसर ही भारतीय क्षेत्रों में सैन्य घुसपैंठ कर उन्हें अपना बताकर तनाव पैदा करता आ रहा है। चीन जब किसी बाह्य या आंतरिक संकट से घिरा होता है तो वह अपनी सेना और लड़ाकू विमानों को भारतीय सीमा पर तैनात करके देश-दुनिया का ध्यान भटकाता है। सन् 1962 में भारत-चीन का युद्ध भी ऐसी ही परिस्थितियों में हुआ था। चीन ने उस समय भारत से दोस्ती का हाथ बढ़ाकर भारत पर अचानक हमला किया था। तबके भारत में और आज के भारत में जमीन आसमान का अंतर आ चुका है। यद्यपि सैन्य शक्ति के हिसाब से चीन अभी भी भारत से ज्यादा शक्तिशाली है, तथापि रणनीतिक तौर पर और सैन्य शक्ति के रूपमें भी भारत इस समय चीन का सामना करने की स्थिति में खड़ा है। चीन का प्रमुख प्रतिद्वंद्वी अमेरिका आज रणनीतिक तौरपर भारत के साथ खड़ा है और इसका दूसरा कटु सत्य यह है कि यदि अमेरिका चीन को पराजित करना चाहता है तो उसे हमेशा के लिए भारत के ही साथ खड़ा होना होगा और भारत-चीन युद्ध की स्थिति में जरूरत पड़ने पर अपने सैन्य साजो-सामान के साथ भारत के साथ आना ही होगा, भारत अमेरिका से समर्थन ले या ना ले और भले ही यह भारत और चीन का द्वीपक्षीय तनाव हो।
डोकलाम के बाद लद्दाख में अपनी सैन्य ताकत के साथ भारत पर दूसरी बार गुर्रा रहे चीन तेवर में है। भारत के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि वास्तव में चीन भारतीय सीमा में घुस आया है और भारत का भी उससे पीछे हटने का कोई सवाल नहीं है। चीन कभी टकराव की बात करता है और वार्ता कराता है। अचानक बदलते इस रुख पर दुनिया के देशों को भी बड़ा आश्चर्य हो रहा है। माना जा रहा है कि भारत-चीन में सीमा विवाद और दोनों ओर से सैन्य तैनाती एवं चीन की धमकियों से तनाव बढ़ गया है, मगर चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता जाओ लिजियान कहते हैं कि लद्दाख में हालात बेकाबू नहीं हैं और सारा मामला डॉयलाग से सुलझाया जा सकता है। चीन के प्रवक्ता ने यह भी कहा है कि भारत और चीन में बहुत अच्छा बॉर्डर मैकेनिज़्म और कम्यूनिकेशन चैनल है, दोनों देश इस काबिल हैं कि चर्चा के चरिए किसी भी मुद्दे को हल कर सकते हैं। इसके बाद भारत में चीन के राजदूत सन विंडोग का भी बयान आया कि दोनों देशों के बीच बहुत पुराने रिश्ते हैं। चीन की यह पैंतरेबाज़ी ही है, जो सिद्ध करती है कि उसका कोई भरोसा नहीं है।
भारत-चीन सीमा पर तनाव को खत्म करने के लिए अमेरिका की मध्यस्थता की पेशकश ने चीन को संदेश दे ही दिया है कि लद्दाख में भारत के खिलाफ उसकी किसी भी तरह की सैन्य कार्रवाई का मतलब है कि तब चीन का आकाश भी अमेरि‌की युद्धक विमानों से अटा नज़र आएगा, जोकि चीन कभी नहीं चाहेगा और वह इस बात को भलीभांति समझता भी है। इस घटनाक्रम में पाकिस्तान भी एक मुद्दा है, जिसके सामने अपने अस्तित्व का बड़ा संकट है। चीन उसकी केवल इसलिए सहायता करता है कि वह भारत का शत्रु देश है और उसके भारत के खिलाफ पाकिस्तान में सैन्य ठिकाने हैं। इसके बावजूद भारत-चीन की लड़ाई में पाकिस्तान की बर्बादी को कोई नहीं रोक पाएगा। पाकिस्तान से रूस की नज़दीकियों की चर्चा होती है, लेकिन रूस भी भारत का ही परममित्र है और वह पाकिस्तान की फितरत को जानता है, इसलिए उसे इस हद तक रूस का समर्थन मिलना नामुमकिन है। यह बात भी चीन जानता है, इसलिए चीन की इसी में भलाई है कि वह जल्द से जल्द भारत से बातचीत से यह विवाद सुलझा ले, नहीं तो इसबार का चीन-भारत तनाव चीन के लिए जीवन और मरण का प्रश्न बनने वाला है।

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