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Tuesday 25 May 2021 04:52:42 PM
नई दिल्ली। म्यूकोरमाइकोसिस सामान्य फंगस संक्रमणों में से एक है, जो कोविड-19 के स्वस्थ हो रहे या स्वस्थ हो चुके रोगियों में देखा जा रहा है। इसके दर्ज होने वाले मामलों की संख्या बढ़ रही है, लेकिन यह संक्रामक रोग नहीं है। इसका अर्थ है कि यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में नहीं फैलता है, जैसेकि कोविड-19 फैलता है। एम्स के निदेशक डॉ रणदीप गुलेरिया ने कहा कि म्यूकोरमाइकोसिस की बात करते समय ब्लैक फंगस शब्द का इस्तेमाल नहीं करना ही बेहतर है, क्योंकि इससे बहुत से भ्रम को बढ़ावा मिलता है। उन्होंने कहा कि ब्लैक फंगस एक दूसरा परिवार है, यह शब्द ह्वाइट फंगल कॉलोनीज के कल्चर के बीच में ब्लैक डॉट्स मिलने की वजह से म्यूकोरमाइकोसिस से जुड़ गया है। सामान्य तौरपर कई तरह के फंगस संक्रमण होते हैं, जैसे कैंडिडा, एस्परगिलोसिस, क्रिप्टोकोकस, हिस्टोप्लाज्मोसिस और कोक्सीडायोडोमाइकोसिस। इनमें से म्यूकोरमाइकोसिस, कैंडिडा और एस्परगिलोसिस का संक्रमण कमजोर इम्यूनिटी वाले लोगों में ज्यादा देखा जाता है।
डॉ रणदीप गुलेरिया ने कहा कि कैंडिडा फंगस का संक्रमण मुंह, ओरल कैविटी और जीभ में सफेद धब्बे जैसे लक्षणों के साथ सामने आ सकता है, यह निजी अंगों को भी संक्रमित कर सकता है और खून में भी पाया जा सकता है, ऐसी स्थिति में यह गंभीर हो सकता है। एस्परगिलोसिस, जो तुलनात्मक रूपसे बहुत सामान्य नहीं है, फेफड़ों में कैविटी बनाकर उसे प्रभावित करता है और नुकसान पहुंचाता है। कोविड-19 में जो (फंगस संक्रमण) देखा गया है, उनमें ज्यादातर म्यूकोरमाइकोसिस ही है, एस्परगिलोसिस को भी कभी-कभी देखा जाता है और कुछ लोगों में कैंडिडा भी दिखाई देता है। म्यूकोरमाइकोसिस संक्रमण के उच्च जोखिम वाले व्यक्तियों की श्रेणी के बारे में उन्होंने कहा कि 90-95% म्यूकोरमाइकोसिस के संक्रमण की चपेट में आनेवाले रोगी या तो मधुमेह से पीड़ित हैं या स्टेरॉयड ले रहे हैं, यह संक्रमण उन लोगों में बहुत कम देखने को मिला है, जो न तो डायबिटिक हैं और न ही स्टेरॉयड ले रहे हैं। डॉ रणदीप गुलेरिया ने बताया कि जो लोग अनियंत्रित डायबिटीज का सामना कर रहे हैं और जो कोविड पॉजिटिव होने के साथ स्टेरॉयड ले रहे हैं, वे सबसे ज्यादा जोखिम में हैं।
डायबिटीज रोगियों के लिए साफ-सफाई की उचित व्यवस्था करना बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि ऐसे रोगियों में प्रतिरक्षा कमजोर होने पर उभरने वाले संक्रमण होने की संभावना बहुत ज्यादा होती है। जो लोग ऑक्सीजन कंसंट्रेटर का इस्तेमाल करते हैं, उन्हें ह्यूमिडिफायर की नियमित सफाई सुनिश्चित करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि म्यूकोरमाइकोसिस के लिए सिरदर्द, चकत्ते पड़ना या नाक से खून बहना, आंख के नीचे सूजन आना, चेहरे की संवेदना घटने जैसे चेतावनी के संकेत हैं, अगर किसी उच्च जोखिम वाले मरीजों या स्टेरॉयड लेने वाले व्यक्ति में ऐसे लक्षण दिखाई देते हैं तो तुरंत इसकी सूचना डॉक्टर को देनी जरूरी है, ताकि प्रारंभिक जांच और उपचार दिया जा सके। म्यूकोरमाइकोसिस का वर्गीकरण मानव शरीर के उस अंग के आधार पर किया जा सकता है, जिस पर यह हमला करता है। शरीर के प्रभावित हिस्से के आधार पर संक्रमण के संकेत और लक्षण भी अलग-अलग होते हैं। राइनो ऑर्बिटल सेरेब्रल म्यूकोरमाइकोसिस-यह नाक, ऑर्बिट ऑफ आई/ आई सॉकेट, ओरल कैविटी को संक्रमित करता है और यहां तककि मस्तिष्क में भी फैल सकता है।
राइनो ऑर्बिटल सेरेब्रल म्यूकोरमाइकोसिस के लक्षणों में सिर दर्द, नाक बंद होना, नाक से पानी (हरा रंग) निकलना, नाक के ऊपर की हड्डियों में दर्द, नाक से खून बहना, चेहरे पर सूजन, चेहरे की संवेदना कम होना और त्वचा के रंग का हल्का पड़ना शामिल है। पल्मोनरी म्यूकोरमाइकोसिस-यह फंगस संक्रमण फेफड़ों को प्रभावित करता है। इसकी वजह से बुखार, सीने में दर्द, खांसी और खांसी के साथ खून आता है। यह फंगस गैस्ट्रोइन्टेस्टनल ट्रैक्ट (जठरांत्र पथ) को भी संक्रमित कर सकता है। डॉ रणदीप गुलेरिया ने कहा कि बहुत से घर पर रहकर इलाज कराने वाले मरीज, जो ऑक्सीजन थेरेपी पर नहीं थे, म्यूकोरमाइकोसिस से संक्रमित पाए गए हैं, इसलिए ऑक्सीजन थेरेपी और संक्रमण के चपेट में आने के बीच कोई निश्चित संबंध नहीं है। एंटी-फंगल इलाज कई हफ्तों तक चलता है, इसलिए यह अस्पतालों के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो रहा है, क्योंकि कोविड पॉजिटिव रोगियों और म्यूकोरमाइकोसिस की चपेट में आनेवाले कोविड निगेटिव रोगियों को अस्पताल के अलग-अलग वार्डों में रखने की जरूरत होती है। सर्जरी को भी बहुत सोच-समझकर इस्तेमाल करने की जरूरत है, क्योंकि म्यूकोरमाइकोसिस के लिए बहुत ज्यादा सर्जरी का कोविड रोगियों पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है।