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Tuesday 23 April 2013 11:03:45 AM
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष डॉ सी रंगराजन ने मंगलवार को नई दिल्ली में एक संवाददाता सम्मेलन में '2012-13 की आर्थिक समीक्षा' का दस्तावेज़ जारी किया, जिसमें कहा गया है कि वर्ष 2013-14 में देश में आर्थिक वृद्धि 6.4 प्रतिशत रहने का अनुमान है। दस्तावेज़ में कहा गया है कि सीएसओ के अग्रिम अनुमान में 2012-13 में कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर 1.8 प्रतिशत रखी गई, सामान्य और विशेष सामान्य मॉनसून रहने पर कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर में सुधार होने की संभावना है और इसके 2013-14 में 3.5 प्रतिशत रहने का अनुमान है। सीएसओ के अग्रिम अनुमान में उद्योग क्षेत्र की वृद्धि दर (विनिर्माण, खनन और उत्खनन, बिजली, गैस, जल आपूर्ति और निर्माण सहित) 2012-13 में 3.1 प्रतिशत रखी गई। वर्ष 2013-14 में इसके 4.9 प्रतिशत पर रहने और विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर 4 प्रतिशत रहने का अनुमान है।
डॉ सी रंगराजन ने कहा है कि सीएसओ के अग्रिम अनुमान में 2012-13 में सेवा क्षेत्र की वृद्धि दर 6.6 प्रतिशत रखी गई है, इसके 7.7 प्रतिशत रहने का अनुमान है। हालांकि 2013 में वैश्विक वृद्धि के रफ्तार पकड़ने का अनुमान लगाया गया है, लेकिन यह साधारण स्तर पर बनी रहेगी, ऐसे परिदृश्य में भारत की अनुमानित वृद्धि दर 6.4 प्रतिशत अपेक्षाकृत उच्च और काफी अच्छी है। निवेश दर के सकल घरेलू उत्पाद के 35.8 प्रतिशत रहने का अनुमान है। वृद्धिशील पूंजी परिणाम अनुपात (इंक्रीमेंटल कैपिटल आउटपुट रेशियो, आईसीओआर) के अपने लगभग 4.0 ऐतिहासिक स्तर से काफी अधिक बढ़ने से पूंजी की उत्पादकता में तेज़ गिरावट आई है। गत वर्ष 2011-12 तथा 2012-13 के लिए प्रगणित आईसीओआर 5.4 से 11.4 के स्तर पर रही, जो कि इस पर निर्भर करती है कि अनुपात की गणना कैसे की गई। ऐसा लगता है कि परियोजनाओं में संचित निवेश पूंजी से अनुरूप परिणाम नहीं निकल रहे हैं। घरेलू बचत दर सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 30.8 प्रतिशत रहने का अनुमान था। पिछले कुछ वर्षों में घरेलू बचत दर में कमी का कारण सरकार की नकारात्मक बचत में वृद्धि होना, निजी कॉरपोरेट की लाभप्रदता में कमी आना तथा परिवारों की कुल वित्तीय बचत में कमी आना है।
कॉरपोरेट वित्तीय परिणाम के रूझान देखें तो 2009-10 तथा 2010-11 में कॉरपोरेट आंकड़ों से व्युत्पन्न वास्तविक शुद्ध बिक्री वृद्धि आंकड़े आईआईपी की तुलना में एसीआई अंकों के करीब थे, यदि कॉरपोरेट अंक विनिर्माण क्षेत्र के लिए बेहतर मागदर्शक हैं तो 2011-12 और 2012-13 दोनों के लिए सीएसओ के सकल घरेलू उत्पाद के अनुमान में बढ़ोतरी हो सकती है। विदेशी क्षेत्र में इस समय चालू खाता घाटा (सीएडी) को नियंत्रित करना मुख्य लक्ष्य रखा गया है।
चालू खाता घाटा वर्ष 2012-13 में 94 बिलियन डॉलर (सकल घरेलू उत्पाद का 5.1 प्रतिशत) होने का अनुमान है और वर्ष 2013-14 में इसे 100 बिलियन डॉलर (सकल घरेलू उत्पात का 4.7 प्रतिशत) करने का लक्ष्य है। वाणिज्य वस्तु व्यापार घाटा 2012-13 में 200 बिलियन डॉलर (सकल घरेलू उत्पाद का 10.9 प्रतिशत) रहने का अनुमान है और 2013-14 में इसे 213 बिलियन डॉलर (सकल घरेलू उत्पाद का 9.9 प्रतिशत) करने का लक्ष्य है। शुद्ध अदृश्य आमदनी 2012-13 में 105.8 बिलियन डॉलर (सकल घरेलू उत्पाद का 5.7 प्रतिशत) रहने का अनुमान है और 2013-14 में इसे 113 बिलियन डॉलर (सकल घरेलू उत्पाद का 5.3 प्रतिशत) करने का लक्ष्य है।
दस्तावेज़ के अनुसार 2012-13 के लिए विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) का शुद्ध प्रवाह 18 बिलियन डॉलर (अंत: प्रवाह 26 बिलियन डॉलर और बाह्य-प्रवाह 8 बिलियन डॉलर) था। वर्ष 2013-14 के लिए ईएसी ने उच्च अंत: प्रवाह 36 बिलियन डॉलर का लक्ष्य रखा है, आशा की गई है कि एफडीआई का बाह्य-प्रवाह भी बढ़ेगा, जिसके परिणामस्वरूप एफडीआई का शुद्ध अंत: प्रवाह 24 बिलियन डॉलर होगा। विदेशी संस्थागत निवेश (एफआईआई) का अंत: प्रवाह 2012-13 की पहली तिमाही में कम रहा, दूसरी और तीसरी तिमाही में इसमें तेजी आई, लेकिन समूचे वर्ष के लिए पोर्टफोलियो अंत: प्रवाह के 24 बिलियन डॉलर के आस-पास रहने का अनुमान है। वर्ष 2013-14 में पोर्टफोलियो पूंजीगत प्रवाह 18 बिलियन डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य है।अनुमान है कि वर्ष 2012-13 में ऋण मद के अधीन कुल अंत: प्रवाह लगभग 30 बिलियन डॉलर हो, इसमें अधिकांश रूप से विदेशी व्यवसायिक उधार (ईसीबी) और लघु अवधि ऋण शामिल हैं। वर्ष 2013-14 के लिए 36 बिलियन डॉलर का लक्ष्य है। वर्ष 2012-13 के लिए बैंकों से होने वाला कुल पूंजीगत अंत: प्रवाह 24 बिलियन डॉलर रहने का अनुमान है और वर्ष 2013-14 के लिए इसे 22 बिलियन डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य है।
मुद्रा स्फीति मामले में आशा की गई है कि वर्ष 2013-14 में थोक मूल्य सूचकांक की मुद्रा स्फीति 6.0 प्रतिशत के आस-पास रहेगी, इसमें प्राथमिक खाद्य मुद्रा स्फीति 8 प्रतिशत के आस-पास, ईधन लगभग 11 प्रतिशत और तैयार माल लगभग 4 प्रतिशत रहेगा। वर्ष 2012-13 के अंत में मुद्रा स्फीति की अनंतिम संख्या 5.96 प्रतिशत रही। वर्ष 2012-13 के लिए केंद्र का वित्तीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 5.2 प्रतिशत के बराबर रहने का अनुमान है। संशोधित अनुमानों के अनुसार 2012-13 में यह घाटा 520,924 करोड़ रूपये का रहा और बजट अनुमानों के अनुसार 2013-14 में यह 542,499 करोड़ रूपये रहने की संभावना है। पेट्रोलियम सब्सिडी का कम होने के कारण पिछले वर्षों में वित्तीय घाटा बढ़ता रहा है। जैसे-जैसे विकास दर बढ़ेगी, उसके साथ ही राजस्व वसूली भी बढ़ने की उम्मीद है। बजट अनुमानों में राजस्व में 19 प्रतिशत की वृद्धि दर का लक्ष्य रखा गया है। जहां तक व्यय की बात है, पेट्रोलियम सब्सिडी पर नियंत्रण एक महत्वपूर्ण पहलू है, जिसके परिणाम स्वरूप कुल मिलाकर खर्च बजट सीमा के अंदर रहने की उम्मीद है।
वित्तीय सुदृढ़ीकरण की प्रक्रिया के लिए बजट ने मजबूत नींव रख दी है, जिससे निरंतर आधार पर उच्च विकास दर प्राप्त करने में सहायता मिलेगी। निष्कर्ष यह है कि विकास दर धीमी हुई है और विशेष रूप से औद्योगिक विकास दर में कमी आई है, लेकिन लगता है कि यह गिरावट अपने निचले स्तर तक पहुंच चुकी है। पिछले वर्ष की पाँच प्रतिशत के मुकाबले 2013-14 में आर्थिक विकास दर बढ़कर 6.4 प्रतिशत हो जाने की उम्मीद है। निवेश और बचत दरें कम हुई हैं, लेकिन जितनी निवेश में कमी आई है, आर्थिक विकास दर में उसके मुकाबले ज्यादा कमी आई है। इसका मुख्य कारण यह है कि पूंजी परिसंपत्तियां तो बढ़ी हैं, लेकिन इसका लाभ अर्थव्यवस्था को नहीं हो पाया है। परियोजनाओं में लगी पूंजी के अनुरूप लाभ नहीं मिला है, क्योंकि परियोजनाओं को पूरा करने की गति धीमी रही है। इस संबंध में एक कैबिनेट समिति बनाई गई है, जो परियोजनाओं को तेजी से पूरा करने के रास्तों की रूकावटों को दूर करने में सहायक हो सकती है।
मुद्रास्फीति की दर लगातार ऊंची बनी हुई है, लेकिन इस बात के निश्चित संकेत हैं कि थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रस्फीति की दर कम हो रही है। गैर-खाद्य विनिर्माण पर आधारित मुद्रास्फीति लगभग उचित स्तर पर बनी हुई है। जैसे ही मुद्रास्फीति नीचे आएगी, तो इससे आर्थिक विकास दर को बढ़ाने में मुद्रा नीति और सहायक सिद्ध होगी। वित्तीय सुदृढ़ीकरण की रूपरेखा तैयार कर ली गई है, फिर भी मौजूदा खाता घाटा चिंता की बात है, बावजूद इसके कि घाटे के लिए वित्तीय व्यवस्था अब तक कोई समस्या नहीं रही है। कुछ समय में ऐसे कदम उठाए जा सकेंगे, जो पूंजी प्रवाह को बढ़ाने के लिए आवश्यक हैं। अगला दशक भारत के लिए एक महत्वपूर्ण दशक होगा, यदि आठ से नौ प्रतिशत वार्षिक की दर से विकास दर हासिल करते हैं, तो भारत वर्ष 2025 तक मध्यम दर्जे की आमदनी वाले देश की गिनती में आ जाएगा। यह आर्थिक विकास की तेज दर होगी, जिससे अपने कई महत्वपूर्ण सामाजिक-आर्थिक उद्देश्यों की प्राप्ति कर सकेंगे।