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Tuesday 23 April 2013 09:00:17 AM
लखनऊ। भारत में खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के बिना न तो विकास होगा और न ही आर्थिक समावेशीपन आएगा, आर्थिक वृद्धि को रफ्तार देकर ही आर्थिक समावेशी विकास किया जा सकता है, उदारीकरण के बाद भारत की वैश्विक परिवेश में भूमिका बढी़ है, विश्व की आर्थिक महाशक्ति बनने के लिए सारे बंधनों को तोड़कर आगे बढ़ना होगा, जरूरत है दृढ़ इच्छा शक्ति एवं वैश्विक सोच की, तभी भारत विश्व के अग्रणी राष्ट्रों में खडा़ हो सकेगा।
ये बातें उत्तर प्रदेश योजना आयोग के उपाध्यक्ष एनसी बाजपेई ने मुख्य आतिथि के रूप में व्यवहारिक अर्थशास्त्र विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय के दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार भारत में खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भ्रम और वास्तविकता विषय पर बोलते हुए कहीं। उन्होंने कहा कि पिछले दो दशकों में परिस्थितियां बदली हैं, बदलते आर्थिक परिवेश में राजनीतिज्ञों को भी वैश्विक सोच के साथ आगे बढ़ना होगा, केवल निहित स्वार्थो के लिए आर्थिक सुधारों में रोडा़ नहीं अटकाना चाहिए।
अध्यक्षीय उद्बोधन में गिरी अध्ययन एवं विकास संस्थान के पूर्व निदेशक प्रोफेसर एके सिंह ने कहा कि खुदरा क्षेत्र में जो भी विदेशी कंपनियां हैं, वो पूरी तैयारी के साथ आ रही हैं, उनके पास पर्याप्त धन है, पर्याप्त संसाधन हैं, जिससे उनके बाजार पर पूरी तरह छा जाने की संभावना है, ऐसे में भारत को ऐसी नीति बनानी चाहिए, जिससे भविष्य में भारत की आर्थिक संप्रभुता पर ये विदेशी कंपनियां संकट न पैदा कर सकें। जरूरत है एफडीआई के सही मूल्यांकन कर अपने बिजनेस माडल को रीस्ट्रक्चर करने की, जिससे आम आदमी के हित को सुरक्षित एवं संरक्षित किया जा सके।
राष्ट्रीय सेमिनार की आयोजन सचिव प्रोफेसर मधुरिमा लाल ने कहा कि आम आदमी के जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए रोज़गारपरक नीतियां बनाने की आवश्यकता है, गिरती विकास दर के मूल कारणों पर ध्यान देना चाहिए, सरकारी अनिश्चितता और ठहराव अर्थव्यवस्था की रफ्तार में बडी़ बाधा है, आवश्कता है आर्थिक विकास की प्रक्रिया को गति देने की। सत्ताधारियों को चाहिए कि भविष्य की खातिर निर्णायक कदम उठाएं, बदल दीजिए सुस्त, यथास्थितिवादी तथा भ्रष्ट कार्य संस्कृति को और खुलने दीजिए नए अवसरों के दरवाजे, खडी़ होने दीजिए गांव-गांव, कस्बे-कस्बे और शहर-शहर से उद्यमियों, विशेषज्ञों और कारोबारियों की कतारें और फिर देखिए कि अर्थव्यवस्था किस तरह छलांग लगाकर विश्व की आर्थिक महाशक्ति बनती है।
सेमिनार के संयोजन प्रोफेसर नरसिंह ने आभार ज्ञापित करते हुए कहा कि चुनौतियां हर सदी की अलग-अलग होती हैं, आर्थिक असमानता, अव्यवस्था, असंतोष देश की रूग्ण स्थिति दर्शा रही है, देश की आर्थिक चुनौतियों से निपटारे हेतु सेमिनार के सुझाव निश्चित ही नीति निर्माताओं के लिए सहायक सिद्व होंगे। दोनों तकनीकि सत्रों को दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एमए बेग, लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर नीरज कुमार, आगरा विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एके तोमर उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड इकॉनामिक एसोसिएशन के प्रोफेसर आइडी गुप्ता, कानपुर विश्वविद्यालय की डॉ रोली मिश्रा, संकायाध्यक्ष प्रोफेसर ए चटर्जी, डॉ विमल जायसवाल और डॉ शीतल शर्मा ने संबोधित किया। सत्रों में प्रमुख रूप से डॉ अरविंद कुमार झा, डॉ वीके गोस्वामी, डॉ अर्चना सिंह, डॉ सोनी हर्ष, डॉ पूजा चोपड़ा, डॉ रूपेश गुप्ता, डॉ रामकृष्ण जायसवाल, डॉ आकाश गौतम, डॉ हरनाम सिंह, शिव कुमार, विजय कुमार, आशीष कुमार, डॉ अनुरिमा बनर्जी, शायमा दिलसाद, डॉ पुष्पेंद्र मिश्र, डॉ अवधेश त्रिपाठी, डॉ राम मिलन सहित 65 शोध छात्रों ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए। विभिन्न विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों एवं प्रबंध संस्थान के विद्यार्थी उपस्थित थे। धन्यवाद ज्ञापन सहसंयोजिका डॉ अर्चना सिंह ने किया।