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Friday 10 July 2020 01:38:13 PM
नई दिल्ली। केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन के तहत मंगोलियाई कंजुर के 108 अंकों की पुनर्मुद्रण परियोजना आरंभ की है। बताया गया है कि मार्च 2022 तक मंगोलियाई कंजुर के ये सभी 108 अंक प्रकाशित कर दिए जाएंगे। गौरतलब है कि मंगोलियाई कंजुर का मंगोलिया में काफी सम्मान है। एनएमएम के तहत 4 जुलाई 2020 को गुरु पूर्णिमा पर, जिसे धम्मचक्र दिवस भी कहते हैं, मंगोलियाई कंजुर के पांच पुनर्मुद्रित अंकों का पहला सेट राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को भेंट किया गया था, एक सेट संस्कृति और पर्यटन राज्यमंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल ने अल्पसंख्यक मामले राज्यमंत्री किरेन रिजिजू की उपस्थिति में भारत में मंगोलिया के राजदूत गोनचिंग गानबोल्ड को भी सौंपा था। धम्म चक्र दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा था कि मंगोलियाई कंजुर की प्रतियां मंगोलिया सरकार को भेंट की जा रही हैं।
भारत सरकार के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्रालय ने राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन के तहत फरवरी 2003 में पांडुलिपियों में संरक्षित ज्ञान के दस्तावेजीकरण, संरक्षण एवं प्रसार करने के अधिदेश के साथ लांच किया था, जिसका उद्देश्य दुर्लभ एवं अप्रकाशित पांडुलिपियों को प्रकाशित करना है, जिससे कि उनमें प्रतिष्ठापित ज्ञान शोधकर्ताओं, विद्वानों एवं बड़े पैमाने पर आम लोगों तक प्रसारित हो सके। योजना के तहत मंगोलियाई कंजुर के 108 अंकों के पुनर्मुद्रण का कार्य आरंभ कर दिया गया है। यह कार्य राज्यसभा के पूर्व सांसद एवं विद्वान प्रोफेसर लोकेश चंद्रा के पर्यवेक्षण के तहत किया जा रहा है। मंगोलिया में 108 अंकों का बौद्ध धर्म वैधानिक ग्रंथ मंगोलियाई कंजुर सर्वाधिक महत्वपूर्ण धर्मग्रंथ माना जाता है। मंगोलियाई भाषा में 'कंजुर' का अर्थ होता है 'संक्षिप्त आदेश' जो विशेष रूपसे भगवान बुद्ध के शब्द हैं।
मंगोलियाई बौद्धों में इसका काफी सम्मान किया जाता है, वे मंदिरों में कंजुर की पूजा करते हैं और एक धार्मिक रिवाज के रूपमें अपने प्रतिदिन के जीवन में कंजुर की पंक्तियों का पाठ करते हैं। मंगोलिया में लगभग प्रत्येक बौद्ध मठ में कंजुर को रखा जाता है। मंगोलियाई कंजुर को तिब्बती भाषा से अनुदित किया गया है। कंजुर की भाषा शास्त्रीय मंगोलियाई है, मंगोलियाई कंजुर मंगोलिया को एक सांस्कृतिक पहचान उपलब्ध कराने का स्रोत है। समाजवादी अवधि के दौरान काष्ठ चित्रों को जला दिया गया था और मठ अपने पवित्र ग्रंथों से वंचित हो गए थे। प्रोफेसर रघुवीरा ने 1956-58 के दौरान दुर्लभ कंजुर पांडुलिपियों की एक माइक्रो फिल्म की प्रति प्राप्त की थी, जिसे वे भारत लेकर आए थे। मंगोलियाई कंजुर भारत में 1970 के दशक में प्रोफेसर लोकेश चंद्रा ने प्रकाशित किया था। अब वर्तमान संस्करण का प्रकाशन भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन से किया जा रहा है, जिसमें प्रत्येक अंक में कंटेंट की एक सूची है, जो मंगोलियाई में सूत्र के मूल शीर्षक को इंगित करती है।
भारत और मंगोलिया के बीच ऐतिहासिक परस्पर संबंध सदियों पुराने हैं। मंगोलिया में बौद्ध धर्म भारतीय सांस्कृतिक एवं धार्मिक राजदूतों के आरंभिक ईस्वी के दौरान ले जाया गया था। इसके परिणामस्वरूप आज मंगोलिया में बौद्धों का सबसे बड़ा धार्मिक प्रभुत्व है। भारत ने 1955 में मंगोलिया के साथ औपचारिक राजनयिक संबंध स्थापित किए, तबसे दोनों देशों के बीच प्रगाढ़ संबंध एक नई ऊंचाई तक पहुंच गए हैं। अब भारत सरकार द्वारा मंगोलियाई सरकार के लिए मंगोलियाई कंजुर का प्रकाशन भारत और मंगोलिया के बीच सांस्कृतिक सिम्फनी के प्रतीक के रूपमें कार्य करेगा तथा आनेवाले वर्ष में द्विपक्षीय संबंधों को और आगे ले जाने में योगदान देगा।