Wednesday 17 June 2020 02:57:32 PM
दिनेश शर्मा
नई दिल्ली। हिंदुस्तान कांग्रेस और अपने पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के देश के प्रति पापों की कीमत चीन, कश्मीर और पाकिस्तान में चुका रहा है। इनकी देशघातक फसल की कीमत आखिर किसी समय देश की जनता और किसी न किसी सरकार को तो चुकानी ही थी, सो भाजपा की मोदी सरकार ने जब सरहद और देश के भीतर खड़ीं इन ज़हरीली खरपतवारों को उखाड़ फेंकने की शुरूआत की तो कांग्रेसी, कम्युनिस्टी और इस्लामिक ज़ेहादी ताकतें न केवल तिलमिला गईं, बल्कि इन्होंने एक प्रकार से देश के ही खिलाफ विघटनकारी और विध्वंसकारी षडयंत्र भी शुरू कर दिए, इसलिए आज जो चीन और पाकिस्तान कर रहे हैं, यह तो एक न एक दिन होना ही था। इसकी परिणिति लद्दाख में भारतीय सेना के कई दिन से चीन से डटकर मुकाबले और जानलेवा झड़पों में हुई है। इस सोमवार की रात दोनों ओर से सैनिकों की जानें गई हैं। भारतीय जवानों की शहादत हुई है तो चीन के सैनिक भी मारे गए हैं, जिसकी सच्चाई चीन में भी स्वीकार की जा रही है। उधर कांग्रेस एक बार फिर गंदी हरकतों पर उतर आई है, जिसमें चीन के दलाल की तरह कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से चीन के स्टेटस पर सवाल करने की राजनीति शुरू कर दी है।
चीन और पाकिस्तान के लिए भारत की कांग्रेस एवं कांग्रेस गठबंधन सरकार सर्वदा ही बहुत अनुकूल रही है। कांग्रेस की चुप्पी से चीन ने भारत की लाखों वर्गमील भूमि पर कब्जा किया और दूसरी तरफ पाकिस्तान को जम्मू-कश्मीर में विध्वंसक इस्लामिक ज़ेहाद चलाने की भरपूर आज़ादी मिली। डोकलाम में चीन के मुंहकी खाने के बाद कश्मीर में धारा 370 और 35ए के खात्मे, सीएए कानून, भारत के अमेरिका से दोस्ताना रिश्ते, भारत में मजबूत नरेंद्र मोदी सरकार और उसकी प्रभावशाली वैश्विक ख्याति का सामना नहीं कर पाने से बौखलाया चीन और पाकिस्तान मिलकर नए-नए षडयंत्र रच रहा है। नरेंद्र मोदी सरकार ने चीन का पहला षडयंत्र डोकलाम में विफल किया, जहां से चीन को पूरी तरह वापस लौटना पड़ा और अब लद्दाख में दूसरा षडयंत्र रचा, जहां कब्जा करने की नीयत से चीन सैन्यबल के साथ आकर बैठ गया है। तबसे चीन और भारतीय सेना आमने-सामने हैं, जिसमें भारत लगातार चीन के मंसूबों को नाकाम कर रहा है। अपनी इस विफलता से चिढ़कर चीन ने सोमवार की रात घात लगाकर भारतीय निहत्थे कमांडर कर्नल बी संतोष बाबू और उनके दो सैनिकों की हत्या करके उसके बाद अन्य भारतीय सैनिकों पर उनकी जान लेने की हद तक इकतरफा हमला किया, जिसके संघर्ष में वे शहीद हो गए और प्रतिक्रिया स्वरूप भारतीय सेना ने चीन के भी सैन्यबल को भारी नुकसान पहुंचाया है।
भारत और चीन के बीच सीधे-सीधे समझने वाली बात यह है कि जवाहरलाल नेहरू से दोस्ती और बासठ में भारत पर हमला करने के बाद चीन दुनिया के सामने एक विश्वसनीय राष्ट्र नहीं रहा है। बासठ के युद्ध के बावजूद कांग्रेस सरकार ने विश्वास कर लिया कि अब भारत और चीन में कोई संघर्ष नहीं होगा। कांग्रेस सरकार की इसपर चुप्पी और ग़लतफहमी का चीन ने भरपूर फायदा उठाया। उसने समय-समय पर भारतीय क्षेत्रों में घुसपैठ करके भारतीय इलाकों को कब्जा लिया और कांग्रेस सरकार देश की जनता से झूंठ बोलती रही कि हिंदी चीन भाई-भाई हैं। इसी प्रकार भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मुस्लिम वोटों के लिए देश में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को कानूनी मान्यता देकर देश की आत्मा पर असहनीय प्रहार किया, जिससे देश में विघटनकारी इस्लामीकरण का धड़ल्ले से प्रचार-प्रसार हुआ। जेहादी इस्लामिक मदरसे खड़े होते गए। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की प्रताड़ना बढ़ गई। इससे देश में इंदिरा गांधी और कांग्रेस को शासन करने के लिए मुसलमानों का समर्थन तो मिल गया, लेकिन देश की मूल पहचान इस्लामिक ज़ेहाद के हाथ में चली गई। कांग्रेस और उसके बाद देश के क्षेत्रीय राजनीतिक दलों ने भी सरकार बनाने के लिए बेशर्मी से बहुसंख्यकों की भारी उपेक्षा करके मुस्लिम तुष्टिकरण का फॉर्मूला अख्तियार किया, कट्टरपंथी मुसलमानों के सत्ता में भागीदारी के लिए अवांछित दबाव स्वीकार किए जाने लगे, जो आज देश के सर चढ़कर बोल रहे हैं।
पाकिस्तान को भारत में इस्लामिक जेहाद चलाने, देश और कश्मीर में इस्लाम के नाम पर गहरी पैंठ बनाने, युवा इस्लामिक कश्मीरियों में भारत के खिलाफ नफरत फैलाने और क्रूर हिंसा करने की इसी से ताकत मिलती है। भारत की कांग्रेस सरकार की अनदेखी से कश्मीर में पाकिस्तान की इस्लामिक विस्तार की महत्वाकांक्षाएं इस हद तक परवान चढ़ीं हैं कि भारत और पाकिस्तान में युद्ध तक हुए, जिनमें अमरीका के समर्थन के बावजूद पाकिस्तान ने हरबार मुंहकी खाई है। पाकिस्तान की भारत से दुश्मनी और उसकी ज़मीन को भारत के खिलाफ इस्तेमाल करने की वजह से चीन ने पाकिस्तान को गले लगाया हुआ है और आज ये दोनों भारत के खिलाफ एकजुट हैं। पाकिस्तान को भारत की मोदी सरकार ने कश्मीर में बहुत तगड़ा झटका दिया है, जिससे चीन भी बहुत डरा है। चीन को भी आशा नहीं थी कि भारत की मोदी सरकार कश्मीर पर ऐसा हिम्मतभरा फैसला ले सकती है। एशिया के आर्थिक बाज़ार के संदर्भ में यह भी एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि चीन का भारत में बड़ा बाज़ार है, जबकि पाकिस्तान इस क्षेत्र में कहीं नहीं है। अमरीका में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले का गुनाहगार ओसामा बिन लादेन पाकिस्तान ने ही छिपाया हुआ था, जिसके वहां मिलने के बाद अमरीका तो क्या किसी भी देश को पाकिस्तान पर कोई भरोसा नहीं रहा है। अमरीका, चीन को विस्तारवादी और व्यावसायिक स्तरपर अपना घोर प्रतिद्वंद्वी मानता है। चीन को हैसियत में रखने के लिए अब उसके पास भारत का पूरी तरह समर्थन करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है और चीन को यह पसंद नहीं है कि अमरीका की भारत से गहरी दोस्ती हो।
पाकिस्तान इस्लामिक आतंकवाद का समर्थन करने की अपनी करतूतों से अमरीका को गंवा चुका है और वैसे भी इस्लामिक आतंकवाद के कारण मुसलमानों के बारे में अमरीका का नज़रिया काफी बदल चुका है, इसलिए भी भारत के सामने अपना अस्तित्व बचाने के लिए पाकिस्तान चीन की शरण में है। पाकिस्तान इसके बदले में अपने सामरिक क्षेत्र के अनेक ठिकाने भी चीन को सौंप चुका है, सीपैक इसका बड़ा उदाहरण है। यद्यपि चीन तबभी पाकिस्तान पर भरोसा नहीं करता है, वह भी मुसलमानों के खिलाफ है और उसने अपने यहां मुसलमानों के सभी प्रकार के धार्मिक और सामाजिक क्रियाकलाप पूरी तरह से पाबंद किए हुए हैं, लेकिन पाकिस्तान में उसके व्यावसायिक सीपैक के कारण वह पाकिस्तान के साथ है। चीन की भारत में डोकलाम पर पीछे हटने की खीज और पाकिस्तान के हाथ से कश्मीर का निकल जाना भी इनके लिए अपमान और चिंता का सबब है। यही इन दोनों देशों की असल कहानी है, जिसमें आज ये एकजुट होकर भारत के खिलाफ जंग पर उतर आए हैं। चीन की एक और चिंता है कि भारत की जनता पूरी तरह भाजपा और नरेंद्र मोदी के साथ है, मोदी की लोकप्रिय वैश्विक छवि है और मोदी सरकार अपने यहां जो कड़े से कड़े फैसले लेती जा रही है, उनमें ऐसा भी हो सकता है कि चीन से विवादों के कारण भारत में चीन का बाज़ार ही खत्म न कर दिया जाए।
चीन की रणनीति है कि साम दाम दंड भेद से भारत को दबाव में रखा जाए, जिसमें उसने पाकिस्तान का पूरी तरह इस्तेमाल किया हुआ है और अबतो उसने नेपाल के राजनेताओं को भी खरीद लिया है, जो आजकल चीन की भाषा बोल रहे हैं। लद्दाख में मौजूदा घटनाक्रम से और सोमवार की खतरनाक हिंसक झड़प के बाद स्थितियां गंभीर सैनिक टकराव की ओर चली गई हैं। भारतीय सेना चीन को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए सीना तानकर खड़ी है, जिससे चीन यह निर्णय लेने की स्थिति में नहीं रहा है कि वह आगे क्या करे, क्योंकि युद्ध होने पर वह भी तबाह होगा। कोरोना महामारी फैलाने के आरोप के कारण चीन दुनिया से घिरा हुआ है और अमरीका चीन पर हमले के अवसर की ताक में है, इसलिए अब कुछ भी हो सकता है। दुनिया के मीडिया ने आशंका जताई है कि यह घटना तीसरे विश्वयुद्ध की तरफ जा रही है, जिसमें भारत चीन को कड़ी टक्कर दे रहा है। संयुक्तराष्ट्र महासचिव ने भले ही भारत-चीन से संयम बरतने की अपील की है, लेकिन यह मामला काफी गंभीर हो चुका है। चीन ने भारत पर युद्ध थोपा है। भारतीय नेतृत्व और उसकी सेना चीन के सामने झुकने वाली नहीं है। भारत शांति चाहता है, वह यह प्रतिबद्धता अनेक बार प्रकट कर चुका है, लेकिन जब युद्ध थोपा ही जा रहा है तो हिंदुस्तान की आन-बान के लिए हिंदुस्तान की जनता और सीमा पर हमारे रणबांकुरे भी चीन के मंसूबों को बर्बाद करने को तैयार हैं।