Thursday 23 July 2020 05:50:04 PM
मुख्तार अब्बास नक़वी
वैसे तो अगस्त इतिहास में महत्वपूर्ण घटनाओं से भरपूर है, 8 अगस्त भारत छोड़ो आंदोलन, 15 अगस्त भारतीय स्वतंत्रता दिवस, 19 अगस्त विश्व मानवीय दिवस, 20 अगस्त सद्भावना दिवस, 5 अगस्त को 370 खत्म हुई, वहीं 1 अगस्त भी मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक की यातना और कुरीति से मुक्त करने का दिन है, जो भारत के इतिहास में मुस्लिम महिला अधिकार दिवस के रूपमें दर्ज हो चुका है। मुख्तार अब्बास नक़वी ने कहा कि तीन तलाक या तिलाके बिद्दत जो ना संवैधानिक तौरसे ठीक था, ना इस्लाम के नुक्तेनज़र से जायज़ था, फिर भी यह भारत में मुस्लिम महिलाओं के उत्पीड़न से भरपूर गैर-क़ानूनी, असंवैधानिक, गैर-इस्लामी कुप्रथा वोट बैंक के सौदागरों के सियासी संरक्षण में फलती-फूलती रही।
भारतीय संसद के इतिहास में 1 अगस्त 2019 वह दिन है, जिस दिन कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टी, सपा, बसपा, तृणमूल कांग्रेस सहित तमाम तथाकथित सेक्युलरिज़्म के सियासी सूरमाओं के विरोध के बावजूद तीन तलाक ख़त्म करने के विधेयक को कानून बनाया गया। देश की आधी आबादी और मुस्लिम महिलाओं के लिए यह दिन संवैधानिक, मौलिक, लोकतांत्रिक एवं समानता के अधिकारों का दिन बन गया है, यह दिन भारतीय लोकतंत्र और संसदीय इतिहास के स्वर्णिम पन्नों का हिस्सा बन गया है। तीन तलाक के खिलाफ कानून तो 1986 में भी बन सकता था, जब शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक पर बड़ा फैसला दिया था, उस समय लोकसभा में अकेले कांग्रेस सदस्यों की संख्या 545 में से 400 से ज्यादा और राज्यसभा में 245 में से 159 थी पर कांग्रेस की राजीव गांधी की सरकार ने 5 मई 1986 को इस संख्या बल का इस्तेमाल मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों को कुचलने और तीन तलाक क्रूरता-कुप्रथा को ताकत देने के लिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निष्प्रभावी बनाने के लिए संसद में किया।
कांग्रेस ने कुछ दकियानूसी कट्टरपंथियों के कुतर्कों और दबाव के आगे घुटने टेककर मुस्लिम महिलाओं को उनके संवैधानिक अधिकार से वंचित करने का आपराधिक पाप किया था। कांग्रेस के लम्हों की खता मुस्लिम महिलाओं के लिए दशकों की सजा बन गई, जहां कांग्रेस ने सियासी वोटों के उधार की चिंता की थी, वहीं मोदी सरकार ने सामाजिक सुधार की चिंता की। भारत संविधान से चलता है, किसी शरीयत या धार्मिक कानून या व्यवस्था से नहीं। इससे पहले भी देश में सतीप्रथा, बाल विवाह जैसी सामाजिक कुरीतियों को खत्म करने के लिए भी कानून बनाये गए। तीन तलाक कानून का किसी मजहब किसी धर्म से कोई लेना देना नहीं था, शुद्ध रूपसे यह कानून एक कुप्रथा, क्रूरता, सामाजिक बुराई और लैंगिक असमानता को खत्म करने के लिए पारित किया गया। यह मुस्लिम महिलाओं के समानता के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा से जुड़ा विषय था।
मौखिक रूपसे तीन बार तलाक़ कह कर तलाक देना, पत्र, फ़ोन, यहां तककि मैसेज, व्हाट्सऐप के जरिए तलाक़ दिए जाने के मामले सामने आने लगे थे, जोकि किसी भी संवेदनशील देश-समावेशी सरकार के लिए अस्वीकार्य था। दुनिया के कई प्रमुख इस्लामी देशों ने बहुत पहले ही तीन तलाक को गैर-क़ानूनी और गैर-इस्लामी घोषित कर उसे ख़त्म कर दिया था। मिस्र दुनिया का पहला इस्लामी देश है, जिसने 1929 में तीन तलाक को ख़त्म किया, गैर क़ानूनी एवं दंडनीय अपराध बनाया। वर्ष 1929 में सूडान ने भी तीन तलाक पर प्रतिबंध लगाया। वर्ष 1956 में पाकिस्तान ने, 1972 बांग्लादेश, 1959 में इराक, सीरिया ने 1953 में, मलेशिया ने 1969 में इस पर रोक लगाई। साइप्रस, जॉर्डन, अल्जीरिया, ईरान, ब्रूनेई, मोरक्को, क़तर, यूएई जैसे इस्लामी देशों ने तीन तलाक ख़त्म किया और इसके विरुद्ध कड़े क़ानूनी प्रावधान बनाए, लेकिन भारत में मुस्लिम महिलाओं को इस कुप्रथा के अमानवीय जुल्म से आजादी दिलाने में लगभग 70 साल लग गए।
नरेंद्र मोदी की सरकार ने आखिर तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को प्रभावी बनाने के लिए कानून बनाया। सुप्रीम कोर्ट ने 18 मई 2017 को तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया था। जहां कांग्रेस ने अपने संख्याबल का इस्तेमाल मुस्लिम महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित रखने के लिए किया था। नरेंद्र मोदी सरकार ने मुस्लिम महिलाओं के सामाजिक-आर्थिक-मौलिक-लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए फैसला किया। एक वर्ष हो गया है। इस दौरान तीन तलाक या तिलाके बिद्दत की घटनाओं में 82 प्रतिशत से ज्यादा की कमीं आई है, जहां ऐसी घटना हुई भी है, वहां कानून ने अपना काम किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार हर वर्ग के सशक्तिकरण और सामाजिक सुधार को समर्पित है। कुछ लोगों का कुतर्क होता है कि मोदी सरकार को सिर्फ मुस्लिम महिलाओं के तलाक की ही चिंता क्यों है? उनके आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक सशक्तिकरण के लिए कुछ क्यों नहीं करते? तो उनकी जानकारी के लिए बताना चाहता हूं कि इन 6 वर्ष में मोदी सरकार के समावेशी विकास-सर्वस्पर्शी सशक्तिकरण के प्रयासों का भरपूर लाभ समाज के सभी वर्गों के साथ मुस्लिम महिलाओं को भी हुआ है।
नरेंद्र मोदी सरकार में 3 करोड़, 87 लाख अल्पसंख्यक छात्र-छात्राओं को स्कॉलरशिप दी गई, जिसमें 60 प्रतिशत लड़कियां हैं। हुनर हाट के माध्यम से लाखों दस्तकारों-शिल्पकारों को रोज़गार के मौके मिले, जिनमें बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाएं शामिल हैं। सीखों और कमाओं, गरीब नवाज़ स्वरोज़गार योजना, उस्ताद, नई मंजिल, नई रौशनी आदि रोज़गारपरक कौशल विकास योजनाओं के माध्यम से 10 लाख से ज्यादा अल्पसंख्यकों को रोज़गार और रोजगार के मौके उपलब्ध कराए गए हैं। मोदी सरकार में 2018 में शुरू की गई बिना मेहरम हज की प्रक्रिया के तहत अब तक बिना मेहरम हज जाने वाली महिलाओं की संख्या 3040 हो चुकी है। इस वर्ष भी 2300 से अधिक मुस्लिम महिलाओं ने बिना मेहरम हज पर जाने के लिए आवेदन किया था, इन महिलाओं को 2021 में इसी आवेदन के आधार पर हज यात्रा पर भेजा जाएगा, साथ ही अगले वर्ष भी जो महिलाएं बिना मेहरम हज यात्रा हेतु नया आवेदन करेंगी, उन सभी को भी हज यात्रा पर भेजा जाएगा।
मोदी सरकार की अन्य सामाजिक सशक्तिकरण योजनाओं का भी मुस्लिम महिलाओं को भरपूर लाभ हुआ है, यही वजह है कि आज विपक्ष भी यह नहीं कह पाता कि सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक सशक्तिकरण के कार्यों में किसी भी वर्ग के साथ भेद-भाव हुआ है। मोदी सरकार के सम्मान के साथ सशक्तिकरण, बिना तुष्टिकरण विकास का नतीजा है कि 2 करोड़ गरीबों को घर दिया तो उसमे 31 प्रतिशत अल्पसंख्यक विशेषकर मुस्लिम समुदाय के हैं, 22 करोड़ किसानों को किसान सम्मान निधि के तहत लाभ दिया तो उसमें भी 33 प्रतिशत से ज्यादा अल्पसंख्यक समुदाय के गरीब किसान हैं। आठ करोड़ से ज्यादा महिलाओं को उज्ज्वला योजना के तहत निशुल्क गैस कनेक्शन दिए तो उसमें 37 प्रतिशत अल्पसंख्यक समुदाय के गरीब परिवार हैं। जिन 24 करोड़ लोगों को मुद्रा योजना के तहत व्यवसाय सहित अन्य आर्थिक गतिविधियों के लिए आसान ऋण दिए गए हैं, उनमें 36 प्रतिशत से ज्यादा अल्पसंख्यक हैं। दशकों से अंधेरे में डूबे हजारों गांवों में बिजली पहुंचाई तो इसका बड़ा लाभ अल्पसंख्यकों को हुआ। इन सभी योजनाओं का लाभ बड़े पैमाने पर मुस्लिम महिलाओं को भी हुआ है और वो भी तरक्की के सफर की हमसफ़र बनी हैं।