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सुरक्षित मातृत्व के लिये चाहिए गुणवत्ता पूर्ण सेवाएं

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Wednesday 10 April 2013 10:50:00 AM

लखनऊ। लगातार बेहतर होती स्वास्थ्य सुविधाओं से प्रदेश में मातृ मृत्यु दर में उल्लेखनीय कमी आयी है। वर्ष 1997 में 707 के मुकाबले वर्ष 2010 में यह दर 345 हो गयी है। इस तरह पिछले 13 वर्षों में यह 49 प्रतिशत घटी है। आशा है कि आने वाले दिनों में और मजबूत स्वास्थ्य सेवाओं और जन जागरूकता की वजह से इसमें तेजी से कमी आयेगी। ये विचार आज यहॉ मुख्य चिकित्सा अधिकारी सभागार में आयोजित सुरक्षित मातृत्व विषय पर आयोजित कार्यशाला में राष्ट्रीय ग्रामीण मिशन के निदेशक अमित घोष ने व्यक्त किये। अमित घोष ने कहा कि मातृ मृत्यु और शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिये सरकार ने कई योजनायें चलायी हैं, जिनका सकारात्मक प्रभाव भी देखने को मिल रहा है। विशेषतः जननी सुरक्षा योजना और जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रमों को प्रोत्साहन मिलने से संस्थागत प्रसव की संख्या बढ़ी है और इस कारण से मातृ-मृत्यु और नवजात-मृत्यु की संख्या भी कम हुयी है।
गर्भावस्था की समस्याओं के बारे में बताते हुये महाप्रबंधक, मातृ स्वास्थ्य राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन डॉनीरा जैन ने कहा कि प्रदेश में प्रति वर्ष लगभग 55 लाख महिलायें गर्भवती होती हैं और उनमें से 15 प्रतिशत में समस्याएं होने की संभावनाएं होती हैं। इनमें से कई समस्याएं ऐसी होती हैं जिनका पूर्वानुमान नहीं किया जा सकता और उन्हें साधारण रूप से दूर भी नहीं किया जा सकता, यदि सही समय पर उचित देखभाल न मिले तो इनमें से ज्यादातर की मृत्यु की संभावना होती है। सही समय पर उचित इलाज से इन्हें बचाया जा सकता है। इनमें 5 से 8 प्रतिशत महिलाओं को आपरेशन से प्रसव की आवश्यकता होती है।
कार्यशाला में अपर निदेशक परिवार कल्याण डॉ विजय लक्ष्मी ने कहा कि प्रदेश में होने वाले कुल प्रसवों के 43 प्रतिशत प्रसव जननी सुरक्षा योजना के अंतर्गत राजकीय स्वास्थ्य इकाइयों पर हो रहे हैं, 2 प्रतिशत प्रसव सरकार सहायतित अस्पतालों में एवं 16 प्रतिशत प्रसव निजी क्षेत्र के अस्पतालों में हो रहे हैं। प्रदेश में प्रतिवर्ष लगभग 3 लाख बच्चों की मृत्यु हो जाती है, जिनमें से 1.25 लाख की मृत्यु जन्म के पहले ही सप्ताह में हो जाती हैं। इसकी प्रमुख वजह भी प्रसव पश्चात उचित सुविधाएं समय से न मिल पाना ही है।
मृत्यु के कारणों और इसे रोकने के सरकार के प्रयासों के बारे में बताते हुये अधिकारियों ने कहा कि इस तरह के मामले में पहली देरी होती है खतरे की समय पर पहचान न हो पाना और दूसरी देरी होती है, स्वास्थ्य सेवाओं तक समय से पहुंच न पाना। मातृ मृत्यु अनुपात में कमी आने में 108 की एम्बुलेंस सेवा सहायक होगी, जो सही समय पर गर्भवती को अस्पताल तक पहुंचाने में कामयाब हो रही है। साथ ही आशा बहुओं द्वारा गर्भवती की देखरेख के दौरान ही यह तय कर लिया जाना कि प्रसव के समय पर उसे किस अस्पताल या स्वास्थ्य केंद्र पर किस वाहन से ले जाना है, मातृ मृत्यु अनुपात में और अधिक कमी लाने में सहायक होगी।
वर्तमान में 1,30,000 आशा बहुएं इस काम में लगी हैं और वे गर्भवती को उचित सलाह और शिक्षा दे रही हैं। तीसरी देरी यानि स्वास्थ्य सेवाओं में कमी को दूर करने के लिये एएनएम, स्टाफ नर्सों का क्षमता वर्धन कार्यक्रम चलाया जा रहा है और महिला डाक्टरों की नियुक्ति की जा रही है। साथ ही साथ 1001 ग्रामीण केंद्रों को 24ग7 प्रसव इकाइयों के रूप में सक्रिय किया गया है। अधिकारियों ने इस बात पर विशेष जोर दिया कि सुदृढ़ की जा रही सुविधाओं का सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वालों के बीच व्यापक प्रचार-प्रसार होना बहुत जरूरी है, बैठक में मिशन निदेशक अमित घोष, महानिदेशक चिकित्सा स्वास्थ्य एवं महानिदेशक परिवार कल्याण तथा मुख्य चिकित्सा अधिकारी एसएनएस यादव सहित उच्च अधिकारी मौजूद थे।

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