स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
Thursday 17 September 2020 05:48:18 PM
नई दिल्ली। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कांग्रेस की ज़िद पर आज फिर राज्यसभा में लद्दाख की सीमाओं पर घटित घटनाओं का ब्यौरा रखा और कहा कि हमारा महान देश भारत अनगिनत देशवासियों के त्याग एवं तपस्या के फलस्वरूप ही आज सुरक्षित स्थिति तक पहुंचा है। उन्होंने कहा कि स्वतंत्र भारत में भारत की सेनाओं ने देश की सुरक्षा के लिए अपना सर्वोच्च न्योछावर करने में कभी कोई कोताही नहीं बरती है। उन्होंने कहा कि आप सबको ज्ञातहै कि 15 जून 2020 को गलवान घाटी में कर्नल संतोष बाबू के साथ हमारे 19 और बहादुर जवानों ने भारत माता की सीमा की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं लद्दाख जाकर वीर जवानों का हौसला बढ़ाया और मैने भी बहादुर जवानों से मिलकर उनके शौर्य और अटूट साहस का अनुभव किया है।
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के प्रस्ताव पर सदन में गलवान में शहीद हुए बीस जवानों को दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि अर्पित की गई। रक्षामंत्री ने चीन के साथ सीमा संबंधी विषय के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि सदन इस बात से अवगत है कि भारत एवं चीन की सीमा का प्रश्न अभी तक अनसुलझा है, भारत और चीन की सीमा का औपचारिक और परम्परागत संरेखण चीन नहीं मानता है। उन्होंने कहा कि यह सीमा-रेखा ठीक प्रकार से स्थापित भौगोलिक सिद्धांतों पर आधारित है, जिसकी पुष्टि न केवल संधियों और समझौतों से, बल्कि ऐतिहासिक तथ्यों और परिपाटियों से भी हुई है। इस बात से दोनों देश सदियों से अवगत हैं, जबकि चीन यह मानता है कि सीमा अभी भी औपचारिक रूपसे निर्धारित नहीं है। उन्होंने कहा कि चीन यह भी मानता है कि ऐतिहासिक क्षेत्राधिकार के आधार पर जो परम्परागत प्रथागत सीमा है, उसके बारे में दोनों देशों की अलग-अलग व्याख्या है, दोनों देश 1950 एवं 1960 के दशक में इसपर बातचीत कर रहे थे, परंतु इसपर पारस्परिक रूपसे स्वीकार्य समाधान नहीं निकल पाया।
रक्षामंत्री ने कहा कि जैसा कि सदन अवगत है कि चीन लद्दाख में भारत की लगभग 38,000 वर्ग किलोमीटर भूमि का अनधिकृत कब्जा किए हुए है, इसके अलावा 1963 में एक तथाकथित सीमा समझौते के तहत पाकिस्तान ने अपने कब्ज़े वाले कश्मीर की 5180 वर्ग किलोमीटर भारतीय जमीन अवैध रूपसे चीन को सौंप दी है, चीन अरूणाचल प्रदेश की सीमा से लगे हुए लगभग 90,000 वर्ग किलोमीटर भारतीय क्षेत्र को भी अपना बताता है। उन्होंने कहा कि भारत-चीन औपचारिक तौर पर यह मानते हैं कि सीमा का प्रश्न एक जटिल मुद्दा है, जिसके समाधान के लिए धैर्य की आवश्यकता है तथा इस मुद्दे का स्पष्ट, न्यायसंगत और परस्पर स्वीकार्य समाधान शांतिपूर्ण बातचीत से निकाला जाए। अंतरिम रूपसे दोनों पक्षों ने यह मान लिया है कि सीमा पर शांति और स्थिरता बहाल रखना द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ाने के लिए अत्यंत आवश्यक है।
रक्षामंत्री ने बताया कि अभी तक भारत-चीन के सीमा क्षेत्र में साझा रूपसे निरूपित वास्तविक नियंत्रण रेखा नहीं है और एलएसी को लेकर दोनों की धारणा अलग-अलग है, इसलिए शांति और स्थिरता बहाल रखने के लिए दोनों देशों के बीच कई तरह के समझौते और संधि पत्र हैं। उन्होंने कहा कि इन समझौतों के अंतर्गत दोनों देशों ने यह माना है कि एलएसी पर शांति और स्थिरता बहाल रखी जाएगी, जिसपर एलएसी की अपनी-अपनी स्थिति और सीमा के प्रश्न का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, इसी आधार पर वर्ष 1988 के बाद से दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों में काफी विकास हुआ। उन्होंने कहा कि भारत का मानना है कि द्विपक्षीय संबंधों को विकसित किया जा सकता है तथा साथ ही साथ सीमा के मुद्दे के समाधान के बारे में चर्चा भी की जा सकती है, परंतु एलएसी पर शांति और स्थिरता में किसी भी प्रकार की गम्भीर स्थिति का द्विपक्षीय संबंधों पर निश्चित रूपसे असर पड़ेगा। वर्ष 1993 एवं 1996 के समझौते में इस बात का जिक्र है कि एलएसी के पास दोनों देश अपनी सेनाओं की संख्या कम से कम रखेंगे।
रक्षामंत्री ने कहा कि समझौते में यह भी है कि जबतक सीमा के मुद्दे का पूर्ण समाधान नहीं होता है, तबतक वास्तविक नियंत्रण रेखा का कड़ाई से आदर और अनुपालन किया जाएगा तथा उसका उल्लंघन नहीं किया जाएगा, इन समझौतों में भारत व चीन एलएसी के स्पष्टीकरण से एक परस्पर स्वीकार्य समझ पर पहुंचने के लिए भी प्रतिबद्ध हुए थे। उन्होंने कहा कि इसके आधार पर 1990 से 2003 तक दोनों देशों ने वास्तविक नियंत्रण रेखा पर एक साझा समझ बनाने की कोशिश की, लेकिन इसके बाद चीन ने इस कार्यवाही को आगे बढ़ाने पर सहमति नहीं जताई, इसके कारण कई जगहों पर चीन तथा भारत के बीच एलएसी की धारणा में आपसी अतिक्रमण हैं। उन्होंने कहा कि इन क्षेत्रों में तथा सीमा के कुछ अन्य इलाकों में दूसरे समझौतों के आधार पर दोनों देशों की सेनाएं टकराव आदि की स्थिति का समाधान निकालती हैं, जिससे कि शांति स्थापित रहे।