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Friday 11 September 2020 06:02:09 PM
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि 2022 में देश की आजादी के 75 साल पूरे हो रहे हैं तो यह हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है कि हम यह सुनिश्चित करें कि भारत के प्रत्येक छात्र को राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसार पढ़ना चाहिए। उन्होंने इस राष्ट्रीय मिशन में सभी शिक्षकों, प्रशासकों, स्वयंसेवी संगठनों और अभिभावकों के सहयोग का आह्वान किया है। उन्होंने आज नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत ‘21वीं सदी में स्कूली शिक्षा’ विषय पर वीडियो कॉंफ्रेस के जरिए सम्मेलन को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 21वीं सदी के भारत को एक नई दिशा देने जा रही है और हम उस क्षण का हिस्सा बन रहे हैं, जो हमारे देश के भविष्य के निर्माण की नींव रख रहा है। उन्होंने कहा कि इन तीन दशक में शायद ही हमारे जीवन का कोई पहलू एक समान बना रहा हो, जबकि हमारी शिक्षा प्रणाली अभी तक पुरानी व्यवस्था के तहत ही चली आ रही है, जबकि उसे समय के हिसाब से बदला जाना चाहिए था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति नए भारत की नई आकांक्षाओं और नए अवसरों को पूरा करने का एक साधन है। प्रधानमंत्री ने कहा कि एनईपी 2020 देश के हर प्रदेश क्षेत्र, हर कार्यक्षेत्र और हर भाषा के लोगों की पिछले 3 से 4 साल की कड़ी मेहनत का परिणाम है। उन्होंने कहा कि अब नई शिक्षा नीति के कार्यांवयन से वास्तविक कार्य शुरू हुआ है। प्रधानमंत्री ने शिक्षकों से राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रभावी कार्यांवयन के लिए मिलकर काम करने का आग्रह किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि नई शिक्षा नीति की घोषणा के बाद कई तरह के सवालों का उठना उचित ही है और शिक्षा नीति के कार्यांवयन की दिशा में आगे बढ़ने के लिए इस सम्मेलन में ऐसे मुद्दे पर चर्चा करना आवश्यक है। प्रधानमंत्री ने खुशी जताई कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने के लिए स्कूलों के प्रधानाचार्य और शिक्षक उत्साहपूर्वक इस चर्चा में भाग ले रहे हैं।
नरेंद्र मोदी ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने पर देशभर के शिक्षकों की ओर से एक सप्ताह के भीतर 15 लाख से अधिक सुझाव प्राप्त हुए हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि ऊर्जावान युवा देश के विकास के इंजन हैं, लेकिन उनका विकास उनकी बाल्यावस्था से ही शुरू होना चाहिए। उन्होंने कहा कि बच्चों की शिक्षा और उन्हें मिलने वाला सही माहौल काफी हद तक यह निर्धारित करता है कि बच्चा भविष्य में क्या बनेगा और उसका व्यक्तित्व कैसा होगा। उन्होंने कहा कि एनईपी 2020 में इस बात पर बहुत जोर दिया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि बच्चे प्री-स्कूल में ही अपनी इंद्रियों और अपने कौशल को बेहतर ढंग से समझने लगते हैं, इसके लिए उनको हंसी-मज़ाक में सीखने, खेल-खेल में सीखने, गतिविधियां करते हुए सीखने और खोजबीन आधारित ज्ञान हासिल करने के लिए स्कूलों और शिक्षकों को चाहिए कि वे बच्चों को उचित माहौल मुहैया कराएं। उन्होंने कहा कि जैसे-जैसे बच्चा आगे बढ़ता है, उसमें अधिक से अधिक सीखने की ललक, वैज्ञानिक और तार्किक सोच, गणितीय सोच और वैज्ञानिक स्वभाव विकसित करना बहुत आवश्यक है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पुराने 10 प्लस 2 शिक्षा प्रणाली की जगह राष्ट्रीय शिक्षा नीति में 5 प्लस 3 प्लस 3 प्लस 4 की प्रणाली को लागू करने के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि इस नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने से अब तक शहरों के निजी स्कूलों तक ही सीमित रही खेल-खेल में शिक्षा अब गांवों में भी पहुंचेगी। प्रधानमंत्री ने कहा कि बुनियादी शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करना इस नीति का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत बच्चों में पढ़ने-लिखने और गणना के बुनियादी विकास को एक राष्ट्रीय मिशन के रूपमें लिया जाएगा, बच्चों को आगे बढ़कर सीखने के लिए पढ़ना चाहिए और इसके लिए यह आवश्यक है कि शुरुआत में उसे पढ़ना सिखाया जाए। प्रधानमंत्री ने कहा कि पढ़ना सीखने से लेकर सीखने के लिए पढ़ने की यह विकास यात्रा लिखने-पढ़ने और गणना करने की बुनियादी शिक्षा के माध्यम से पूरी होगी। प्रधानमंत्री ने कहा कि यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि तीसरी कक्षा को पार करने वाला प्रत्येक बच्चा एक मिनट में आसानी से 30 से 35 शब्द पढ़ सकता है।
नरेंद्र मोदी ने कहा कि नई शिक्षा नीति में अन्य विषयों की सामग्री को आसानी से समझने में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि यह सब तभी संभव होगा, जब पढ़ाई हमारी वास्तविक दुनिया से हमारे जीवन और आसपास के वातावरण से जुड़ी हो। उन्होंने कहा कि जब शिक्षा आसपास के वातावरण से जुड़ी होती है तो इसका प्रभाव छात्र के पूरे जीवन और पूरे समाज पर भी पड़ता है। उन्होंने उस पहल के बारे में भी बताया जो उन्होंने गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए शुरू की थी कि सभी स्कूलों के छात्रों को गांव के सबसे पुराने पेड़ की पहचान करने का काम दिया गया और फिर उस पेड़ और उनके गांव पर आधारित एक निबंध लिखने को कहा गया। प्रधानमंत्री ने कहा कि यह प्रयोग बहुत सफल रहा, इससे एक तरफ जहां बच्चों को पर्यावरण के बारे में जानकारी मिली, वहीं दूसरी ओर उन्हें अपने गांव के बारे में बहुत सारी जानकारी प्राप्त करने और गांव के महत्व को समझने का मौका मिला।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बच्चों के बुनियादी विकास के लिए ऐसे ही आसान और नवीन तरीकों को बढ़ाने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि हमारे आधुनिक जमाने में सीखने का मूल होना चाहिए- संलग्न, अन्वेषण, अनुभव, व्यक्त और आगे बढ़ना। प्रधानमंत्री ने कहा कि छात्रों को अपनी रुचि के अनुसार गतिविधियों, कार्यक्रमों और परियोजनाओं में शामिल होना चाहिए, इससे बच्चे रचनात्मक तरीके से खुद को व्यक्त करना सीखते हैं। उन्होंने कहा कि बच्चों को ऐतिहासिक स्थानों, रुचिकर जगहों, खेत-खलिहानों, उद्योगों आदि की अध्ययन यात्रा पर ले जाना चाहिए, क्योंकि इससे उन्हें व्यावहारिक ज्ञान मिलेगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि यह अब सभी स्कूलों में नहीं हो रहा है, इस वजह से बहुत छात्रों को व्यावहारिक ज्ञान नहीं मिल रहा है। उन्होंने कहा कि छात्रों को व्यावहारिक ज्ञान मिलने से उनकी जिज्ञासा बढ़ेगी और उनका ज्ञान भी बढ़ेगा, यदि छात्र कुशल पेशेवरों को देखेंगे तो उनमें एक प्रकार का भावनात्मक संबंध होगा, वे उस कौशल को समझेंगे और उनका सम्मान करेंगे।
प्रधानमंत्री ने कहा कि यह संभव है कि इनमें से कई बच्चे बड़े होकर ऐसे उद्योगों में शामिल होंगे या अगर वे दूसरा पेशा भी चुनते हैं तो यह उनके दिमाग में रहेगा कि ऐसे पेशे को बेहतर बनाने के लिए क्या नया किया जा सकता है। नरेंद्र मोदी ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति इस तरह से तैयार की गई है कि पाठ्यक्रम को कम किया जा सकता है और मूलभूत चीजों पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि सीखने को एकीकृत और अंतःविषयक, मजेदार और पूर्ण अनुभव आधारित बनाने के लिए एक राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना विकसित की जाएगी, इसके लिए सुझाव मंगाए जाएंगे और इसमें सबके सुझाव और आधुनिक शिक्षा प्रणालियों को शामिल किया जाएगा। उन्होंने कहा कि हमारी भविष्य की दुनिया हमारी आज की दुनिया से काफी अलग होने जा रही है। उन्होंने 21वीं सदी के कौशल के साथ हमारे छात्रों को आगे बढ़ाने के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने 21वीं सदी के कौशल के रूपमें समीक्षात्मक सोच, सृजनात्मकता, सहयोग, जिज्ञासा और संचार को सूचीबद्ध किया।
नरेंद्र मोदी ने कहा कि छात्रों को शुरू से ही कोडिंग सीखनी चाहिए, कृत्रिम बुद्धिमता को समझना चाहिए, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, क्लाउड कंप्यूटिंग, डेटा साइंस और रोबोटिक्स से जुड़ना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारी पहले की शिक्षा नीति प्रतिबंधात्मक थी, लेकिन वास्तविक दुनिया में सभी विषय एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं, वर्तमान प्रणाली अपने क्षेत्र को बदलने और नई संभावनाओं से जुड़ने का अवसर प्रदान नहीं करती है। उन्होंने कहा कि यह भी कई बच्चों के पढ़ाई के दौरान बीच में ही स्कूल छोड़ने का एक प्रमुख कारण रहा है, इसलिए नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में छात्रों को किसी भी विषय को चुनने की आजादी दी गई है। प्रधानमंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति एक और बड़े मुद्दे का भी समाधान देती है-अंकपत्र संचालित शिक्षा हमारे देश में सीखने की शिक्षा पर हावी है। उन्होंने कहा कि मार्कशीट अब मानसिक दबाव शीट की तरह हो गई है, शिक्षा से इस तनाव को दूर करना राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मुख्य उद्देश्यों में से एक है, परीक्षा ऐसी होनी चाहिए जो छात्रों पर अनावश्यक दबाव न डाले।
प्रधानमंत्री ने कहा कि यह प्रयास किया जा रहा है कि छात्रों का मूल्यांकन केवल एक परीक्षा द्वारा नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि आत्म मूल्यांकन, सहपाठियों का आपसी मूल्यांकन जैसे छात्र विकास के विभिन्न पहलुओं पर आधारित होना चाहिए। प्रधानमंत्री ने कहा कि एक मार्कशीट के बजाय राष्ट्रीय शिक्षा नीति में एक समग्र रिपोर्ट कार्ड के लिए प्रस्ताव किया गया है, जो छात्रों की अद्वितीय क्षमता, योग्यता, दृष्टिकोण, प्रतिभा, कौशल, दक्षता और संभावनाओं की एक विस्तृत रिपोर्ट होगी। उन्होंने कहा कि मूल्यांकन प्रणाली के समग्र सुधार के लिए एक नया राष्ट्रीय मूल्यांकन केंद्र परख की स्थापना की जाएगी। प्रधानमंत्री ने कहा कि यह समझने की जरूरत है कि भाषा शिक्षा का माध्यम है, भाषा अपने आप में शिक्षा नहीं है। कुछ लोग इस अंतर को भूल जाते हैं, इसलिए जो भी भाषा बच्चा आसानी से सीख सकता है, वही भाषा उनके सीखने की भाषा होनी चाहिए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि नई शिक्षा नीति में यह प्रस्तावित है कि प्रारंभिक शिक्षा ज्यादातर अन्य देशों की तरह मातृभाषा में होनी चाहिए, अन्यथा जब बच्चे किसी अन्य भाषा में कुछ सुनते हैं तो वे पहले उसे अपनी भाषा में अनुवाद करते हैं, फिर इसे समझने की कोशिश करते हैं। उन्होंने कका कि इससे बच्चे के मन में बहुत भ्रम पैदा होता है, यह बहुत तनावपूर्ण होता है, इसलिए जहां तक संभव हो राष्ट्रीय शिक्षा नीति में कम से कम पांचवीं कक्षा तक छात्रों को स्थानीय भाषा या मातृभाषा में पढ़ाने-सिखाने को कहा गया है। प्रधानमंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में मातृभाषा के अलावा कोई अन्य भाषा सीखने पर कोई प्रतिबंध नहीं हैं। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी के साथ-साथ अन्य विदेशी भाषाएं सीखी जा सकती हैं, अन्य भारतीय भाषाओं को भी बढ़ावा दिया जाएगा, ताकि हमारे युवा विभिन्न राज्यों की भाषाओं और वहां की संस्कृति से परिचित हो सकें। प्रधानमंत्री ने कहा कि शिक्षक राष्ट्रीय शिक्षा नीति की इस यात्रा के अग्रदूत हैं, इसलिए सभी शिक्षकों को बहुत सी नई चीजें सीखनी पड़ती हैं और पुरानी चीजों को भूलना भी पड़ता है।