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'जनसंख्या वृद्धि के कारण विकास कठिन'

2036 तक भारत की आबादी 152 करोड़ होने की उम्मीद

उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने देश को किया आगाह

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Friday 21 August 2020 02:02:00 PM

vice president releases two reports on the status of 'sex ratio at birth' and 'elderly population in india'

नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने आगाह किया है कि जनसंख्या के आकार में वृद्धि के कारण आगे चलकर विकास की चुनौतियों को हल करना अब और अधिक कठिन हो जाएगा। उपराष्ट्रपति ने भारतीय सांसदों की जनसंख्या और विकास संगठन द्वारा ‘भारत में जन्म के समय लिंग अनुपात की स्थिति’ और ‘भारत में बुजुर्गों की जनसंख्या: स्थिति और समर्थन प्रणाली' पर रिपोर्ट जारी की और सभा को वर्चुअल माध्यम से संबोधित करते हुए कहा कि हम सभी को जनसंख्या और विकास के बीच के संबंध को पहचानना चाहिए। उन्होंने विशेषज्ञों के अनुमानों का उल्लेख करते हुए कहा कि 2036 तक भारत की आबादी 152 करोड़ तक होने की उम्मीद है, यानी 2011 के संदर्भ में 25 प्रतिशत की वृद्धि। उन्होंने कहा कि देश ग़रीबी रेखा से नीचे की आबादी के 20 प्रतिशत और समान अनुपात वाले निरक्षर के साथ कई चुनौतियों का सामना कर रहा है।
उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने लोगों को अपने परिवारों की योजना बनाने की आवश्यकता पर बल दिया है। उन्होंने कहा कि जैसाकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले वर्ष अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में कहा था कि जो लोग छोटे परिवार की नीति का पालन करते हैं, वे राष्ट्र के विकास में योगदान करते हैं, राजनीतिक दलों और जनप्रतिनिधियों से इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करने और लोगों को शिक्षित करने का आह्वान किया। उन्होंने भारत की सदियों पुरानी संयुक्त परिवार प्रणाली को पुनर्जीवित करने का भी आह्वान करते हुए कहा कि हमारी परिवार प्रणाली अन्य देशों में एक मॉडल के रूपमें अपनाई जा रही है। वेंकैया नायडू ने कहा कि भारत की पारंपरिक संयुक्त परिवार प्रणाली में हमारे बुजुर्गों को श्रद्धा का स्थान प्राप्त है और वे धार्मिकता, परंपराओं, पारिवारिक सम्मान और संस्कार के संरक्षक हैं। उन्होंने कहा कि संयुक्त परिवारों में बच्चे पुरानी पीढ़ियों की देखभाल, प्यार, स्नेह, संरक्षण, ज्ञान और मार्गदर्शन का आनंद लेते हैं।
उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने कहा कि वे देश में अब बुजुर्गों की उपेक्षा, परित्याग या दुर्व्यवहार की रिपोर्टों से बेहद व्यथित हैं, यह पूरी तरह से अस्वीकार्य प्रवृत्ति है। उन्होंने साथ ही यह भी कहा कि अपने परिवार में बुजुर्गों की देखभाल करना बच्चों का कर्तव्य है। वेंकैया नायडू ने बुजुर्गों से बच्चों को नए युग के कौशल से युक्त करने का आह्वान किया, ताकि वे पूरी तरह से पेशेवर तरीके से जीवन जी सकें और राष्ट्र निर्माण में अपना पूर्ण योगदान दे सकें। उन्होंने कहा कि हमें याद रखना चाहिए कि यदि युवा जनसांख्यिकीय लाभांश हैं तो उनके वरिष्ठ देश के लिए जनसांख्यिकीय पारितोषिक हैं। उपराष्ट्रपति ने चिकित्सा लाभ प्रदान करके और बीमा के अंतर्गत लाने के कार्य को सुनिश्चित करके बुजुर्गों की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूराकर स्वास्थ्य प्रणाली को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता को भी रेखांकित किया। उन्होंने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि भारत लंबे समय से सिकुड़ते लिंगानुपात से जूझ रहा है, लिंग अनुपात एक मूक आपातकाल है और इसके गंभीर परिणाम हैं, जो हमारे समाज की स्थिरता पर प्रतिकूल प्रभाव डालेंगे।
एम वेंकैया नायडू ने देश में होने वाले लिंग चयनात्मक गर्भपात के बारे में पीसी-पीएनडीटी अधिनियम को सख्ती से लागू करने की बात कही। उन्होंने कहा कि कन्या भ्रूण हत्या के ख़तरे को समाप्त करने का एकमात्र तरीका एक ऐसा समाज बनाना है, जो सभी प्रकार के लिंग भेदभाव से मुक्त हो। वेंकैया नायडू ने स्कूलों में नैतिक शिक्षा को बढ़ावा देने को कहा, ताकि बच्चे बड़े होकर जिम्मेदार और संवेदनशील नागरिक बनें और लैंगिक भेदभाव को अनैतिक मानें। उन्होंने कन्या भ्रूणहत्या और दहेज पर प्रतिबंध के कानूनों को भी सख्ती से लागू करने को कहा और लड़कियों के लिए मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा सुनिश्चित करने की वकालत की। उन्होंने भी कहा कि महिलाओं को संपत्ति में एक समान हिस्सा दिया जाना चाहिए, ताकि वे आर्थिक रूपसे भी सशक्त हों। उन्होंने कहा कि हमें संसद और सभी राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए पर्याप्त आरक्षण सुनिश्चित करना चाहिए और सभी राजनीतिक दलों से इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर जल्द से जल्द एक आम सहमति पर पहुंचने का भी आग्रह करना चाहिए।
एम वेंकैया नायडू ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि संसद में महिला आरक्षण का प्रस्ताव लंबे समय से लंबित चला आ रहा है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि अगर महिलाओं को राजनीतिक रूपसे सशक्त नहीं किया जाता है तो देश की प्रगति बाधित होगी। उपराष्ट्रपति ने ग़रीबी, अशिक्षा और लैंगिक भेदभाव जैसी सामाजिक बुराइयों के उन्मूलन पर जनप्रतिनिधियों, नीति नियोजकों, राजनीतिक दलों और हितधारकों से अधिक ध्यान देने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि सभी राज्य सरकारें इन मुद्दों पर विशेष ध्यान दें। उपराष्ट्रपति ने मीडिया से भी सिकुड़ते लिंगानुपात और बुजुर्गों की समस्याओं पर ध्यान देने का आग्रह किया। उन्होंने आईएपीपीडी के अध्यक्ष और राज्यसभा के उपाध्यक्ष रहे प्रोफेसर पीजे कुरियन और विशेषज्ञों डॉ पीपी तलवार, डॉ सुदेश नागिया और डॉ जेएस यादव की दो व्यावहारिक रिपोर्ट सामने लाने के लिए सराहना की। 

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