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Saturday 12 June 2021 03:49:38 PM
नई दिल्ली। रिसर्च सोसायटी फॉर स्टडी ऑफ डायबिटीज इन इंडिया (आरएसएसडीआई) के जीवन संरक्षक, डायबिटीज एवं चिकित्सा के पूर्व प्रोफेसर एवं पीएमओ में केंद्रीय राज्यमंत्री डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा है कि मधुमेह और कोविड के बीच परस्पर संबंध के बारे में ज्यादा जनजागरुकता की आवश्यकता है, क्योंकि दोनों के कारण और प्रभावी संबंधों के बारे में कुछ आशंकाएं व्याप्त हैं। 'डायबिटीज इंडिया' वर्ल्ड कांग्रेस-2021 में उद्घाटन भाषण देते हुए डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा कि कई अन्य क्षेत्रों की तरह यहां तककि अकादमी में भी कोविड ने हमें विपरीत परिस्थितियों में नए मानदंडों की खोज करने के लिए प्रेरित किया है, जिसे इतने बड़े पैमाने पर इस प्रकार के अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन की सफलता में स्पष्ट रूपसे देखा जा सकता है।
डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा कि पिछले दो दशक में भारत में टाइप 2 डायबिटीज मेलिटस में वृद्धि देखने को मिल रही है, जिसने अब अखिल भारतीय स्तरपर एक अनुपात प्राप्त कर लिया है। उन्होंने कहा कि टाइप 2 डायबिटीज, जोकि दो दशक पहले तक मुख्य रूपसे दक्षिण भारत में ही प्रचलित हुआ करता थी, आज उत्तर भारत में भी समान रूपसे फैली हुई है और यह महानगरों, शहरों और शहरी इलाकों से ग्रामीण इलाकों में भी स्थानांतरित हो चुकी है। उन्होंने जागरुकता केलिए कोविड-मधुमेह अकादमिक बैठकों की एक श्रृंखला की आवश्यकता पर भी बल दिया। डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा कि कोरोना ने हमें नए मानदंडों के साथ जीना सिखाया है। उन्होंने औषधीय और गैर-औषधीय प्रबंधन के विभिन्न तरीकों पर जोर दिया, जो बीते कुछ वर्ष के दौरान महत्व खो चुके थे। उन्होंने कहा कि कोविड महामारी खत्म होने के बाद भी सोशल डिस्टेंसिंग का अनुशासन और ड्रॉपलेट इन्फेक्शन से बचाव कई अन्य प्रकार के संक्रमणों के खिलाफ सुरक्षात्मक उपाय के रूपमें कार्य करेगा, विशेष रूपसे उन लोगों केलिए जो डायबिटीज के शिकार हैं।
डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा कि डायबिटीज से पीड़ित रोगियों की स्थिति प्रतिरक्षा समझौता वाली होती है, जो उनके प्रतिरोधक क्षमता को कम करती है और उन्हें कोरोना जैसे संक्रमणों के साथ-साथ परिणामी जटिलताओं के प्रति ज्यादा संवेदनशील बनाती है। उन्होंने कहा कि यह स्थिति तब और भी गंभीर हो सकती है, जब डायबिटीज से पीड़ित रोगी को गुर्दे की बीमारी हो या डायबिटीज-नेफ्रोपैथी, गुर्दे की पुरानी बीमारी आदि भी हो। उन्होंने कहा कि घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि रक्त शर्करा का स्तर और लक्षित अंग की क्षति के खिलाफ सुरक्षात्मक उपाय वाले सख्त ग्लाइसेमिक नियंत्रण के बुनियादी सिद्धांत, जो अन्य डायबिटीज में प्रचलित हैं, महामारी के दौरान भी समान रूपसे लागू होते हैं। डॉ जितेंद्र सिंह ने डायबिटीज पर अनुसंधान के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभाने के लिए देश के कई डॉक्टरों को पुरस्कृत भी किया है। उन्होंने मुंबई के प्रसिद्ध एंडोक्राइनोलॉजिस्ट डॉ शशांक जोशी, अहमदाबाद के डॉ बंशी साबू, डायबिटीज इंडिया के ट्रस्टी डॉ अनूप मिश्रा, डायबिटीज इंडिया के अध्यक्ष डॉ एसआर अरविंद और आयोजकों की पूरी टीम की सराहना करते हुए कहा कि वे दुनिया के चार महाद्वीपों से सर्वश्रेष्ठ संकाय को एक साथ लेकर आए हैं।
डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा कि यहां पर यह समझना महत्वपूर्ण है कि यह आवश्यक नहीं है कि प्रत्येक डायबिटीज के रोगी को कोविड से संक्रमण हो और यह भी कि प्रत्येक कोविड संक्रमण से पीड़ित डायबिटीज के रोगी में जटिलताएं उत्पन्न हो। डॉ जितेंद्र सिंह ने डायबिटीज इंडिया के संस्थापक अध्यक्ष प्रोफेसर शौकत एम सादिकोट को याद किया और कहा कि उनकी विरासत भारत में मधुमेह के बारे में शिक्षा और जागरुकता फैलाने के उद्देश्य के साथ लगातार काम कर रही है। इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन के अध्यक्ष डॉ अख्तर हुसैन ने कहा कि चीन के बाद भारत सबसे ज्यादा डायबिटीज से प्रभावित है और पिछले कुछ वर्ष में इसके रोगियों की संख्या में लगातार वृद्धि देखी जा रही है। उन्होंने चेतावनी दी कि पोस्ट कोविड युग में जटिलताएं और ज्यादा बढ़ सकती हैं।