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Monday 7 September 2020 05:02:32 PM
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि देशभर के शहरों और गांवों में रहने वाले लाखों नागरिकों और शिक्षा क्षेत्र से जुड़े लोगों की प्रतिक्रिया जानने के बाद ही नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का मसौदा तैयार किया गया है। उन्होंने कहा कि इस शिक्षा नीति के प्रति अब शिक्षकों और शिक्षाविदों सहित सभी लोगों की जिम्मेदारी है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर आज राज्यपालों के सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि शिक्षा नीति और राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली देश की आकांक्षाओं को पूरा करने के महत्वपूर्ण साधन हैं, यद्यपि शिक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी केंद्र, राज्य और स्थानीय प्रशासन के पास है, लेकिन नीति बनाने में उनका हस्तक्षेप कम से कम होना चाहिए। प्रधानमंत्री ने कहा कि शिक्षा नीति की प्रासंगिकता और व्यापकता तब बढ़ेगी, जब इससे अधिक से अधिक शिक्षक, अभिभावक और छात्र जुड़ेंगे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि नई शिक्षा नीति को लेकर चौतरफा स्वीकृति है और लोगों में अब भावना यह है कि इन सुधारों को पिछली शिक्षा नीति में ही पेश किया जाना चाहिए था। उन्होंने इस बात की सराहना की कि इस नीति पर एक स्वस्थ बहस चल रही है और यह आवश्यक है, क्योंकि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति न केवल शिक्षा प्रणाली में सुधार के लिए निर्देशित है, बल्कि 21वीं सदी के भारत के सामाजिक और आर्थिक ताने-बाने को एक नई दिशा देने के लिए भी है। उन्होंने कहा कि इस नीति का उद्देश्य भारत को आत्मनिर्भर बनाना है। प्रधानमंत्री ने कहा कि नई शिक्षा नीति का उद्देश्य तेजी से बदलते परिदृश्य में युवाओं को भविष्य के लिए तैयार करना है। उन्होंने कहा कि इस नीति को देश के युवाओं को भविष्य की आवश्यकताओं के अनुसार ज्ञान और कौशल के साथ दोनों मोर्चों पर तैयार करने के लिए तैयार किया गया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि नई शिक्षा नीति में पढ़ाई के बजाय सीखने पर ध्यान केंद्रित किया गया है और पाठ्यक्रम से परे जाकर विवेचनात्मक सोच पर जोर दिया गया है। उन्होंने कहा कि प्रक्रिया की तुलना में जुनून, व्यावहारिकता और प्रदर्शन पर अधिक जोर दिया गया है। उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति सीखने के नतीजों और शिक्षक प्रशिक्षण और प्रत्येक छात्र के सशक्तिकरण पर केंद्रित है। नरेंद्र मोदी ने कहा कि नई शिक्षा नीति का उद्देश्य 21वीं सदी में भारत को ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था बनाना है। उन्होंने बताया कि नई शिक्षा नीति में भारत में शीर्ष अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालयों के परिसर खोलने के लिए अनुमति दी गई है, जिससे प्रतिभा पलायन की समस्या से निपटा जा सकेगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि देश में अब यह प्रयास चल रहा है कि नई शिक्षा नीति को कैसे लागू किया जाए, सभी आशंकाओं को दूर करने के लिए सभी हितधारकों के सुझावों को सुना जा रहा है। उन्होंने कहा कि यह शिक्षा नीति सरकार की शिक्षा नीति नहीं, बल्कि देश की शिक्षा नीति है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर सम्मेलन को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी संबोधित किया। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति की अनुशंसाओं को लागू करने की दिशा में राज्यपालों तथा शिक्षामंत्रियों का बहुत महत्वपूर्ण दायित्व है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति को कार्यरूप देने में योगदान करते हुए आप सब भारत को ‘नॉलेज-हब’ बनाने में अपनी प्रभावी भूमिका निभाएंगे। उन्होंने कहा कि मैं चाहूंगा कि सभी राज्यपाल अपने राज्यों में नई शिक्षा नीति को कार्यरूप देने के लिए थीम आधारित वर्चुअल सम्मेलन करें, शिक्षा नीति के विभिन्न आयामों पर व्यापक विचार-विमर्श के उपरांत अपने सुझाव केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय को भेजें, ताकि उनका देशव्यापी उपयोग किया जा सके। उन्होंने कहा कि उच्चतर शिक्षा के क्षेत्र में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति की अनुशंसाओं का समयबद्ध पालन सुनिश्चित करने के लिए विश्वविद्यालयों के कुलपतियों और शिक्षकों की वेकेंसीज पर अतिशीघ्र सुयोग्य व्यक्तियों को नियुक्त करने की आवश्यकता है।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि स्कूली शिक्षा को मजबूत आधार देने के लिए 2021 तक इस शिक्षा नीति पर आधारित टीचर्स एजुकेशन का एक नवीन और व्यापक पाठ्यक्रम तैयार करने का लक्ष्य है। उन्होंने कहा कि टीचर्स एजुकेशन, उच्च शिक्षा का अंग है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति की सफलता केंद्र तथा राज्य दोनों के प्रभावी योगदान पर निर्भर करेगी, भारतीय संविधान के अंतर्गत शिक्षा कनकरेंट लिस्ट का विषय है, अतः इसमें केंद्र और राज्यों द्वारा संयुक्त और समन्वयपूर्ण कार्रवाई की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि टेक्नॉलॉजी के उपयोग और इंटीग्रेशन से शिक्षण प्रक्रिया में सुधार को गति मिलेगी तथा बेहतर परिणाम निकलेंगे, इसके लिए नेशनल एजुकेशनल टेक्नॉलॉजी फोरम यानी एनईटीएफ़ की स्थापना की जाएगी, एनईटीएफ़ राज्य सरकार की एजेंसियों को भी परामर्श उपलब्ध कराएगी। उन्होंने कहा कि यह देखा गया है कि रिसर्च और इनोवेशन में निवेश का स्तर अमेरिका में जीडीपी का 2.8 परसेंट, दक्षिण कोरिया में 4.2 परसेंट और इज़राइल में 4.3 परसेंट है, जबकि भारत में यह केवल 0.7 परसेंट है।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि भारत जैसी बड़ी और जीवंत अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने के लिए ‘नॉलेज-क्रिएशन’ तथा रिसर्च को प्रोत्साहित करना जरूरी है। उन्होंने कहा कि वंचित क्षेत्रों में उच्च शिक्षा के लिए वर्ष 2030 तक प्रत्येक जिले में या उसके समीप कम से कम एक बड़ा मल्टी-डिसिप्लिनरी हायर एजुकेशन इन्स्टीट्यूशन उपलब्ध कराने का लक्ष्य है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भारतीय भाषाओं, कलाओं और संस्कृति के संवर्धन को विशेष महत्व दिया गया है, क्योंकि वे भारत की पहचान के साथ-साथ हमारी अर्थव्यवस्था के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने कहा कि शिक्षण पद्धति और बाल मनोविज्ञान की दृष्टि से सभी स्वीकार करते हैं कि आरंभिक शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होनी चाहिए, इस सोच के अनुरूप नई शिक्षा नीति में त्रिभाषा सूत्र की संस्तुति की गई है। उन्होंने कहा कि नीति में यह स्पष्ट किया गया है कि व्यावसायिक शिक्षा को मुख्यधारा की शिक्षा का ही अंग समझा जाएगा और ऐसी शिक्षा को बराबर का सम्मान दिया जाएगा।
रामनाथ कोविंद ने कहा कि 12वीं पंचवर्षीय योजना के आकलन के अनुसार, भारत में वर्कफोर्स के 5 परसेंट से भी कम लोगों ने औपचारिक व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त की थी, यह संख्या संयुक्त राज्य अमेरिका में 52 परसेंट, जर्मनी में 75 परसेंट और दक्षिण कोरिया में 96 परसेंट थी। उन्होंने कहा कि भारत में व्यावसायिक शिक्षा के प्रसार में तेजी लाने की आवश्यकता को देखते हुए यह तय किया गया है कि स्कूल तथा हायर एजुकेशन सिस्टम में वर्ष 2025 तक कम से कम 50 परसेंट विद्यार्थियों को व्यावसायिक शिक्षा प्रदान की जाएगी। उन्होंने कहा कि शिक्षा व्यवस्था में किए जा रहे बुनियादी बदलावों में शिक्षकों की केंद्रीय भूमिका रहेगी, शिक्षा नीति में यह स्पष्ट किया गया है कि शिक्षण के पेशे में सबसे होनहार लोगों का चयन होना चाहिए तथा उनकी आजीविका, मान-मर्यादा और स्वायत्तता को सुनिश्चित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि वर्ष 2025 तक प्राथमिक विद्यालय स्तरपर सभी बच्चों को मूलभूत साक्षरता और संख्या ज्ञान प्राप्त कराना इस शिक्षा प्रणाली की सर्वोच्च प्राथमिकता तय की गई है। इस अवसर पर राज्यों, केंद्रशासित प्रदेशों के राज्यपाल, उपराज्यपाल और राज्य विश्वविद्यालयों के उपकुलपति भी शामिल हुए।