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Wednesday 10 April 2013 08:31:32 AM
लखनऊ। भोले-भाले लोगों को फर्जी और गलत किस्म के चिकित्सकीय इलाजों के चक्कर से बचाने के लिए संसद ने औषधि एवं जादूई उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम 1954 पारित तो किया, लेकिन इस क़ानून के बनने के साठ साल बाद भी इसका जम कर उल्लंघन हो रहा है। आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर और सामाजिक कार्यकर्ता नूतन ठाकुर ने इसके उल्लंघन पर रोक लगाने के लिए एक जनहित याचिका इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में दायर की है।
इस एक्ट की धारा 3 के अनुसार लोगों की सेक्स क्षमता की वृद्धि, महिला के गर्भ धारण, मासिक धर्म आदि से जुड़ा कोई भी विज्ञापन प्रदर्शित नहीं किया जा सकता है, इसी प्रकार से डायबिटीज, अंधता, बहरापन, पागलपन, सफ़ेद दाग, मोटापा सहित 54 बीमारियों से जुड़े किसी भी प्रकार के विज्ञापन पर पूरी तरह रोक है, धारा 5 में सभी प्रकार के जादुई उपचार, जैसे तंत्र-मंत्र, कवच, ताबीज़ से जुड़े विज्ञापनों पर प्रतिबंध है, धारा 7 में इनके उल्लंघन को संज्ञेय अपराध बताया गया है।
याचिका में अमिताभ ठाकुर और नूतन ठाकुर ने अदालत से प्रार्थना की है कि सूचना और प्रसारण मंत्रालय, आरएनआई तथा डीएवीपी को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देशित किया जाए कि किसी भी समाचारपत्र तथा टीवी चैनल पर इस प्रकार के गैर-कानूनी विज्ञापन नहीं प्रसारित होंगे और यदि ऐसे विज्ञापन छपते या प्रसारित होते हैं तो संबंधित समाचारपत्र अथवा टीवी चैनल के खिलाफ लाइसेंस तथा रजिस्ट्रेशन रद्द करने, सरकारी विज्ञापन रोकने से ले कर आपराधिक मुकदमा दर्ज करने तक सभी कार्रवाई की जाएगी।