स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
Monday 18 January 2021 02:16:02 PM
बठिंडा (पंजाब)। कोरोना महामारी के लॉकडाउन से अबतक देश राजनीति और समाज में जहां बड़े ही असहनीय अकथनीय और वीभत्स मंज़र देखने और सहने को मिले हैं, वहीं समाज का मानवीय एवं अनुकरणीय परिदृश्य भी देखने को मिला है। कोरोना महामारी के लॉकडाउन से जहां देश का आर्थिक पहिया थम गया तो शिक्षा क्षेत्र पर भी बहुत बुरा असर पड़ा। अधिकांश स्कूल-कॉलेज तो आज तक बंद हैं। यहां हम बात कर रहे हैं स्कूली शिक्षा की जिसमें पता चल रहा है कि ट्यूशनखोरों और कोचिंगखोरों ने लॉकडाउन में छात्र-छात्राओं की मजबूरी को जमकर ऑनलाइन भुनाया है, मगर इसके विपरीत शिक्षक समाज के ऐसे भी शिक्षक सामने आए हैं, जिन्होंने कोरोना संकटकाल में समाज और देश के सामने शिक्षक धर्म को मानवीय और अनुकरणीय जिम्मेदारी से प्रस्तुत किया है। इनमें केंद्रीय विद्यालय बठिंडा के गणित के शिक्षक दंपति संजीव कुमार और पत्नी कविता शिक्षक समाज के अनुकरणीय उदाहरण हैं जो उन जैसे कुछ शिक्षकों की तरह कोरोना संकटकाल से करीब ढाई हज़ार छात्र-छात्राओं को निःशुल्क ऑनलाइन पढ़ाकर शिक्षक धर्म की प्रेरणा बन गए हैं।
शिक्षक दंपति को निःशुल्क और उनके पढ़ाने समझाने की असरदार शैली से प्रभावित छात्र-छात्राओं एवं उनके अभिभावकों के बड़ी संख्या में प्रशंसा-पत्र प्राप्त हुए हैं और प्राप्त हो रहे हैं। प्रशंसा-पत्रों में उन्होंने शिक्षक दंपति पर बड़ा गर्व किया है। हाथ से लिखे गए अनेक पत्र छात्र-छात्राओं में बहुमुखी योग्यता को प्रदर्शित करते हैं। केंद्रीय विद्यालय क्रमांक एक बठिंडा के गणित के प्राध्यापक संजीव कुमार का कहना है कि 19 मार्च से पूरे भारत में लॉकडाउन ने सभी को विषम असमंजस की स्थिति में डाल दिया था, स्कूल एवं कॉलेज सभी बंद कर दिए गए थे, स्कूलों में नए शैक्षिक सत्र की शुरुआत 1 अप्रैल 2020 से होनी मुश्किल थी, ऐसे में उन्होंने पूरे भारत के बच्चों को फ्री ऑफ़ कॉस्ट मैथ पढ़ाने का बीड़ा उठाया, लेकिन चुनौती बड़ी थी। वह बताते हैं कि उन्होंने ऑनलाइन क्लास का सारा सिस्टम समझा और शिक्षक पत्नी कविता के सहयोग से घर से ही ऑनलाइन क्लासेज़ शुरू कर दीं, एक बड़ी समस्या फिर भी सामने थी कि बच्चों को इस ऑनलाइन क्लास के बारे में जानकारी कैसे हो? इसका भी समाधान सामने आ गया। संजीव कुमार ने क्लास का शेड्यूल बनाकर व्हाट्सएप ग्रुप में मित्रों के साथ शेयर किया और 29 मार्च को पहले ही ट्रायल क्लास में 50 बच्चे आ गए, व्हाट्सएप मैसेज और आगे शेयर हुआ तो दूसरी क्लास में 350 बच्चों की रिक्वेस्ट आ गई।
संजीव कुमार को यह उम्मीद नहीं थी कि मैथ के इतने बच्चे उनके पास आ जाएंगे। उन्होंने इन सभी बच्चों को अपनी ऑनलाइन क्लासेज़ से जोड़ने के लिए तत्काल ज़ूम ऐप का बिज़नेस प्लान लिया और कॉपी, व्हाइट बोर्ड से आगे निकलकर एप्पल ऑयपैड और लैपटॉप का प्रयोग करके बच्चों को गणित पढ़ाना शुरू कर दिया। संजीव कुमार बताते हैं कि हर अध्याय के बाद गूगल फॉर्म पर बच्चों का टेस्ट लिया जाता है और उनके ई-मेल पर टेस्ट का परिणाम भेज दिया जाता है। संजीव कुमार आठवीं से लेकर बारहवीं और एनटीआरसी के बच्चों को मैथ पढ़ा रहे हैं। पचास बच्चों से शुरू हुई ऑनलाइन कक्षा का यह सिलसिला आज तक़रीबन 2500 बच्चों तक पहुंच गया है। बठिंडा के इलावा देश के विभिन्न शहरों के बच्चे भी संजीव कुमार की गणित कक्षाओं से जुड़े हैं। संजीव कुमार कहते हैं कि एक शिक्षक होने के नाते कोरोना में लॉकडाउन से प्रभावित स्कूली बच्चों की पढ़ाई की चिंता के परिणामस्वरूप हम दोनों पति-पत्नी ने अपने वेतन के पैसे से यह शिक्षा कार्यक्रम शुरू किया जो आठ माह से बदस्तूर जारी है। ऑनलाइन कक्षाओं को लेकर संजीव कुमार को बड़े अनुभव हुए हैं, जो उन्होंने स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम से साझा किए हैं।
संजीव कुमार का कहना है कि ऑनलाइन कक्षाएं चलाकर हम दोनों पति-पत्नी बहुत खुश हैं, क्योंकि उन्हें कोरोना संकटकाल में अपने शिक्षक धर्म का पालन करने और बच्चों के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाने का सौभाग्य मिला है, उनकी मैथ कक्षाओं में बड़ी संख्या में बच्चों के आ जाने से इसमें अपना वेतन खर्च होने का उन्हें बिल्कुल भी एहसास नहीं है। संजीव कुमार कहते हैं कि मैं अपने शिक्षक कर्तव्य का श्रेय भी उन बच्चों और उनके अभिभावकों को देता हूं जो एक भरोसे से उनके साथ जुड़े हैं। संजीव कुमार का अपने खर्च पर 2500 विद्यार्थियों को लगातार ऑनलाइन कक्षाएं चलाकर शिक्षा देना कोई मामूली बात नहीं है। अनेक विद्यार्थियों और अभिभावकों ने उन्हें उनके इस कार्य की प्रशंसा में बहुत भावनात्मक पत्र लिखे हैं और एक गुरू-शिष्य के बीच आर्दश संबंधों के सम्मान में उनके लिए गुरूवंदना की है। संजीव कुमार बताते हैं कि उनको रोज़ाना ऐसे बहुत सारे लेटर ई-मेल से आते हैं जिनमें स्टूडेंट्स अपनी भावनाएं व्यक्त करते हैं, जिज्ञासू प्र्रश्न भी करते हैं। संजीव कुमार अपने इस कार्य का श्रेय भी बच्चों और उनके अभिभावकों को देते हैं जो उनके साथ जुड़े हैं। यह किसी के लिए भी आश्चर्य की बात हो सकती है कि इतने सारे बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाना कैसे संभव हो सकता है, इस सवाल पर वह कहते हैं कि मेरी पत्नी कविता ऑनलाइन पढ़ाई का सारा सॉप्टवेयर नेटवर्क संभालती हैं और मैं कक्षाएं, इसमें मैं कुछ सहयोगियों से भी सहायता ले लेता हूं और उनका खर्च भी स्वयं वहन करता हूं।
संजीव कुमार किस प्रकार ऑनलाइन पढ़ाई का संचालन करते हैं इसपर वह बताते हैं कि वाट्सएप ग्रुप में बच्चे की रिक्वेस्ट आने पर उसको शामिल किया जाता है, इसमें उसका क्लास, स्कूल पूछा जाता है और फिर उसी के आधार पर उसे सेव किया जाता है। वह बताते हैं कि प्रतिदिन हरेक बच्चे को क्लासवाइज़ टाइम टेबल के अनुरूप व्यक्तिगत तौर पर ब्रॉडकास्ट के जरिए रजिस्टर्ड मोबाइल पर आईडी और पासवर्ड भेजा जाता है, जिसे लॉगिन करके 1 घंटे की क्लास शुरू होती है। बच्चों को मानसिक तौर पर तैयार करने के लिए जाने-माने शिक्षविद भी अपनी सेवाएं देते हैं और विद्यार्थी का मार्गदर्शन करते हैं। संजीव कुमार ने बताया कि देशभर से बच्चे उनसे जुड़े हैं, इस कारण कुछ और भी समस्याएं सामने आ रही हैं जैसे-कश्मीर से दो सौ से ज्यादा बच्चे उनके संपर्क में हैं, वे ऐसे इलाकों से हैं कि उनके सामने नेट की बड़ी भारी समस्या है, वहां हर समय नेट नहीं चलता। श्रीनगर की नवीं की छात्रा अन्वेषा कोले ने संजीव कुमार की ऑनलाइन कक्षा ज्वाइन की है। वह कहती है कि उसके यहां 2जी नेटवर्क है, जो काम ही नहीं करता है। कश्मीर के ही तनवीर की भी यही समस्या है। संजीव कुमार बताते हैं दक्षिण भारत से भी बच्चे उनसे जुड़े हैं, उनके सामने भाषा की समस्या है जैसे-तमिलनाडु के बच्चे या तो तमिल बोलते हैं या फिर इंग्लिश, वे हिंदी नहीं बोल पाते तो फिर उनको इंग्लिश में सपोर्ट देना होता है।
संजीव कुमार कहते हैं कोविड-19 की चुनौतियों ने जीवनशैली सहित बहुत कुछ बदल दिया है। शिक्षा अब कक्षों से बाहर निकल गई है, ऑनलाइन कक्षाओं का समय आ गया है। वह कहते हैं कि मैं भारत सरकार से अनुरोध करूंगा कि जो बच्चे डिवाइस अफोर्ड नहीं कर सकते, उन्हें सरकार की ओर से डिवाइस दी जानी चाहिए, ताकि वे बाकी छात्रों के साथ प्रतिस्पर्धा में बने रह सकें। संजीव कुमार कहते हैं कि इन बच्चों के संपर्क में आकर उन्हें यह जानकर बहुत पीड़ा हुई कि बहुत से बच्चे पर्याप्त मार्गदर्शन के अभाव में स्टैंडर्ड मैथ के बजाय बेसिक मैथ पढ़ने को मजबूर हैं और अब इन ऑनलाइन कक्षाओं में पढ़कर उन्होंने स्टैंडर्ड मैथ लेने का निश्चय किया। जयश्री मिश्रा उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती जनपद की भिनगा तहसील के सुदूर उदईपुर गांव की केंद्रीय विद्यालय की दसवीं कक्षा की छात्रा है, वह अपने यहां शिक्षा के पर्याप्त अवसरों के अभाव में बेसिक मैथ पढ़ने को मजबूर थी, लेकिन संजीव कुमार की ऑनलाइन कक्षा में आकर उसे स्टैंडर्ड मैथ पढ़ने का मौका मिला और अब उसने स्टैंडर्ड मैथ ले लिया है। जयश्री मिश्रा एक मेधावी छात्रा है और ट्यूशन या कोचिंग के बिना उसका हिंदी और इंग्लिश पर भी जबरदस्त कमांड है। संजीव कुमार बताते हैं कि ऐसे बहुत से मेधावी छात्र-छात्राएं हैं जो अभावग्रस्त हैं, जिनमें पचास बच्चों को तो उन्होंने ही पांच-पांच सौ रुपए मूल्य की पचास स्टैंडर्ड मैथ की किताबें भेजी हैं और अब वे स्टैंडर्ड मैथ पढ़ रहे हैं।