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Friday 12 March 2021 11:09:27 AM
हरिद्वार/ वड़ोदरा। पारूल विश्वविद्यालय वड़ोदरा के डिपार्टमेंट ऑफ साइक्लॉजी की ओर से कुंभ दर्शन एंड इट्स सोशल एंड साइक्लोजिकल इम्पेक्ट विषय पर वेबिनार हुआ, जिसमें साहित्यकार एवं विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ के मानद उपकुलसचिव श्रीगोपाल नारसन ने फैकल्टी सदस्यों, विद्यार्थियों एवं प्रतिभागियों को कुंभ पर जानकारियां देते हुए कुंभ के ऐतिहासिक महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कुंभ के करीब 850 साल के प्रमाणित दस्तावेजों के आधार पर इसके इतिहास का वर्णन किया, जिनमें आदि शंकराचार्य की ओर से पहला कुंभ मेला आंरभ होने की बातसामने आती है। उन्होंने कहा कि समुद्र मंथन में निकले अमृत कलश पर देवताओं एवं राक्षसों के झगडे़ में अमृत कलश की जब कुछ बूंदें नासिक, हरिद्वार, उज्जैन एवं प्रयागराज में गिरीं, तब से अब तक इन पवित्र स्थानों पर पारंपरिक रूपसे कुम्भ मेलों के भरने की परंपरा चली आ रही है।
श्रीगोपाल नारसन ने वेबिनार में बताया कि कुंभ 12 साल में एकबार भरता है, लेकिन कुछ खगोलिय घटनाओं के चलते ऐसा पहली बार हुआ है कि 11 साल में ही यह कुंभ हरिद्वार में भरा है, कुंभ मेला 98 दिवस का होता है, आंरभ में तो उत्तराखंड सरकार ने चार महीने के कुंभ की ही तैयारियां की थीं, मगर कोरोना के चलते इसबार इसे एक महीने तक ही सीमित कर दिया गया है। उन्होंने बताया कि कोरोना की गाइड लाइन का पालन करते हुए पहले शाही स्नान में करीब 22 लाख लोगों ने कुंभ कीडुबकी लगाई, मगर जिन लोगों ने कोरोना गाइड लाइन का अनुपालन नहीं किया, कुंभ मेला प्रशासन को उनमेसे करीब 2500 गाड़ियों में आए लोगों को बिना स्नान किए ही लौटाना पड़ा। श्रीगोपाल नारसन ने विशाल कुंभ मेलों के दौरान हुईं आपदाओं, बीमारियों, महामारी एवं भीड़ के कारण मची भगदड़ और उनमें मरे लोगों की रिकार्ड पर संख्या का भी जिक्र किया।
श्रीगोपाल नारसन ने कहा कि आरंभ से ही कुंभ मेलों में लाखों करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु आते रहे हैं, आरंभ में इस प्रकार की यात्राओं में शामिल होने वाले लोग इसे अपनी अंतिम यात्रा ही मानकर चलते थे एवं जीवित रहते तो घर लौटकर आते थे, यदि यात्रा के दौरान कोई मर जाता तो उसका अंतिम संस्कार उसी तीर्थ स्थान पर कर दिया जाता था, मगर आज पर्याप्त संसाधनों के कारण लोग यात्रा, तीर्थाटन एवं पर्यटन के लिए भी कुंभ जैसे मेलों में जाते हैं एवं एक दिन में ही स्नान, पूजा आदि करके घर लौट जाते हैं। उन्होंने कहा कि कुंभ मेलों में हुई महामारी के कारण कोरोनाकाल जैसा ही सोशल डिस्टेंसलागू हुआ था, पहले भी कुंभ के दौरान खुले में शौच पर रोक लगाई गई थी, ताकि संक्रामक बीमारियां न होने पाएं। उन्होंने प्रशासन एवं पुलिस के अनुकरणीय प्रबंध की सराहना की और हरिद्वार कुंभ के पहले शाही स्नान की सफलता पर प्रसन्नता जाहिर की। उन्होंने कुंभ के कारण स्थानीय जनता की परेशानियों एवं उनपर साईक्लोजिकल प्रभावों को लेकर भी प्रकाश डाला।
माँ गंगा के जल के महत्व पर श्रीगोपाल नारसन ने कहा कि हर की पौड़ी से भरा गया गंगाजल कभी खराब नहीं होता। उन्होंने कहा कि चाहे कितनी भी संख्या में श्रद्धालु हरिद्वार में आ जाएं, चाहे इनकी संख्या करोड़ों में हो जाए, लेकिन यहां कोई भूखा नहीं सोता है। वेबिनार के दौरान श्रीगोपाल नारसन ने प्रश्नोत्तरी के माध्यम से प्रतिभागियों की जिज्ञासाओं कोशांत किया। वेबिनार में उन्होंने विभिन्न अखाड़ों, संत-साधु महात्माओं की ओर से किए जाने वाले आयोजनों और उनकी तपस्याओं पर भी प्रकाश डाला। पारुल विश्वविद्यालय की ओर से प्रोफेसर रमेश कुमार रावत ने वेबिनार में श्रीगोपाल नारसन का स्वागत स्वागत किया। वेबिनार में देश के विभिन्न प्रदेशों से सैकड़ों विद्यार्थियों, शिक्षकों, शोधार्थियों एवं पत्रकारों ने भाग लिया।