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टीबी रोको साझेदारी बोर्ड के हर्षवर्धन अध्यक्ष

भारत का वर्ष 2025 तक देश से टीबी को खत्म करने का लक्ष्य

स्टॉप टीबी पार्टनरशिप बोर्ड का विजन है 'टीबी मुक्त विश्व'

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Friday 19 March 2021 05:51:07 PM

dr. harsh vardhan

नई दिल्ली। भारत से 2025 तक क्षय रोग यानी टीबी के समाप्ति अभियान में केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ हर्षवर्धन के अतुलनीय योगदान को देखते हुए उन्हें ‘स्टॉप टीबी पार्टनरशिप बोर्ड’ यानी ‘टीबी रोको साझेदारी बोर्ड’ का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। स्टॉप टीबी पार्टनरशिप एक विशिष्ट अंतर्राष्ट्रीय संस्था है, जो दुनियाभर के विभिन्न पक्षों के साथ मिलकर टीबी के विरुद्ध अभियान चलाती है। इस वैश्विक संगठन की विशिष्ट मान्यता है और इसे टीबी को खत्म करने के लिए चिकित्सा, सामाजिक और वित्तीय विशेषज्ञता की आवश्यकता पड़ती है। इस बोर्ड का विजन है ‘टीबी मुक्त विश्व’। डॉ हर्षवर्धन को इसका अध्यक्ष बनाया जाना टीबी को खत्म करने की भारत की इच्छाशक्ति का प्रतीक है। डॉ हर्षवर्धन जुलाई 2021 को अपना पद संभालेंगे और उनका कार्यकाल 3 वर्ष का होगा।
स्टॉप टीबी पार्टनरशिप का गठन वर्ष 2000 में किया गया था, जिसका मुख्य उद्देश्य जनस्वास्थ्य की समस्या बन चुके ट्यूबरकुलोसिस को जड़ से खत्म करना था। इस संस्था का गठन मार्च 1998 में लंदन में ट्यूबरकुलोसिस महामारी पर आपातकालीन समिति की बैठक के पहले सत्र के बाद हुआ था, जिसके बाद अपने पहले वर्ष में ही स्टॉप टीबी पार्टनरशिप ने एमस्टरडम घोषणापत्र में 20 देशों के मंत्रीस्तरीय प्रतिनिधिमडल के सहयोग से साझा कार्यक्रम का आह्वान किया। इस संगठन के साथ 1500 साझेदार जुड़े हुए हैं, जिनमें अंतर्राष्ट्रीय, गैर सरकारी, सरकारी और मरीज समूह शामिल हैं। संगठन का सचिवालय स्विट्जरलैंड के जेनेवा में है। दुनिया में टीबी को खत्म करने की समय सीमा 2030 तय की गई है, जबकि भारत ने इससे 5 वर्ष पहले 2025 तक देश से टीबी को जड़ से खत्म करने का लक्ष्य निर्धारित किया हुआ है।
भारत सरकार की टीबी को खत्म करने की राष्ट्रीय रणनीतिक योजना 2017-2025 एक महत्वाकांक्षी एजेंडा है, जो भारत में राष्ट्रीय रणनीतिक योजना के तहत उन्नत चिकित्सा पद्धतियों और प्रयासों से चलाया जा रहा है और जिसने विश्व स्वास्थ्य संगठन के सदस्य देशों का ध्यान आकर्षित किया है कि किस तरह भारत की कार्यशैली से वह लाभांवित हो सकते हैं और सीख सकते हैं। कोविड-19 महामारी के संदर्भ में भी भारत का प्रदर्शन अच्छा रहा है, जहां स्वस्थ होने की दर 97 प्रतिशत है और मृत्यु दर 2 प्रतिशत से भी कम है। इसके चलते भारत में संचारी रोगों के प्रति फिर से ध्यान देने की आवश्यकता महसूस की गई और लोक स्वास्थ्य देखभाल को प्राथमिकता देते हुए अब बड़ा निवेश इस क्षेत्र में किया जा रहा है। डॉ हर्षवर्धन कोविड-19 के नियंत्रण और देखभाल के लिए तैयार किए गए बुनियादी ढांचे को टीबी को जड़ से खत्म करने के लिए इस्तेमाल करने के पक्षधर रहे हैं।
कोरोना संक्रमण के मद्देनजर कई समर्पित संचारी रोग अस्पताल निर्मित किए गए हैं, जो टीबी देखभाल और मरीजों के प्रबंधन में बड़ी भूमिका अदा कर सकते हैं। इस दौरान भारत की रोगों की जांच क्षमता में कई गुना का इजाफा हुआ है। बहुउपयोगी उपकरणों का जो चिप आधारित प्रौद्योगिकी पर काम करते हैं, टीबी की जांच में भी उपयोग किया जा सकता है। कोविड-19 के दौरान अपनाए गए स्वभावगत व्यवहारों ने जैसे-खांसते या छींकते समय मुंह पर हाथ रखना, मास्क पहनना, सामाजिक दूरी के नियमों का पालन करना इत्यादि से इस संचारी वायरस के प्रभाव को कम करने में अहम भूमिका अदा की है और ट्यूबरकुलोसिस के खिलाफ जागरुकता फैलाने में भी इन व्यवहारों का इस्तेमाल किया जाएगा। महामारी के दौरान टेलीमेडिसिन और टेलीकंसल्टेशन में भी कई गुना की वृद्धि हुई, जो टीबी से प्रभावित मरीजों के लिए भी उपयोगी हो सकती है।
डॉ हर्षवर्धन टीबी के खिलाफ लड़ाई को एक जन आंदोलन का रूप देने की वकालत करते हैं। उन्होंने सभी पक्षों का एकसाथ आने का आह्वान किया है, ताकि प्रभावी संप्रेषण रणनीति पर उनके विचार आ सकें, जिसका लक्ष्य अधिक से अधिक जनसंख्या तक पहुंचना, एहतियाती उपायों को बढ़ावा देना, टीबी प्रबंधन में जांच और उपचार का पहलू, मांग के आधार पर काम करना, मीडिया का इस संबंध में व्यापक स्तरपर इस्तेमाल सुनिश्चित करना, सामुदायिक स्तरपर लोगों की सहभागिता सुनिश्चित करना था। डॉ हर्षवर्धन ने सितंबर 2019 में राष्ट्रीय टीबी प्रसार सर्वेक्षण के साथ-साथ ‘टीबी हारेगा देश जीतेगा’ नाम से एक नया और बेहद प्रभावी अभियान शुरु किया था, उसके बाद से अबतक इस अभियान से अनेक पक्षों के साथ-साथ सामुदायिक साझेदारी बढ़ी है, जिससे देशव्यापी अभियान को बल मिला है। अभियान को शुरु करने के 100 दिन के भीतर ही देश के सभी जिलों में से 95 प्रतिशत में पेशेंट फोरम बनाए गए जो देश से टीबी को यथासंभव कम से कम समय में खत्म करने की उनकी प्रतिबद्धता का एक प्रमाण है।
कोविड-19 महामारी ने पूरी चिकित्सा व्यवस्था को कई वर्ष पीछे धकेल दिया और उपचार में व्यवधान, दवाओं की उपलब्धता की कमी, नैदानिक परीक्षण में असुविधा, जांच में देरी, आपूर्ति श्रृंखला में बाधा, विनिर्माण क्षमता में बाधा और मरीजों के सामने सुदूर अस्पतालों में जाकर उपचार लेने में बाधा इत्यादि सामने आई है। इस संबंध में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कई कदम उठाए, जिसमें टीबी कोविड-19 जांच एक साथ करने का प्रबंध, आईएलआई और एसएआरआई मामलों में जांच, निजी क्षेत्रों की सहभागिता को बढ़ावा देना और टीबी प्रोग्राम के लिए एचआर और सीबीएनएएटी तथा ट्रू नेट मशीनों को फिरसे काम पर लगाना शामिल था।

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