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Friday 14 May 2021 04:08:06 PM
नई दिल्ली। अब जब हम खुद को जानलेवा कोविड-19 संक्रमण से जूझ रहे हैं, उससे बचने-बचाने और उस पर विजय पाने की भरसक कोशिश कर रहे हैं, तब एक ब्लैक फंगस म्यूकोर्मिकोसिस भी सामने आ गया है और उसके प्रकोप से मौतें भी शुरु हो गई हैं। इसके बारे में भी हमें जानना चाहिए एवं इससे बचने के उपायों पर अनिवार्य रूपसे ध्यान देना जरूरी है। इसका नाम है म्यूकोर्मिकोसिस, जो एक फंगस संक्रमण है जो कुछ कोविड-19 मरीजों के ठीक होने के दौरान या बाद में पाया जा रहा है। उत्तर प्रदेश में इसने पैर पसार लिए हैं और इसके तीन मरीजों की मौत भी हो चुकी है। ब्लैक फंगस के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। इसी प्रकार महाराष्ट्र से भी फंगस संक्रमण से 2000 से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं और यहां 10 लोग इसकी चपेट में आकर दम तोड़ चुके हैं, कुछ मरीजों की तो आंखों की रोशनी भी चली गई है।
ब्लैक फंगस यानी म्यूकोर्मिकोसिस कैसे होता है? डॉक्टर लोग बता रहे हैं कि ब्लैक फंगस, फंगल संक्रमण से पैदा होने वाली एक गंभीर जटिलता है। वातावरण में मौजूद फंगस के बीजाणुओं के संपर्क में आने से लोग म्यूकोर्मिकोसिस की चपेट में आते हैं। शरीर पर किसी तरह की चोट, जलने, कटने आदि के जरिए यह त्वचा में प्रवेश करता है और त्वचा में विकसित हो सकता है। जो लोग कोविड-19 से उबर चुके हैं या ठीक हो रहे हैं उनमें इस बीमारी के होने का पता चल रहा है। इसके अलावा जिसे भी मधुमेह है और जिसकी प्रतिरक्षा प्रणाली ठीक से काम नहीं कर रही है, उसे इसे लेकर सावधान रहने की जरूरत है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद ने एक परामर्श जारी करके कहा है कि कोविड-19 रोगियों में किन दशाओं से म्यूकोर्मिकोसिस संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है-
अनियंत्रित मधुमेह में इसका प्रभाव ज्यादा होता है। स्टेरॉयड के उपयोग के कारण प्रतिरक्षा प्रणाली का कमजोर होना, लंबे समय तक आईसीयू या अस्पताल में रहना, सह-रुग्णता/ अंग प्रत्यारोपण के बाद/ कैंसर वोरिकोनाजोल थेरेपी जो गंभीर फंगल संक्रमण का इलाज करने के लिए इस्तेमाल की जाती है, उससे इसका बड़ा खतरा है। सवाल ये है कि इसका कोविड-19 से क्या संबंध है? तो यह बीमारी म्यूकोर्मिसेट्स नामक सूक्ष्म जीवों के एक समूह के कारण होती है, जो पर्यावरण में प्राकृतिक रूपसे मौजूद होते हैं और ज्यादातर मिट्टी में तथा पत्तियों, खाद एवं ढेरों जैसे कार्बनिक पदार्थों के क्षय में पाए जाते हैं। डॉक्टरों का कहना है कि सामान्य तौर पर हमारे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली ऐसे फंगल संक्रमण से सफलतापूर्वक लड़ती है, लेकिन हम जानते हैं कि कोविड-19 हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रभावित करता है।
कोविड-19 मरीजों के उपचार में डेक्सामेथासोन जैसी दवाओं का सेवन शामिल है, जो हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली की प्रतिक्रिया पर असर डालता है। इन कारकों के कारण कोविड-19 मरीजों को म्यूकोर्मिसेट्स जैसे सूक्ष्म जीवों के हमले के खिलाफ लड़ाई में विफल होने के इस जैसे नए खतरे का सामना करना पड़ता है। आईसीयू में ह्यूमिडिफायर का उपयोग किया जाता है, वहां ऑक्सीजन थेरेपी ले रहे कोविड मरीजों को नमी के संपर्क में आने के कारण फंगल संक्रमण का खतरा होता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हर कोविड मरीज म्यूकोर्मिकोसिस से संक्रमित हो जाएगा। जिन मरीजों को मधुमेह नहीं है, उन्हें यह बीमारी होना असामान्य है, लेकिन अगर तुरंत इलाज न किया जाए तो यह घातक हो सकती है। ठीक होने की संभावना भी बीमारी के जल्दी पता चलने और उपचार पर निर्भर करती है।
ब्लैक फंगस के सामान्य लक्षण क्या हैं? यह मनुष्य के माथे, नाक, गाल की हड्डियों के पीछे और आंखों एवं दांतों के बीच स्थित एयर पॉकेट में त्वचा के संक्रमण के रूपमें म्यूकोर्मिकोसिस दिखने लगता है। यह फिर आंखों, फेफड़ों में फैल जाता है और मस्तिष्क तक भी फैल सकता है। इससे नाक पर कालापन या रंग मलिन पड़ना, धुंधली या दोहरी दृष्टि, सीने में दर्द, सांस लेने में कठिनाई और खून की खांसी होती है। आईसीएमआर ने सलाह दी है कि बंद नाक के सभी मामलों को बैक्टीरियल साइनसिसिस के मामलों के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए, खासकर कोविड-19 रोगियों के उपचार के दौरान या बाद में बंद नाक के मामलों को लेकर ऐसा नहीं करना चाहिए। फंगल संक्रमण का पता लगाने के लिए चिकित्सकीय सहायता लेनी चाहिए।
फंगस संक्रमण जहां सिर्फ एक त्वचा संक्रमण से शुरू हो सकता है, यह शरीर के अन्य भागों में फैल सकता है। इसके उपचार में सभी मृत और संक्रमित ऊतक को हटाने के लिए की जाने वाली सर्जरी शामिल है। कुछ रोगियों में इससे ऊपरी जबड़े या कभी-कभी आंख की भी हानि हो सकती है। इलाज में अंतःशिरा एंटी-फंगल थेरेपी का चार से छह सप्ताह का कोर्स भी शामिल हो सकता है। चूंकि यह शरीर के विभिन्न हिस्सों को प्रभावित करता है, इसलिए इलाज करने के लिए सूक्ष्म जीव विज्ञानी, आंतरिक चिकित्सा विशेषज्ञों, न्यूरोलॉजिस्ट, ईएनटी विशेषज्ञ, नेत्र रोग विशेषज्ञ, दंत चिकित्सक, सर्जन और अन्य की एक टीम की आवश्यकता होती है। मधुमेह को नियंत्रित करना आईसीएमआर के सुझाए गए सबसे महत्वपूर्ण तरीकों में से एक है, इसलिए मधुमेह से पीड़ित कोविड-19 रोगियों को अत्यधिक सावधानी बरतने की आवश्यकता है।
अपने आप दवा लेना एवं स्टेरॉयड की अधिक खुराक लेना घातक हो सकता है, इसलिए डॉक्टर की सलाह का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए। नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य) डॉ वीके पॉल ने स्टेरॉयड के अनुचित उपयोग के प्रतिकूल प्रभावों के बारे में कहा है कि स्टेरॉयड कभी भी कोविड-19 के शुरुआती चरण में नहीं दिया जाना चाहिए, संक्रमण के छठे दिन के बाद ही इसका सेवन करना चाहिए। मरीजों को दवाओं की उचित खुराक पर टिके रहना चाहिए और डॉक्टरों की सलाह के अनुसार दवा को तय समय तक लेना चाहिए। दवा के प्रतिकूल दुष्प्रभावों से बचने के लिए दवाओं का विवेकपूरण उपयोग सुनिश्चित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि स्टेरॉयड के अलावा टोसिलिजूमोब, इटोलिजूमाब जैसी कोविड-19 दवाओं का उपयोग भी प्रतिरक्षा प्रणाली पर असर डालता है और जब इन दवाओं का उचित उपयोग नहीं किया जाता है तो यह जोखिम को बढ़ा देता है, क्योंकि हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली फंगल संक्रमण से लड़ने में विफल रहती है।
आईसीएमआर ने अपने दिशा-निर्देशों में कोविड-19 मरीजों को इम्यूनोमॉड्यूलेटिंग दवाओं का सेवन छोड़ने की सलाह दी है, जो एक ऐसा पदार्थ है जो प्रतिरक्षा प्रणाली को उत्तेजित कर देता है या दबा देता है। राष्ट्रीय कोविड-19 कार्यबल ने ऐसे किसी भी प्रतिकूल प्रभाव को रोकने के लिए टोसिलिजुमाब की खुराक में बदलाव किया है। उचित स्वच्छता बनाए रखने से भी फंगल संक्रमण को दूर रखने में मदद मिल सकती है। ऑक्सीजन थेरेपी ले रहे मरीजों के लिए यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि ह्यूमिडिफायर में पानी साफ हो और उसे नियमित रूपसे बार-बार डाला जाए। पानी का रिसाव न हो यह सुनिश्चित करने पर ध्यान दिया जाना चाहिए। मरीजों को अपने हाथों के साथ-साथ शरीर को भी साफ रखते हुए उचित स्वच्छता बनाए रखनी चाहिए। कोविड-19 से उबरने के बाद लोगों को गहराई से निगरानी करनी चाहिए और ऊपर उल्लेखित किसी भी चेतावनी संकेत एवं लक्षण को याद रखना चाहिए, क्योंकि फंगल संक्रमण कोविड-19 से उबरने के कई हफ्तों या महीनों के बाद भी उभर सकता है। संक्रमण के खतरे से बचने के लिए डॉक्टर की सलाह के अनुसार स्टेरॉयड का विवेकपूर्ण उपयोग करना चाहिए। बीमारी का जल्द पता लगने से फंगल संक्रमण के उपचार में आसानी हो सकती है।