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Monday 20 July 2020 03:26:39 PM
नई दिल्ली। केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री मुख्तार अब्बास नक़वी ने कहा है कि समाज के किसी हिस्से का सुधार 'नियमों में जकड़' से नहीं बल्कि 'नियत की पकड़' से मुमकिन है। मुख्तार अब्बास नक़वी ने दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर प्रोफेशनल डेवलपमेंट इन हायर एजुकेशन के व्याख्यान 'राष्ट्र एवं पीढ़ी के निर्माण में पत्रकारिता, मीडिया और सिनेमा की भूमिका' पर कहा कि सरकार, सियासत, सिनेमा और सहाफत, समाज के नाजुक धागे से जुड़े हैं, साहस, संयम, सावधानी, संकल्प एवं समर्पण इनको मजबूत बनाने का जांचा-परखा-खरा मंत्र है। उन्होंने कहा कि संकट के समय सरकार, समाज, सिनेमा, सहाफत 'चार जिस्म, एक जान' की तरह काम करते हैं, इतिहास इस बात का गवाह है कि आजादी से पहले या बाद में जब भी देश पर संकट आया है, सबने मिलकर राष्ट्रीयहित और मानव कल्याण के लिए पूरी ईमानदारी के साथ अपनी-अपनी जिम्मेदारी निभाई है।
केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री ने कहा कि कोरोना महामारी के रूपमें दुनियाभर में जिस तरह का संकट है, ऐसी चुनौती कई पीढ़ियों ने नहीं देखी है, फिर भी एक परिपक्व समाज, सरकार, सिनेमा और मीडिया ने अपनी जिम्मेदारी निभाने में कोई कमीं नहीं छोड़ी है, खासकर भारत में इन वर्गों ने संकट के समाधान का हिस्सा बनने में अपनी-अपनी भूमिका निभाने की पूरी कोशिश की है। मुख्तार अब्बास नक़वी ने कहा कि 6 महीने में सरकार, समाज, सिनेमा और मीडिया के करैक्टर, कार्यशैली और कमिटमेंट में बड़ा क्रांतिकारी परिवर्तन आया है। उन्होंने कहा कि बदलाव और सुधार के लिए हालात पैदा नहीं किए जा सकते, बल्कि खुद ही हो जाते हैं, आज समाज के हर हिस्से की कार्यशैली और जीवनशैली में बड़े बदलाव इस बात का प्रमाण हैं। मुख्तार अब्बास नक़वी ने कहा कि महीनों अख़बारों के प्रिंट बंद रहे, सिनेमा बड़े परदे की जगह छोटे परदे पर दिखने लगा, कुछ देश ऑनलाइन ख़बरों के आदी हो चुके हैं पर भारत की बड़ी आबादी जबतक सुबह की चाय के साथ अख़बार के पन्नों को नहीं खंगालती, तबतक उसे दिन का कोई भी जरूरी काम अधूरा लगता है, इस दौरान भी अधिकांश भारतीयों को ऑनलाइन खबरें संतुष्ट नहीं कर पाईं, मगर अख़बार उन्हें मिल रहे हैं।
मुख्तार अब्बास नक़वी ने कहा कि यही हाल सिनेमा का है, टेलीविजन पर सिनेमा की भरमार है, हर दिन एक नई पिक्चर या वेब सीरीज देखने को मिलती है, ना कहानी में दम ना डायरेक्शन में कोई क्रिएटिविटी। उन्होंने कहा कि आज भी भारतीय समाज बड़े परदे की जानदार, भरपूर सबक-संदेश, मायने और मनोरंजन वाली फिल्मों का दीवाना है, यानी फिल्म और मीडिया हमारे जीवन का अटूट हिस्सा ही नहीं है, बल्कि ये समाज को प्रभावित करने की ताकत भी रखते हैं। उन्होंने कहा कि कोरोना संकट के समय भी लोगों ने पूरा नहीं तो आधा-चौथाई फिल्म-मीडिया से अपना गुजारा कर लिया पर उसे अलविदा नहीं कहा। उन्होंने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक एवं डिजिटल मीडिया का बोलबाला है, वह अलग बात है कि इनमें से अधिकांश चैनलों या डिजिटल प्लेटफार्म पर खबर के बजाय हंगामा और हॉरर परोसने पर ज्यादा जोर है, लोगों को इस दौरान जो सकारात्मक संदेश-सबक पहुंचाना चाहिए था, वह उस जिम्मेदारी की कसौटी पर खरे नहीं उतरे। मुख्तार अब्बास नक़वी ने कहा कि चुनौतियों के समय मीडिया-सिनेमा हमेशा बड़ी और महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, 60 और 70 के दशक में युद्ध के दौरान राष्ट्रभक्ति के जज़्बे से भरपूर सिनेमा आज भी लोगों के जेहन में ताजा है, उस दौरान मीडिया की देशभक्ति से भरपूर भूमिका आज भी वर्तमान पीढ़ी के लिए आदर्श हैं।
मुख्तार अब्बास नक़वी ने कहा कि हकीक़त, सात हिंदुस्तानी, आक्रमण, मदर इंडिया, पूरब और पश्चिम, नया दौर जैसी फ़िल्में आज भी राष्ट्रभक्ति के जुनून-जज़्बे को धार देती हैं, ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आंख में भर लो पानी, भारत का रहने वाला हूं, भारत की बात सुनाता हूं, ये देश है वीर जवानों का, कर चले हम फ़िदा जान और तन साथियों, हर करम अपना करेंगे, ऐ वतन तेरे लिए जैसे गीत हर पीढ़ी का पसंदीदा नगमा हैं, इनके बोल देशभक्ति के जुनून को जगाते हैं। उन्होंने कहा कि देश के निर्माण में मीडिया की भूमिका किसी भी संवैधानिक संस्था से ज्यादा है, आज प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक, डिजिटल मीडिया की पहुंच देश की लगभग 80 प्रतिशत आबादी तक है, अखबारों, टेलीविजन, रेडियो, डिजिटल प्लेटफार्म ने देश के सुदूरवर्ती इलाकों तक सूचना के प्रसार में जो भूमिका निभाई वह काबिल-ए-तारीफ है, इनका दायरा चौक-चौराहों-चौपालों, खेत-खलिहानों, पहाड़ों और जंगलों तक फैला हुआ है। मुख्तार अब्बास नक़वी ने कहा कि डिजिटल मीडिया ने भी हमारे जीवन में धमाकेदार उपस्थिति दर्ज करा ली है। उन्होंने कहा कि मीडिया, विभिन्न सूचनाओं एवं जानकारी से न केवल जनमानस को जागरुक करता है, अपितु रचनात्मक आलोचना के माध्यम से व्यवस्था को आगाह भी करता है।