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Friday 26 February 2021 05:11:50 PM
पणजी। आईसीएआर-सीसीएआरआई के जायफल पेरिकॉर्प यानी जायफल का बाहरी छिलका टॉफी के उत्पादन की प्रक्रिया संबंधी तकनीक के व्यावसायिकरण के लिए आईसीएआर-केंद्रीय तटीय कृषि अनुसंधान संस्थान गोवा और गोवा स्टेट बायोडायवर्सिटी बोर्ड गोवा के बीच एक अनुबंध ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए। आईसीएआर-सीसीएआरआई के निदेशक (ए) डॉ ईबी चाकुरकर और जीएसबीबी गोवा के सदस्य सचिव डॉ प्रदीप सरमोकदम ने ओल्ड गोवा में आईसीएआर-सीसीएआरआई कार्यालय में अनुबंध ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। इस तकनीक को विकसित करने की प्रक्रिया से प्रधान वैज्ञानिक (बागवानी) डॉ एआर देसाई, जीएसबीबी गोवा के अधिकारी और आईसीएआर-सीसीएआरआई के स्टाफ सदस्य जुड़े हैं। सदस्य सचिव (आईटीएमयू) डॉ श्रीपद भट्ट ने आईसीएआर-सीसीएआरआई और जीएसबीबी गोवा के अधिकारियों का स्वागत किया। उन्होंने पांच वर्ष तक वैध रहने वाले इस नॉन-एक्सक्लूसिव लाइसेंसिंग अनुबंध की प्रमुख बातों पर प्रकाश भी डाला।
डॉ ईबी चाकुरकर ने अनुबंध में शामिल होने के लिए जीएसबीबी गोवा को बधाई दी और गोवा राज्य में किसानों एवं कृषि उद्यमियों को लाभ पहुंचाने के लिए भविष्य की प्रौद्योगिकियों के व्यावसायिक उपयोग और हस्तांतरण की ज़रूरत पर भी बल दिया। डॉ प्रदीप सरमोकदम ने आईसीएआर-सीसीएआरआई का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि राज्य के जैविक संसाधनों के सतत उपयोग के माध्यम से जैव विविधता के संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए जीएसबीबी गोवा निरंतर जारी रहने वाली सहभागी गतिविधियों की दिशा में आईसीएआर-सीसीएआरआई के साथ लगातार काम करता करेगा। उन्होंने बताया कि जीएसबीबी गोवा ने आजीविका हस्तक्षेप के माध्यम से जैव विविधता का संरक्षण करने के लिए ‘गोवन’ नाम से एक नई परियोजना शुरु की है, जिसका उद्देश्य किसानों की आय को बढ़ाना, रोज़गार के अवसर पैदा करना है, ताकि स्थानीय जैव संसाधनों का संरक्षण किया जा सके। जायफल में लगभग 80-85 प्रतिशत पेरिकॉर्प (जायफल का बाहरी छिलका) है और अधिक उपज देने वाली जायफल की किस्में प्रति पेड़ 100 किलोग्राम तक ताज़ा पेरिकॉर्प की पैदावार करती हैं।
किसान जायफल के बीज और गुदा का इस्तेमाल करते हैं और पेरिकॉर्प को खेत में ही सड़ने के लिए छोड़ देते हैं, लेकिन यह तकनीक व्यर्थ छोड़ दिए गए पेरिकॉर्प से जायफल टॉफी बनाकर इसके प्रभावी इस्तेमाल में मदद करती है। व्यावसायिक नज़रिए से यह जायफल टॉफी काफी महत्वपूर्ण खाद्य पदार्थ है, ये उत्पाद जायफल से निर्मित मसाला उत्पादों-जायफल के बीज और गुदा की उपज के अलावा किसानों और उद्यमियों को एक अतिरिक्त आय दिलाने में मदद करता है। ख़ास बात यह है कि किसी सिंथेटिक प्रिज़र्वेटिव का इस्तेमाल किए बिना ही कमरे के सामान्य तापमान पर इस उत्पाद का एक साल तक भंडारण किया जा सकता है। आईसीएआर-सीसीएआरआई गोवा ने इस तकनीक का पेटेंट कराने के लिए पहले से ही आवेदन (आवेदन संख्या- 201621012414) कर दिया है। इस तकनीक के व्यावसायिकरण की दिशा में अनुबंध ज्ञापन पर हस्ताक्षर को साकार बनाने में संस्थान प्रौद्योगिकी प्रबंधन इकाई ने मदद की है।