Wednesday 23 June 2021 09:04:58 PM
दिनेश शर्मा
संजय गांधी! अगर केवल यह नाम ही अखंड भारत देश के युवाओं की एक धड़कन कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगा। यूं तो यह नाम आज़ाद देश के पहले शासनकर्ता पंडित जवाहरलाल नेहरू खानदान से जुड़ा है, उनकी प्रचंड राजनेता पुत्री और देशकी प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा गांधी के छोटे पुत्र हैं संजय गांधी, किंतु इंदिरा गांधी के दौर में भी इस नाम को इन दोनों से भी सर्वोच्च लोकप्रियता उनके शानदार राजनीतिक उत्तरदान से मिली है। संजय गांधी ने अपने युवा जीवन के थोड़े ही समय में न केवल देश के युवाओं के दिलों पर एक छत्र राज स्थापित किया, अपितु देश को समर्पित अपने पांच सूत्रीय कार्यक्रम से वह क्रांति ला दी थी, जिसमें विकास का एजेंडा तो था ही, देश के लिए एक प्रचंड राष्ट्रवाद भी था, आज जिसकी देश में लहलहाती फसल काटी जा रही है। यह भी कहा जाए कि संजय गांधी वास्तव में उस समय देश का एक राष्ट्रवादी चेहरा बन चुके थे और देश उनका ऋणी है तो यह भी अतिश्योक्ति नहीं है। एक राजनेता के जीवन का यह बड़ा सच एक अनदेखी में जीता आ रहा है।
जी हां! देश को एक बिल्कुल नई दिशा दे-देने वाले तत्कालीन युवाक्रांति के महानायक संजय गांधी की आज वही खामोशीभरी पुण्यतिथि है। आज फिर वही सवाल हैकि संजय गांधी की पुण्यतिथि पर भी देश के राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में आखिर चर्चा क्यों नहीं होती? शायद आज के भारत का युवा संजय गांधी के देश के प्रति अप्रतिम योगदान को नहीं जानता या उतना नहीं जानता है, जितना कि उसके लिए जानना बहुत आवश्यक है। सर्वदा ख़तरों से खेलते रहे संजय गांधी की एक ख़तरनाक विमान दुर्घटना उनके असमय अवसान का कारण बनी। देश के सामने संजय गांधी से जुड़े ऐसे अनेक दृष्टांत मौजूद हैं, जब उन्होंने इस देश को अपनी अस्मिता एवं नए भारत के लिए जगाया और बचाया। देश के शीर्ष राजनेताओं की एक लंबी लिस्ट है, जो आज के दौर में कहीं मुख्यमंत्री तो कहीं केंद्रीय मंत्री और कहीं राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में अपना परचम लहरा रहे हैं। आज उनके अंदर जो प्रशासनिक और राजनीतिक योग्यताएं नज़र आती हैं तो उनके प्रेरणास्रोत संजय गांधी ही माने जाते हैं। कोई माने या ना माने, मगर वह वास्तव में एक राष्ट्र नायक थे, युवा हृदय सम्राट थे।
हिंदुस्तान में आज जो राष्ट्रवाद गूंज रहा है, उसका अमर पौधा तो संजय गांधी ने ही अपने पांच सूत्रीय कार्यक्रम से रोपित किया था। यह अलग बात है कि आज की राजनीति में अखंड भारत के लिए संजय गांधी के अनुकरणीय एवं अविस्मरणीय योगदान की उपेक्षा साफ-साफ दिखाई देती है। देश के राजनीतिक मंच पर उनकी या उनके राष्ट्रवादी कार्यक्रम की अपवाद को छोड़कर कोई चर्चा ही नहीं होती है। आज के युवाओं को अच्छी तरह से जानना चाहिए कि संजय गांधी ने उसवक्त देश के युवाओं को राष्ट्रवाद एवं रोज़गार के लिए एक कार्यक्रम दिया था और उन्हें संगठित किया था। क्या आप जानते हैंकि देश में मारुति कार संजय गांधी की ही देन है, जिससे आज लाखों लोगों को सीधे या अपरोक्ष रोज़गार मिला हुआ है। हिंदुस्तान में हिंदुत्व और राष्ट्रवाद एवं उसके राष्ट्रीय कार्यक्रम, उसके पूर्व और वर्तमान शासनकर्ताओं एवं राष्ट्रीय राजनेताओं की कार्यप्रणालियों पर देश के राजनीतिक आर्थिक और विभिन्न मंचों पर अक्सर चर्चा एवं बहस होती आई है। इसमें आज यह भी चर्चा में रहने लगा हैकि हिंदुत्व और राष्ट्रवाद हिंदुस्तान के लिए कितना प्रासंगिक हो गया है और मुस्लिम तुष्टिकरण कब क्यों एवं कैसे भारत की राजनीति और सत्ता की चाभी या मजबूरी बना है।
इंदिरा गांधी के शासनकाल में जब देश में आपातकाल लागू हुआ, तबतक संजय गांधी युवा कांग्रेस के रास्ते कांग्रेस की राजनीति के केंद्र में भी वर्चस्व स्थापित कर चुके थे और सरकार में भी उनके फैसलों की चर्चा फैल चुकी थी। जनता के बीच में जब उनका पांच सूत्रीय कार्यक्रम आया तो उसमें परिवार नियोजन कार्यक्रम एवं उसकी छाया में राष्ट्रवाद बहुत चर्चा में आया। जानकारों में आज तो इसपर चर्चा होती है और माना जाता है कि संजय गांधी में वास्तविक हिंदुत्व और राष्ट्रवाद था, मगर क्या कारण है कि कांग्रेस या दूसरे राजनीतिक संगठन अपने राष्ट्रीय या सामाजिक चिंतन में इस मुद्दे पर संजय गांधी की बात करने से कतराते से हैं। याद कीजिए! देश में एक संजय गांधी विचार मंच हुआ करता था, जिसपर विभिन्न मुद्दों के साथ देश में जनसंख्या नियंत्रण और राष्ट्रवाद पर मुखर चर्चा हुआ करती थी, लेकिन आज उस मंच की कोई गतिविधि ही देखने-सुनने को नहीं मिलती है, क्योंकि उसपर चर्चा करने वाले या तो बिखर गए हैं या फिर वे दूसरे राजनीतिक दलों में चले गए हैं, जिनकी रीति-नीति में संजय गांधी की चर्चा करना मना है।
सवाल है कि क्या संजय गांधी का राष्ट्रवाद आज के राष्ट्रवादियों के सामने अप्रासंगिक है? भाजपा की नरेंद्र मोदी सरकार के राष्ट्रव्यापी फैसलों में क्या राष्ट्रवाद मुख्य तत्व नहीं है? यदि हां तो फिर संजय गांधी का पांच सूत्रीय कार्यक्रम आज के राष्ट्रीय फैसलों से क्या कम है? कदाचित इसलिए क्योंकि संजय गांधी तत्कालीन कांग्रेस के नेता इंदिरा गांधी के पुत्र थे, जिन्होंने देश में आपातकाल लागू किया था, जिसे देश के विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं ने अपने विरुद्ध और देश के विरुद्ध बताकर उसका पुरजोर विरोध किया था, जिसमें परिवार नियोजन कार्यक्रम के विरुद्ध जनता को खड़ा किया जा रहा था और विरोध तो चरम पर पहुंच गया था। दूसरा सवाल यह है कि यदि उस समय परिवार नियोजन कार्यक्रम गलत था तो कुछ समय से देश में परिवार नियोजन और कॉमन सिविल कोड, राष्ट्रवाद की आवाज़ें कैसे हिलोरे मार रही हैं? और ये वही नेता और वही राजनीतिक दल हैं, जिन्होंने जनता पार्टी बनाई थी और आज उनके अलग-अलग दल बने हुए हैं। संजय गांधी भी तो उस समय इसी रास्ते पर आगे बढ़ रहे थे। उनका परिवार नियोजन जैसे राष्ट्रीय कार्यक्रम को प्रमुखता से लागू करना आखिर किस ओर इशारा करता है? यह कहने की जरूरत नहीं है।
यूं तो हिंदुस्तान में राष्ट्रवाद ने कोई नया जन्म नहीं लिया है। स्वामी विवेकानंद का शिकागो में ऐतिहासिक भाषण इस तथ्य की पुष्टि करता है कि उन्होंने तो तभी हिंदुत्व एवं राष्ट्रवाद के तथ्यात्मक दृष्टिकोण से भारतीय संस्कृति का दुनिया से परिचय करा दिया था, जिसे आगे चलकर धर्मनिर्पेक्षता के हिंदुस्तानी समाज और राजनीति में कहीं स्वीकार और कहीं पूरी तरह अस्वीकार भी किया गया, मगर वह देश में हिंदुत्व एवं राष्ट्रवाद का एक मज़बूत आधार बना। जानकार कहते हैं कि देश की स्वतंत्रता के लिए सुभाष चंद्र बोस का क्रांतिकारी अभियान भी हिंदुस्तान को केवल अंग्रेजों से आजादी दिलाने तक ही सीमित नहीं था, अपितु उसमें भी राष्ट्रवाद और करीब 700 साल के वीभत्स इस्लामिक आक्रांताओं से मुक्ति के लिए भी संघर्ष शामिल था। अनेक जानकार इसे सप्रमाण प्रस्तुत करते हैं। यहां तक कहा जाता है कि देश के स्वतंत्रता संग्राम में अपवाद को छोड़कर हिंदुस्तान के मुसलमान इसलिए अंग्रेजों के खिलाफ लड़ रहे थे, ताकि हिंदुस्तान में अंग्रेजों के हाथों गवाएं गए इस्लामिक शासन की वापसी का मार्ग जल्द से जल्द प्रशस्त हो सके।
भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हुए अनेक मुस्लिम नेताओं की समय-समय पर अपनी राजनीतिक और इस्लामिक गतिविधियों, तकरीरों एवं कांग्रेस शासन के दौर में देश में अनेक सांप्रदायिक दंगों से इस सच्चाई की पुष्टि हुई है। संजय गांधी के परिवार नियोजन कार्यक्रम का तत्कालीन राजनीतिक दलों ने पुरजोर विरोध करके मुसलमानों के जनसंख्या बढ़ाने के ऐजेंडे पर खामोश रहकर जनसंख्या बढ़ाने के अवसर दिए हैं। अपवाद को छोड़कर देश में आज एक भी राजनीतिज्ञ और राजनीतिक दल ऐसा नहीं है, जिसने इस्लाम के हिंदू विरोधी राजनीतिक और धार्मिक दर्शन का गहन अध्ययन किया हो और उसपर संसद में अथवा मीडिया में गंभीर बहस का सूत्रपात किया हो, जबकि मुस्लिम नेतृत्व ने खुले मंचों से पूरे भारत के इस्लामिकरण की घोषणाएं बार-बार और स्पष्ट शब्दों में की हैं। कांग्रेस और खिलाफत कॉंफ्रेंस के तत्कालीन अध्यक्ष हकीम अजमल खां जिनके नाम पर दिल्ली में सड़क है कहा करते थे कि जनसंख्या बढ़ाना और एक ओर भारत और दूसरी ओर एशिया माइनर भावी इस्लामी संघरूपी जंजीर की दो छोर कड़िया हैं, जो धीरे-धीरे इस्लाम को विशाल संघ में जोड़ेंगी।
इस अनभिज्ञता और तथ्यों से आंख कान मूंदने की भारतीय राजनीतिक दलों की प्रवृति को किस प्रकार अनदेखा किया जा सकता है। यद्यपि यह बात इंदिरा गांधी भी जान चुकी थीं, लेकिन संजय गांधी ने अपने पांच सूत्रीय कार्यक्रम में जिस तरह प्रहार किया वह अद्भुत था, जोखिमभरा था, मगर आज की समस्या का हल था। दुनिया जानती है कि मुसलमान राजनीति और सत्ता के लिए हर देश में और सत्ताधारी राजनीतिक दलों पर दबाव की राजनीति करते आए हैं। इंदिरा गांधी शासन में संजय गांधी का परिवार नियोजन कार्यक्रम इस दबाव पर दूरगामी और तगड़ा प्रहार था, लेकिन देश में या प्रांतों की सरकारों को इस्लामिक समर्थन के सामने आत्मसर्मपण ही करते देखा गया है। एक और दृष्टांत! हिंदुस्तान की आज़ादी के बाद सरदार वल्लभभाई पटेल का निजाम हैदराबाद की रियासत को बलपूर्वक फतह करने के पीछे उनका भी राष्ट्रवाद था, जिससे भारत के कई मुस्लिमपरस्त कांग्रेसी राजनेता बुरी तरह तिलमिलाए हुए थे, जिनमें मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की 40 साल बाद किताब एक बड़ा सबूत है।
मौलाना अबुल कलाम आजाद भी पूरे भारत के इस्लामीकरण के पक्ष में थे और कहते थे कि भारत जैसे देश को जो एकबार मुसलमानों के शासन में रह चुका है, कभी त्यागा नहीं जा सकता, इसलिए प्रत्येक मुसलमान का कर्तव्य है कि वह खोई हुई मुस्लिम सत्ता को फिरसे प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करे। पंडित मदनमोहन मालवीय, संघ के संस्थापक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार, श्यामा प्रसाद मुखर्जी और न जाने ऐसे कितने महान स्वतंत्रता सेनानियों राष्ट्रवादियों हिंदूवादियों का यह सपना रहा है कि हिंदुस्तान अंग्रेजों से तो मुक्त हो ही, साथ ही उस 700 साल की इस्लामिक शासन की मानसिकता से भी मुक्त हो, जिससे हिंदुस्तान एक शक्तिशाली राष्ट्रवादी देश के रूपमें जाना जाए, लेकिन तत्कालीन सरकारों की राजनीतिक प्रतिबद्धताओं गठजोड़ों और वैश्विक दबाव के कारण यह सपना सदैव कठिनतम परतंत्रताओं में ही उलझा रहा। देश में भारतीय जनता पार्टी की प्रचंड बहुमत की नरेंद्र मोदी सरकार ने कश्मीर को मुक्त कराकर देश में राष्ट्रवाद का मार्ग प्रशस्त किया है, यद्यपि इसमें भी अवरोधों की कोई सीमा नहीं है।
भारत के इतिहास की कड़वी सच्चाई से आजतक हर दौर का युवा गुज़रता आ रहा है, मगर संजय गांधी उस समय इन सच्चाईयों से बेहद करीब से गुज़रे और जान पाए कि देश कहां खड़ा है, क्या मजबूरियां हैं, देश के अंदर की सच्चाईयां कितनी भयावह हैं, जो देशवासियों को नहीं पता हैं और इससे कैसे निपटा जाना चाहिए। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के शासन के बाहरी झंझावातों राजनीतिक सामाजिक एवं प्रशासनिक जटिलताओं और उससे भी आगे सरकार चलाने के लिए मुसलमानों को साधने की एक शासनकर्ता की विकट मजबूरियों को बड़े करीब से देखते-समझते आ रहे युवा संजय गांधी ने अवसर और भविष्य को साधते हुए अपने सुनियोजित पांच सूत्रीय कार्यक्रम के जरिए राष्ट्रवाद को सही रूपमें परवान चढ़ाने का काम किया था। हिंदुस्तान के धर्म आधारित विभाजन के बावजूद सत्ता बचाए रखने के लिए मुस्लिम तुष्टिकरण हिंदुस्तान में शासनकर्ताओं की बड़ी मजबूरी बना आ रहा है, जोकि आजतक शासनकर्ताओं के लिए कभी वरदान तो कभी मुसीबत साबित होता आया है।
यह मुस्लिम तुष्टिकरण की हद ही हैकि भारत के संविधान में पंथनिरपेक्ष शब्द को हटाकर धर्मनिर्पेक्ष शब्द कर दिया गया। मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के गठन और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध की इजाजत, सत्ता और राजनीतिक मजबूरियों का कोई कम बड़ा प्रमाण नहीं है। भारत में और भी अनेक राजनीतिक फैसले इसकी पुष्टि करते हैं, इसीलिए कहा जाता है कि उस समय राष्ट्रवाद पर संजय गांधी ने बड़े दिमाग से काम किया था, लेकिन उनका यह सपना अधूरा रह गया। महान राष्ट्रवादी श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भी प्रखर राष्ट्रवाद और हिंदुत्व को विस्तार दिया था, जो दुर्भाग्य से उनकी हत्या का कारण भी बना। आरएसएस के साथ देश का हिंदुत्व और राष्ट्रवाद जुड़ा और समय-समय पर ऐसे राष्ट्रवादी आए कि जिन्होंने सिद्ध किया कि देश को मुख्यधारा में शामिल करने के लिए राष्ट्रवाद ही एक सर्वश्रेष्ठ मार्ग है। मुस्लिम तुष्टिकरण से पूरी तरह त्रस्त संजय गांधी की इस थीम पर समझ और राजनीतिक दृष्टि थी। उन्होंने राजनीति में होश संभालते ही देश के भविष्य की राजनीति का यह ब्रह्मास्त्र अपने हाथ में ले लिया था।
संजय गांधी ने सारा गणित लगा लिया था कि उन्हें आगे क्या करना है यानी अभी नहीं तो कभी नहीं। संजय गांधी ने 'हम दो हमारे दो' कार्यक्रम को देश में पूरी दृढ़ता से लागू किया, जिसे लागू करने में बाद की अनेक सरकारें एवं शासनकर्ता हिम्मत नहीं कर पाएं। यही नहीं स्वयं राजीव गांधी का राजनीतिक परिवार भी संजय गांधी नाम से भी दूरी बनाए रखता है कि कहीं कांग्रेस के मुसलमान न भाग जाएं। सवाल है कि इंदिरा गांधी शासन के बाद कोई भी सरकार वैसा परिवार नियोजन कार्यक्रम चलाने की हिम्मत क्यों नहीं कर पाई? जिसके फलस्वरूप एक साथ देश के कई बड़े ज्वलंत मुद्दे सुलझ जाने थे। संजय गांधी का पांच सूत्रीय कार्यक्रम प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बीस सूत्रीय कार्यकम्र पर भारी पड़ा था। इमरजेंसी के उस दौर को देखने वाले कहते हैं कि एक समय तो प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के फैसले संजय गांधी के ही फैसले कहे जाने लगे थे। इसी प्रकार उस समय बाहर से देश में आकर कोई उद्योग लगाने को तैयार नहीं होता था, लेकिन मारुति कार उद्योग और उससे देश में युवाओं को वृहद रोज़गार देने का बड़ा विज़न सबसे पहले संजय गांधी ही लाए।
देश में आज हर वर्ग के लिए मारूति कार देश की सड़कों पर दौड़ रही है। संजय गांधी का यह फैसला देश के लिए क्रांतिकारी सिद्ध हुआ, जिससे देश में ऑटोमोबाइल कंपनियों के आने का मार्ग प्रशस्त हुआ। इसपर भी बहुत विवाद हुआ था। देशमें आपातकाल के बाद आई तत्कालीन जनता पार्टी की सरकार तो संजय गांधी के खिलाफ मुकद्मेंबाज़ी ही करती रही। संजय गांधी को जेल तक भेज दिया। सवाल है कि देशमें आजतक इतना बड़ा रोज़गार कार्यक्रम या उद्योग कोई सरकार ला पाई है? जानकार कहते हैं कि संजय गांधी सत्ता में बने रहने के लिए इंदिरा गांधी के मुस्लिम तुष्टीकरण के मार्ग के विरोध में रहे। इसका कारण उनकी शासनकर्ता माँ इंदिरा गांधी के अनुभव भी होंगे। अखिल भारतीय युवा कांग्रेस का जब गठन हुआ तो संजय गांधी ही युवा कांग्रेस के पहले अध्यक्ष बने और देखते-देखते युवाओं की पसंद बन गए थे। संजय गांधी कम समय में ही देश के शक्तिशाली युवा राजनेता हो गए थे। उन्होंने देश की आर्थिक नब्ज़ को भी बहुत तेजी से पकड़ा था।
दिल्ली में आज आप जामा मस्जिद के जिस इलाके से कार से फर्राटा भरते हैं, एक समय वहां से निकलना बहुत मुश्किल होता था। इंदिरा गांधी चाहकर भी दिल्ली में आवागमन की इस बाधा से नहीं निपट पा रही थीं, लेकिन संजय गांधी ने जामा मस्जिद का यह कठिन इलाका रातों-रात पूरी तरह खाली करा दिया था। यहीं से देश-दिल्ली ने मान लिया थाकि संजय गांधी ख़तरों के खिलाड़ी हैं, और जिस मुद्दे की लड़ाई आरएसएस लड़ रहा है, उसकी असली ताकत संजय गांधी में है। संजय गांधी एक स्वतंत्र विचारों के निर्णय लेने वाले युवा राजनेता के रूपमें विख्यात हुए थे। देश के युवाओं ने उन्हें अपना आदर्श नेता मान लिया था। वह सत्ता में युवाओं की भागीदारी चाहते थे। संजय गांधी ने जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम से कांग्रेस को मुस्लिम वोटों के संभावित भारी नुकसान की कोई परवाह ही नहीं की थी। उस समय के सबसे शक्तिशाली अंतर्राष्ट्रीय मीडिया बीबीसी का संजय गांधी की युवा राजनीति और खासकर उनके परिवार नियोजन कार्यक्रम पर खासा फोकस रहता था। देश की जनता उन्हें अगला प्रधानमंत्री समझने लगी थी, यहां तककि उनके सामने इंदिरा गांधी कमज़ोर समझी जाने लगी थीं।
संजय गांधी के साथ उनकी पत्नी मेनका गांधी और उनके पुत्र वरुण गांधी का संदर्भ भी यहां प्रासंगिक है। मेनका गांधी जान गईं थीं कि संजय गांधी की राजनीति युवाओं को साथ लेकर राष्ट्रवाद की ओर जा रही है, मौजूदा राष्ट्रीय परिदृश्य को देखते हुए जिसमें किसीभी राजनीतिक दल के लिए उनका मुकाबला कर पाना संभव नहीं हो सकेगा, लेकिन नियति को उनके लिए इस दौर से आगे कुछ मंजूर नहीं हुआ। मेनका गांधी ने भी देश के लिए संजय गांधी के राजनीतिक और राष्ट्रवादी दृष्टिकोण को पूरी तरह जीवंत रखा। इंदिरा गांधी से उनका घोर विवाद हुआ। घर से बाहर की गईं, मगर वे आजतक पति की उसी थीम पर कायम हैं। संजय गांधी की निशानी के रूपमें उनसे भी ज्यादा ओजस्वी एवं प्रचंड राष्ट्रवादी उनके पुत्र वरुण संजय गांधी हैं और वह भी पिता के राष्ट्रवादी जीवन मूल्यों के साथ विख्यात हैं। उस दौर के संजय गांधी के मित्र और सहयोगी कहा करते हैं कि वरुण गांधी भी अपने पिता के तेवर वाले राजनेता हैं और उन्हीं की भांति युवाओं में लोकप्रिय हैं।
भारतीय जनता पार्टी ने पहले उन्हें सुल्तानपुर से लोकसभा चुनाव लड़ाया तो उन्होंने शानदार जीत दर्ज की। इसबार वे पीलीभीत से भाजपा के सांसद हैं। भाजपा नेतृत्व ने एक समय उनका एक प्रखर राष्ट्रवादी चेहरे के दृष्टिकोण से भरपूर इस्तेमाल किया है, मगर यहां एक अलग सवाल है कि भाजपा हाईकमान की नज़र में क्या उनकी मात्र एक सांसद की ही उपयोगिता है? संजय गांधी के राष्ट्रवादी दृष्टिकोण से वरुण गांधी की राजनीतिक उपयोगिता भी दिग्गज भाजपा नेताओं से कोई कम नहीं मानी जाती है। राष्ट्रवाद के लिए वरुण गांधी को जेल तक जाना पड़ा है। कांग्रेस के नेता राहुल गांधी भले ही देश के प्रधानमंत्री रहे राजीव गांधी के पुत्र हैं और वरुण गांधी के सगे चचेरे भाई हैं, तथापि राजनीतिक योग्यता और लोकप्रियता के मामले में वरुण गांधी उनसे बहुत आगे माने जाते हैं। देश के राजनीतिक मंच पर सक्रिय राजनेताओं में वरुण गांधी की तेजतर्रार शैली और उनका जनसंपर्क बहुत आगे माना जाता है, मगर यह भी माना जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश के संदर्भ में उनका सही उपयोग नहीं कर पा रही है।
जानकार कहते हैं कि वरुण गांधी को लेकर भाजपा हाईकमान और जनता की सोच में बड़ा भारी अंतर दिखाई पड़ता है और जनता में उनका पलड़ा भारी है। फिलहाल वह सांसद हैं और उनकी राजनीतिक गतिविधियां भी सीमित नज़र आती हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश में आज जिन्हें फायर ब्रांड नेता माना जाता है, तुलना करें तो वरुण गांधी उनसे कहीं कम नहीं माने जाते हैं। वरुण गांधी ने अपने पिता संजय गांधी के राष्ट्रवाद का ही मार्ग अपनाया हुआ है। क्या यह बात किसी से छिपी है कि वरुण गांधी ने अपनी राजनीतिक सभाओं में खुलकर देश विरोधी ताकतों को करारा जवाब दिया है। जानकार कहते हैं कि भारतीय जनता पार्टी को अपने इस अनुभवी सांसद वरुण गांधी की राजनीतिक क्षमताओं पर यकीन करना चाहिए। बहरहाल आज संजय गांधी की इकतालीसवीं पुण्यतिथि है। उनकी हर पुण्यतिथि पर यह चर्चा जरूर होती है कि देश के युवाओं और राष्ट्रवाद के लिए उनके कार्यक्रमों को क्यों भुलाया जा रहा है? क्या संजय गांधी और उसके परिवार का राष्ट्रवाद में किसी से कम योगदान है। तथापि उनके पुत्र वरुण गांधी उस राष्ट्रवाद को उतने ही ओजस्वी ढंग से गहन चिंतन के रूपमें देश के सामने प्रस्तुत करते आ रहे हैं।