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Wednesday 8 July 2020 02:07:38 PM
नई दिल्ली। विश्व बैंक और भारत सरकार ने ‘नमामि गंगे कार्यक्रम’ में आवश्यक सहयोग बढ़ाने के लिए एक ऋण समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जिससे गंगा नदी का कायाकल्प किया जाना है। द्वितीय राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन परियोजना से पावन गंगा में प्रदूषण को कम करने में मदद मिलेगी और इसके साथ ही नदी बेसिन का प्रबंधन सुदृढ़ होगा, जहां 500 मिलियन से भी अधिक लोग निवास करते हैं। करीब 400 मिलियन डॉलर की प्रतिबद्धता में 381 मिलियन डॉलर का ऋण और 19 मिलियन डॉलर तक की प्रस्तावित गारंटी शामिल हैं। 381 मिलियन डॉलर के ऋण से जुड़े समझौते पर आज भारत सरकार की ओर से वित्त मंत्रालय के आर्थिक कार्य विभाग में अपर सचिव समीर कुमार खरे और विश्व बैंक के भारत में कार्यवाहक कंट्री डायरेक्टर कैसर खान ने हस्ताक्षर किए। इसके गारंटी प्रपत्र की प्रोसेसिंग अलग से की जाएगी।
समीर कुमार खरे ने इस मौके पर कहा कि गंगा निश्चित तौर पर भारत का सबसे अहम सांस्कृतिक, आर्थिक एवं पर्यावरणीय संसाधन है और सरकार के ‘नमामि गंगे कार्यक्रम’ का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि गंगा नदी फिर से प्रदूषण मुक्त एवं पारिस्थितिकी दृष्टि से निर्मल बन जाए। नई परियोजना गंगा को स्वच्छ एवं निर्मल नदी बनाने के लिए इस महत्वपूर्ण राष्ट्रीय कार्यक्रम में भारत सरकार और विश्व बैंक की सहभागिता को और भी अधिक बढ़ा देगी। विश्व बैंक मौजूदा ‘राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन परियोजना’ के जरिए वर्ष 2011 से ही सरकार के प्रयासों में व्यापक सहयोग करता रहा है, जिसने नदी के प्रबंधन के लिए प्रमुख एजेंसी के रूप में राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) की स्थापना करने में मदद की। विश्व बैंक ने नदी के किनारे स्थित अनेक शहरों और कस्बों में सीवेज के शोधन से जुड़ी अवसंरचना का वित्तपोषण किया।
स्वच्छ गंगा मिशन के महानिदेशक राजीव रंजन मिश्रा ने कहा कि द्वितीय राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन परियोजना की निरंतरता दरअसल विश्व बैंक की पहली परियोजना के तहत हासिल की गई गति को और भी अधिक तेज करेगी, इसके साथ ही एनएमसीजी को और भी अधिक नवाचारों को पेश करने और नदी के कायाकल्प में सर्वोत्तम वैश्विक प्रथाओं के सापेक्ष अपनी पहलों को चिन्हित करने में मदद मिलेगी। मौजूदा राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन परियोजना-राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन की स्थापना में मदद कर रही है, जिसमें गंगा के मुख्य तट से सटे 20 शहरों में सीवेज संग्रह और शोधन अवसंरचना का निर्माण हो रहा है, 1,275 एमएलडी सीवेज की शोधन क्षमता सृजित की गई है और 3,632 किलोमीटर का सीवेज नेटवर्क निर्मित किया गया है। गंगा के कायाकल्प के लिए जन-भागीदारी को बढ़ावा देने में मदद मिली है। भारत में विश्व बैंक के कंट्री डायरेक्टर जुनैद अहमद ने कहा कि सरकार के नमामि गंगे कार्यक्रम ने गंगा के कायाकल्प के लिए भारत द्वारा किए जा रहे प्रयासों में नई जान फूंक दी है।
विश्व बैंक की पहली परियोजना से नदी के किनारे स्थित प्रदूषण वाले 20 हॉटस्पॉटों में आवश्यक सीवेज अवसंरचना का निर्माण करने में मदद मिली है। यह परियोजना इसे सहायक नदियों तक बढ़ाने में मदद करेगी। इसके अलावा यह ऐसे नदी बेसिन के प्रबंधन के लिए आवश्यक संस्थानों को मजबूत करने में भी सरकार की मदद करेगी जो गंगा बेसिन जितना बड़ा और जटिल है। काफी दूर तक फैला हुआ गंगा बेसिन भारत के भूजल का एक तिहाई से भी अधिक मुहैया कराता है। इसमें देश का सबसे बड़ा सिंचित क्षेत्र समाहित या शामिल है। यह भारत की जल और खाद्य सुरक्षा के लिए विशेष मायने रखता है। भारत की जीडीपी का 40 प्रतिशत से भी अधिक इस घनी आबादी वाले बेसिन में ही सृजित होता है। हालांकि गंगा नदी को आज मानव और आर्थिक गतिविधियों के भारी दबाव का सामना करना पड़ रहा है जो इसके जल की गुणवत्ता एवं प्रवाह को बुरी तरह प्रभावित कर रही हैं। एसएनजीआरबीपी के लिए सह-टास्क टीम लीडर (टीटीएल), यथा प्रमुख जल एवं स्वच्छता विशेषज्ञ जेवियर चाउवॉट डी बेउचेने और जल व स्वच्छता विशेषज्ञ उपनीत सिंह ने कहा है कि यह परियोजना गंगा बेसिन के कई और शहरों में सीवेज शोधन अवसंरचना की कवरेज का विस्तार करने में मदद करेगी।
परियोजना यह सुनिश्चित करने पर फोकस करेगी कि इन परिसंपत्तियों का संचालन एवं रखरखाव लंबे समय तक कुशलतापूर्वक होता रहे। यह परियोजना नदी के बेसिन को और भी अधिक प्रभावकारी ढंग से प्रबंधित करने में मदद करने के लिए अत्याधुनिक साधन विकसित करने में भी एनएमसीजी की मदद करेगी। गंगा में 80 प्रतिशत से भी अधिक प्रदूषण के लिए गंगा नदी और उसकी सहायक नदियों के किनारे स्थित कस्बों और शहरों से आने वाला गैर-शोधित घरेलू अपशिष्ट जल जिम्मेदार है। एसएनजीआरबीपी प्रदूषण के प्रवाह को नियंत्रित करने में मदद के लिए चुनिंदा शहरी क्षेत्रों में सीवेज नेटवर्कों एवं शोधन संयंत्रों का वित्तपोषण करेगा, इतना ही नहीं ये बुनियादी ढांचागत निवेश और इनसे सृजित होने वाले रोज़गार कोविड-19 (कोरोना वायरस) के संकट से भारतीय अर्थव्यवस्था को उबारने में भी मदद करेगा। यह सुनिश्चित करने के लिए कि ये अवसंरचना परिसंपत्तियां प्रभावकारी ढंग से काम करें और अच्छी तरह से उनका प्रबंधन होता रहे, यह परियोजना मौजूदा एनजीआरबीपी के तहत शुरू किए गए सार्वजनिक-निजी भागीदारी वाले अभिनव हाईब्रिड वार्षिकी मॉडल (एचएएम) पर कार्यांवित होगी, जो गंगा बेसिन में सीवेज शोधन संबंधी निवेश के लिए पसंद का समाधान बन गया है।
भारत सरकार इस मॉडल के तहत निजी ऑपरेटर को निर्माण अवधि के दौरान सीवेज शोधन संयंत्र बनाने के लिए पूंजीगत लागत के 40 प्रतिशत का भुगतान करती है और शेष 60 प्रतिशत का भुगतान प्रदर्शन-संबद्ध अदायगी के रूप में 15 वर्षों की अवधि के दौरान किया जाता है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि ऑपरेटर संयंत्र का संचालन एवं रखरखाव कुशलतापूर्वक करता रहे। चार सौ मिलियन डॉलर की प्रतिबद्धता में 19 मिलियन डॉलर तक की प्रस्तावित गारंटी भी शामिल है जो गंगा की सहायक नदियों पर तीन हाईब्रिड-वार्षिकी मॉडल सार्वजनिक-निजी भागीदारी (एचएएम-पीपीपी) निवेश के लिए सरकार के भुगतान दायित्वों को आवश्यक संबल प्रदान करेगी। वरिष्ठ अवसंरचना वित्तपोषण विशेषज्ञ एवं गारंटी के लिए सह-टीटीएल सतीश सुंदरराजन ने कहा कि यह अपशिष्ट जल के शोधन के लिए आईबीआरडी की अब तक की पहली गारंटी है और भारत में जल क्षेत्र में आईबीआरडी की अब तक की पहली गारंटी है तथा इससे वर्तमान आर्थिक परिदृश्य में सार्वजनिक संसाधनों को मुक्त करने में मदद मिलने की उम्मीद है। करीब 381 मिलियन डॉलर के परिवर्तनशील फैलाव वाले ऋण की परिपक्वता अवधि 18.5 वर्ष है, जिसमें 5 वर्ष की मोहलत अवधि भी शामिल है। इसमें 19 मिलियन डॉलर की गारंटी की समाप्ति तिथि गारंटी के प्रभावी होने की तारीख से 18 वर्ष होगी।