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Wednesday 10 March 2021 02:10:47 PM
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीमद्भगवद गीता की पांडुलिपि के साथ इसके श्लोकों पर 21 विद्वानों के भाष्य जारी किए हैं। इस अवसर पर जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा और धर्मार्थ ट्रस्ट जम्मू-कश्मीर के ट्रस्टी एवं अध्यक्ष डॉ कर्ण सिंह भी उपस्थित थे। प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर भारतीय दर्शन पर डॉ कर्ण सिंह के कार्यों की सराहना की। उन्होंने कहा कि उनके प्रयास ने जम्मू-कश्मीर की पहचान को पुनर्जीवित किया है, जिसने सदियों से पूरे भारत की विचार परंपरा का नेतृत्व किया है। प्रधानमंत्री ने कहा कि हजारों विद्वानों ने गीता के गहन अध्ययन के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित किया है, जिसे एक ग्रन्थ के प्रत्येक श्लोक पर विभिन्न व्याख्याओं के विश्लेषण और विभिन्न रहस्यों की अभिव्यक्ति के रूपमें स्पष्ट तौरपर देखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि गीता भारत की वैचारिक स्वतंत्रता और सहिष्णुता की भी प्रतीक है, जो प्रत्येक व्यक्ति को अपना दृष्टिकोण रखने के लिए प्रेरित करती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत को एकजुटता प्रदान करने वाले आदि शंकराचार्य ने गीता को आध्यात्मिक चेतना के रूपमें देखा, रामानुजाचार्य जैसे संतों ने आध्यात्मिक ज्ञान की अभिव्यक्ति के रूपमें गीता को सामने रखा था। नरेंद्र मोदी ने श्रीमद्भगवद गीता का व्याख्यान करते हुए कहा कि स्वामी विवेकानंद के लिए गीता अटूट परिश्रम और अदम्य आत्मविश्वास का स्रोत रही है, अरबिंदो के लिए गीता ज्ञान और मानवता का सच्चा अवतार थी, गीता महात्मा गांधी के सबसे कठिन समय में प्रकाश स्तंभ थी, गीता नेताजी सुभाष चंद्र बोस की देशभक्ति और वीरता की प्रेरणा रही है, गीता पर बालगंगाधर तिलक की व्याख्या ने स्वतंत्रता संग्राम को नई ताकत दी थी। प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारा लोकतंत्र हमें विचारों की स्वतंत्रता, कार्य की स्वतंत्रता और जीवन के हर क्षेत्र में समान अधिकार देता है, यह स्वतंत्रता लोकतांत्रिक संस्थानों से आती है, जो हमारे संविधान के संरक्षक हैं, इसलिए जब भी हम अपने अधिकारों की बात करते हैं, हमें अपने लोकतांत्रिक कर्तव्यों को भी याद रखना चाहिए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि गीता पूरी दुनिया और हर प्राणी के लिए एक महत्वपूर्ण पुस्तक है, इसका कई भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय भाषाओं में अनुवाद किया गया है और कई देशों के विद्वान इसपर अनुसंधान कर रहे हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि ज्ञान साझा करना भारत की संस्कृति में है। उन्होंने कहा कि गणित, वस्त्र, धातु विज्ञान या आयुर्वेद में हमारे ज्ञान को हमेशा मानवता के धन के रूपमें देखा जाता है। उन्होंने कहा कि भारत पूरी दुनिया की प्रगति में योगदान करने और मानवता की सेवा करने के लिए अपनी क्षमता का निर्माण कर रहा है। उन्होंने कहा कि हाल के दिनों में भारत के योगदान को पूरी दुनिया ने देखा है और निष्कर्ष के तौरपर आत्मनिर्भर भारत के लिए किए जा रहे प्रयासों के इस योगदान से पूरी दुनिया को व्यापक स्तरपर मदद मिलेगी।